द्रविड़ मुनेत्र कड़गम की नेता एवं राज्यसभा सांसद एम. के. कनिमोझाी सवर्णों को दस फीसदी आरक्षण दिए जाने के फैसले को गलत बताया है। उनका कहना है कि सरकार का यह फैसला संविधान एवं सामाजिक न्याय पर हमला है। जिस तरीके से इसे नियमों और परंपराओं को अनदेखी करते हुए संसद के दोनों सदनों में पास करवाकर कानून का दर्जा दिया गया है, वह सरकार की नीयत पर प्रश्नचिन्ह लगाता है। कनिमोझी बीते 7 फरवरी को दिल्ली में सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (एसडीपीआई) द्वारा आयोजित सम्मेलन को संबोधित कर रही थीं।
उन्होंने दलितों, पिछड़े वर्ग के हितैषी होने का ढिंढोरा पीटने वाले राजनीतिक दलों पर सवाल खड़े करते हुए कहा कि संसद में इस बिल के पक्ष में वोट इनलोगों ने कैसे डाल दिया?
वहीं एसडीपीआई के राष्ट्रीय अध्यक्ष एम के फैजी ने कहा कि देश में आरक्षण की अवधारणा गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम नहीं बल्कि समाज में उपेक्षित वर्ग एवं सदियों से सामाजिक शैक्षणिक व राजनैतिक रूप से पिछड़े दलितों व पिछड़े वर्ग को मुख्यधारा में लाकर शासन सत्ता में उचित प्रतिनिधित्व देना रहा है। सवर्णों को आरक्षण का फैसला सरासर संविधान विरोधी है। उन्होंने कहा कि सत्ता व शासन की संस्थाओं में पहले से ही सवर्णों की भागीदारी आबादी के हिसाब से कई गुणा ज्यादा है। इसलिए सवर्णों को आरक्षण देना सत्ता शासन की संस्थाओं में उसके वर्चस्व को बनाए रखने की गारंटी की कोशिश है। इसे देश स्वीकार नहीं करेगा। उन्होंने कहा कि बहुजनों को सभी क्षेत्रों में संख्यानुपात में प्रतिनिधित्व की गारंटी के लिए आरक्षण का दायरा उनके संख्या के आधार पर होना चाहिए।
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इसके अलावा सम्मेलन को अधिवक्ता महमूद पारचा, जन सम्मान पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अशोक भारती, राष्ट्रीय जनहित पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष भानुप्रताप सिंह, एसडीपीआई के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष शरफुद्दीन अहमद, दहलान बाकवी, समाजसेवी नाहिद अकील, अजीद मोहम्मद आदि ने भी सम्बोधित किया।
दूसरी ओर, सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया को लेकर सामाजिक न्याय आंदोलन से जुड़े कार्यकर्ताओं ने आपत्ति जताई है। उनका कहना है कि दक्षिणपंथी मिजाज का यह संगठन सामाजिक न्याय की बात तो करता है, लेकिन इसका मूल में अशरफ मुसलमानों को आरक्षण के दायरे में लाना है।
(परिवर्धित : 9 फरवरी, 2019, 1:25 PM)
(कॉपी संपादन : एफपी डेस्क)
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