देश में हर बालिग को मत देने का अधिकार है। यह संविधान प्रदत्त अधिकार है। विकलांग भी अपने मत का इस्तेमाल स्वेच्छा के साथ कर सकें और इसके लिए उन्हें पर्याप्त सुविधाएं उपलब्ध कराने का प्रावधान भी है। जैसे जो पैर से विकलांग हैं, उन्हें मतदान स्थल तक जाने के लिए रैम्प की व्यवस्था हो। वहीं नेत्रहीनों के लिए प्रावधान है कि वे अपने साथ अपने एक विश्वासपात्र को मतदान स्थल तक ले जा सकते हैं। लेकिन, बीती 8 फरवरी 2019 को दिल्ली में एक नेत्रहीन दलित प्रोफेसर जब मतदान करने पहुंचे, तो उसमें बाधा डाली गई। उन्हें मजबूर किया गया कि वे अपने साथ अपने विश्वासपात्र को नहीं ले जा सकते। इस मामले में पीड़ित प्रोफेसर ने दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति को पत्र लिखकर कार्रवाई करने की मांग की है। साथ ही एक मुकदमा भी दर्ज कराया है।
यह मामला है दिल्ली विश्वविद्यालय के सत्यवती इवनिंग कॉलेज के तदर्थ (एडहॉक) प्रोफेसर मनीष कनौजिया का। 8 फरवरी को दिल्ली विश्वविद्यालय के एकेडमिक काउंसिल और एक्जिक्यूटिव काउंसिल के सदस्यों के लिए चुनाव हुए। मनीष भी मतदान के अधिकारी हैं। करीब 4ः00 बजे वे अपने विश्वासपात्र साथी डॉ. अरमान अंसारी के साथ मतदान करने जा रहे थे। जैसे ही वे मतदान स्थल पर पहुंचे, हिंदी विभाग में कार्यरत एडहॉक प्रोफेसर कृष्ण मोहन वत्स ने उन्हें टोका कि वे अपने साथ डॉ. अरमान अंसारी को नहीं ले जा सकते। बकौल मनीष कनौजिया पहले तो उन्होंने इसे हल्के ढंग से लिया और आगे बढ़ने लगे। प्रो. वत्स ने उन्हें दोबारा टोका। इस बार उनकी आवाज बदली हुई थी।
डॉ. अरमान अंसारी पसमांदा मुसलमान समुदाय से आते हैं। बताया जाता है कि उनके मुसलमान होने के कारण ही मनीष कनौजिया के साथ जाने से रोका गया। मनीष बताते हैं कि डॉ. अंसारी उनके अच्छे मित्रों में से एक हैं। वे दोनों एक-दूसरे की भावनाओं का सम्मान करते हैं। मिली जानकारी के अनुसार, प्रो. कृष्ण मोहन वत्स जिन्होंने प्रो. मनीष कनौजिया के साथ बदसलूकी की, उनका संबंध आरएसएस से है।

मनीष कनौजिया के मुताबिक, “जब प्रो. वत्स ने पहली बार टोका तो मुझे लगा कि वे मजाक कर रहे हैं। लेकिन, जब उन्होंने दूसरी बार टोका तो उनका लहजा आदेशात्मक था। वे कह रहे थे कि आप डॉ. अंसारी को अपने साथ नहीं ले जा सकते। शायद उन्हें यह लग रहा था कि मैं उन्हें न वोट दे दूं, जिसका विरोध वे (प्रो. वत्स)करते हैं। मैंने विरोध किया। मैंने कहा कि यह मेरा अधिकार है। मैं अपने विश्वासपात्र साथी डॉ. अंसारी के साथ ही मतदान करूंगा। कोई मुझे नहीं रोक सकता।”
घर बैठे खरीदें फारवर्ड प्रेस की किताबें
जैसा कि मनीष कनौजिया ने बताया कि करीब 20-25 मिनट तक यह होता रहा। प्रो. वत्स बार-बार चिल्ला रहे थे कि डॉ. अंसारी को साथ नहीं ले जा सकते। प्रो. मनीष के मुताबिक, “प्रो. वत्स झगड़ा करने पर उतारू थे। यदि कोई और जगह होती, जहां मैं अकेला होता, तो वे मेरे साथ हिंसक व्यवहार भी कर सकते थे। जब यह सब हो रहा था, तब अनेक लोग वहां मौजूद थे। कुछ साथी प्रोफेसरों ने मेरा समर्थन करते हुए कहा कि अपने विश्वासपात्र को ले जाना इनका अधिकार है। लेकिन,उनके कहने के बावजूद भी प्रो. वत्स चिल्लाकर मुझे रोकने पर अड़े रहे।”
मनीष के मुताबिक, “मैं प्रो. कृष्ण मोहन वत्स द्वारा की जा रही जबरदस्ती का विरोध कर रहा था। लेकिन, वे मानने को तैयार नहीं थे। उनका रवैया ऐसा था, जैसे कोई सड़क छाप गुंडा अभद्रता कर रहा हो। अंत में मैंने कहा कि यदि आप मेरी मर्जी से मुझे मत देने नहीं देंगे, तो मैं चुनाव का बहिष्कार करता हूं। और यह कहकर मैं मतदान स्थल से बाहर निकलने लगा। लेकिन, प्रो. वत्स चिल्लाए जा रहे थे। इस बीच मैंने फैसला किया कि किसी के बेतुके विरोध के कारण अपने मताधिकार का उल्लंघन नहीं होने दूंगा। वहां कई लोग थे, जिसका हाथ सबसे पहले मिला, मैं उसके साथ मतदान करने गया। यह मेरा प्रतिरोध था।”
साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि, “हालांकि मैंने मताधिकार का प्रयोग कर लिया, परंतु यह नहीं जानता कि मेरा मत उसी उम्मीदवार को गया या नहीं, जिसे मैं मत देना चाहता था। मेरे साथ मेरा विश्वासपात्र साथी नहीं था। हो सकता है कि उसने किसी और उम्मीदवार के नाम के आगे मुहर लगा दी हो।”
मनीष बताते हैं कि मतदान करने के बाद उन्होंने प्रो. वत्स के खिलाफ दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति को पत्र लिखा। साथ ही उन्होंने भारत नगर थाने में लिखित शिकायत दर्ज कराई कि उन्हें स्वेच्छा से मताधिकार के लिए रोका गया व उन्हें अपमानित किया गया।
मनीष ने बताया कि यह उनका निजी मामला नहीं है। यह दृष्टि बाधित समाज के लोगों का मामला है, जिन्हें मौलिक अधिकारों से वंचित किया जाता है। प्रो. वत्स के खिलाफ मामला उन्होंने इसी मकसद से दर्ज कराया है, ताकि सरकार उनके उस अधिकार की रक्षा करे, जो उनके लिए संविधान में है। वे भी भारत के नागरिक हैं और उन्हें भी अस्मिता और गरिमा के साथ जीने का अधिकार है।
यह पूछने पर कि क्या उनके साथ घटना इसलिए भी घटित हुई, क्योंकि वे दलित जाति से आते हैं, प्रो.मनीष कनौजिया ने कहा कि, “सीधे-सीधे तो यह नहीं कहा जा सकता है। वजह यह कि हम दृष्टि बाधित लोगों के साथ आए दिन इस तरह के अमानवीय हरकतें की जाती हैं। लोग जाने-अनजाने हमारा मजाक भी उड़ाते हैं। ऐसा करने वाले ये नहीं देखते कि नेत्रहीन किस जाति का है। अमूमन हर जाति के नेत्रहीन इन तरह के लोगों का शिकार होते हैं।”
मनीष कनौजिया के साथ हुई घटना पर विकलांग समाज के लोगों ने भी विरोध व्यक्त किया है। विकलांग लोगों के संगठन संभावना के संयोजक डॉ. निखिल जैन ने बताया कि “मनीष कनौजिया के साथ जो घटना घटित हुई है, उससे हम सभी आहत हुए हैं। हम लोगों ने फिलहाल तो कुलपति व अन्य अधिकारियों से इस संबंध कार्रवाई करने की मांग की है। यदि हमारी मांग पर ध्यान नहीं दिया गया, तो हम लोग चुनाव आयोग जाएंगे। साथ ही हम चुनाव आयोग से यह भी मांग करेंगे कि सभी तरह के विकलांग मतदान कर सकें, इसकी पूरी व्यवस्था हो।”
इस मामले में भारत नगर थाने के अधिकारी ने दूरभाष पर जानकारी दी कि प्रो. मनीष कनौजिया की शिकायत पर पुलिस ने जांच की कार्रवाई शुरू कर दी है। इस क्रम में सीसीटीवी फुटेज निकाला जा रहा है। इस संबंध में जांच प्रतिवेदन कॉलेज के अधिकारियों को सौंप दिया जाएगा।
वहीं, इस मामले में आरोपी प्रो. कृष्ण मोहन वत्स ने दूरभाष पर अपने ऊपर लगाए गए आरोपों से इनकार करते हुए कहा कि “मैंने ऐसा कुछ नहीं किया, जैसा कि आरोप लगाया जा रहा है। मैं इस संबंध में कुछ नहीं जानता हूं। उनसे ही पूछें, जिनके साथ ऐसी कोई घटना घटित हुई है।”
(कॉपी संपादन : एफपी डेस्क/प्रेम बरेलवी)
फारवर्ड प्रेस वेब पोर्टल के अतिरिक्त बहुजन मुद्दों की पुस्तकों का प्रकाशक भी है। एफपी बुक्स के नाम से जारी होने वाली ये किताबें बहुजन (दलित, ओबीसी, आदिवासी, घुमंतु, पसमांदा समुदाय) तबकों के साहित्य, सस्कृति व सामाजिक-राजनीति की व्यापक समस्याओं के साथ-साथ इसके सूक्ष्म पहलुओं को भी गहराई से उजागर करती हैं। एफपी बुक्स की सूची जानने अथवा किताबें मंगवाने के लिए संपर्क करें। मोबाइल : +917827427311, ईमेल : info@forwardmagazine.in
फारवर्ड प्रेस की किताबें किंडल पर प्रिंट की तुलना में सस्ते दामों पर उपलब्ध हैं। कृपया इन लिंकों पर देखें
मिस कैथरीन मेयो की बहुचर्चित कृति : मदर इंडिया