h n

कुम्भ में सफाईकर्मियों की आवाज उठाने वाले अंशु मालवीय को योगी सरकार ने किया गिरफ्तार

प्रयागराज पुलिस की स्पेशल क्राइम ब्रांच ने कुम्भ मेले में सफाईकर्मियों के लिए आवाज उठाने वाले सामाजिक कार्यकर्ता अंशु मालवीय और दिनेश को गिरफ्तार कर लिया। हालांकि जन दबाव के कारण उन्हेें देर रात रिहा कर दिया गया

सफाईकर्मियों के हक़ में आवाज़ उठाने वाले प्रयागराज (इलाहाबाद) के सामाजिक कार्यकर्ता और कवि अंशु मालवीय को कल 7 फरवरी 2019 की रात करीब साढ़े नौ बजे स्पेशल क्राइम ब्रांच द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया। करीब तीन दिन पहले पहले पुलिस सफाईकर्मियों के नेता दिनेश को गिरफ्तार कर लिया था। हालांकि बाद में जब लोगों ने गिरफ्तारी का विरोध किया और दबाव बनाया तब उन्हें देर रात रिहा किया गया।

योगी सरकार की पुलिस ने इन दोनों को तब गिरफ्तार किया जब कुंभ में काम कर रहे सफाईकर्मियों की उपेक्षा व उन्हें नियमित मजदूरी नहीं दिए जाने को लेकर मानवाधिकार और सामाजिक कार्यकर्ता लामबंद होने लगे।

बता दें कि अंशु मालवीय और उनकी जीवनसाथी उत्पला शुक्ला हर साल माघ मेले में ‘सिरजन’ नाम से सांस्कृतिक कार्यक्रम करते हैं। कल मेले में इसके तहत सद्भाव रैली निकलनी थी, उसके एक दिन पहले पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया। अंशु मालवीय मेले का मैला साफ करने के लिए लगाये गये सफाई कर्मचारियों की मजदूरी बढ़ाने के आन्दोलन में भी शामिल थे।

सफाईकर्मियों के लिए आवाज उठाने पर योगी सरकार के निशाने पर अंशु मालवीय

फारवर्ड प्रेस ने भी इससे पहले कुम्भ मेले में काम कर रहे सफाईकर्मियों की स्थिति और सरकार द्वारा दिए जा रहे उनके मानदेय व सुविधाओं को लेकर ‘आंखन-देखी : कुम्भ के बाज़ार में धर्म और अधर्म’ शीर्षक से एक खबर प्रकाशित किया था। ये सफाईकर्मी उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और गुजरात से आए हैं।

असुविधाओं के बीच रह रहे हैं सफाईकर्मी

बीते दिनों 26 जनवरी को भी सफाई कर्मियों ने कुम्भ क्षेत्र में एक बड़ा आंदोलन भी खड़ा करने की कोशिश की थी। जब अपने शोषण और अपमान के खिलाफ अपनी तमाम मांगों को लेकर सफाई कामगार मेला प्राधिकरण के दफ्तर पर जमा हुए थे। गणतंत्र दिवस के अवसर पर मेला प्रशासन ने मेले में धारा 144 लगाकर  किसी भी तरह के धरना प्रदर्शन पर रोक लगा दी थी।

बहरहाल, हाड़ कंपकंपाने वाली ठंड में अपर्याप्त कपड़ों और अपर्याप्त व्यवस्था के बीच 12- 20 घंटे काम करने वाले ये सफाई कामगार अपनी मेहनत का उचित दाम पाने को भी तरस रहे हैं। आंदोलनरत सफाईकर्मियों की मांग है कि काम के घंटे 8 घंटे निर्धारित की जाय। साथ ही दिहाड़ी बढ़ाकर कम से कम 600 रुपये की जाय।  इससे अधिक समय तक काम कराने की स्थिति में ओवर टाइम दिया जाय। सफाई कामगारों की यह भी मांग है कि उन्हें वेतन चेक या खाते के माध्यम से नहीं बल्कि नकद दिया जाय।

(कॉपी संपादन : एफपी डेस्क)


फारवर्ड प्रेस वेब पोर्टल के अतिरिक्‍त बहुजन मुद्दों की पुस्‍तकों का प्रकाशक भी है। एफपी बुक्‍स के नाम से जारी होने वाली ये किताबें बहुजन (दलित, ओबीसी, आदिवासी, घुमंतु, पसमांदा समुदाय) तबकों के साहित्‍य, सस्‍क‍ृति व सामाजिक-राजनीति की व्‍यापक समस्‍याओं के साथ-साथ इसके सूक्ष्म पहलुओं को भी गहराई से उजागर करती हैं। एफपी बुक्‍स की सूची जानने अथवा किताबें मंगवाने के लिए संपर्क करें। मोबाइल : +917827427311, ईमेल : info@forwardmagazine.in

फारवर्ड प्रेस की किताबें किंडल पर प्रिंट की तुलना में सस्ते दामों पर उपलब्ध हैं। कृपया इन लिंकों पर देखें

मिस कैथरीन मेयो की बहुचर्चित कृति : मदर इंडिया

बहुजन साहित्य की प्रस्तावना 

दलित पैंथर्स : एन ऑथरेटिव हिस्ट्री : लेखक : जेवी पवार 

महिषासुर एक जननायक’

महिषासुर : मिथक व परंपराए

जाति के प्रश्न पर कबी

लेखक के बारे में

सुशील मानव

सुशील मानव स्वतंत्र पत्रकार और साहित्यकार हैं। वह दिल्ली-एनसीआर के मजदूरों के साथ मिलकर सामाजिक-राजनैतिक कार्य करते हैं

संबंधित आलेख

यूपी : दलित जैसे नहीं हैं अति पिछड़े, श्रेणी में शामिल करना न्यायसंगत नहीं
सामाजिक न्याय की दृष्टि से देखा जाय तो भी इन 17 जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने से दलितों के साथ अन्याय होगा।...
बहस-तलब : आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के पूर्वार्द्ध में
मूल बात यह है कि यदि आर्थिक आधार पर आरक्षण दिया जाता है तो ईमानदारी से इस संबंध में भी दलित, आदिवासी और पिछड़ो...
साक्षात्कार : ‘हम विमुक्त, घुमंतू व अर्द्ध घुमंतू जनजातियों को मिले एसटी का दर्जा या दस फीसदी आरक्षण’
“मैंने उन्हें रेनके कमीशन की रिपोर्ट दी और कहा कि देखिए यह रिपोर्ट क्या कहती है। आप उन जातियों के लिए काम कर रहे...
कैसे और क्यों दलित बिठाने लगे हैं गणेश की प्रतिमा?
जाटव समाज में भी कुछ लोग मानसिक रूप से परिपक्व नहीं हैं, कैडराइज नहीं हैं। उनको आरएसएस के वॉलंटियर्स बहुत आसानी से अपनी गिरफ़्त...
महाराष्ट्र में आदिवासी महिलाओं ने कहा– रावण हमारे पुरखा, उनकी प्रतिमाएं जलाना बंद हो
उषाकिरण आत्राम के मुताबिक, रावण जो कि हमारे पुरखा हैं, उन्हें हिंसक बताया जाता है और एक तरह से हमारी संस्कृति को दूषित किया...