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एससी, एसटी और ओबीसी के 55 फीसदी पद पहले से रिक्त, विभागवार आरक्षण से अब और होगा भारी नुकसान

उच्च शिक्षा में दलित, आदिवासी और ओबीसी वर्ग की कम हिस्सेदारी पहले से ही बड़ा सवाल रहा है। अब जबकि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद विभागवार आरक्षण के आधार पर शिक्षकों की नियुक्तियां होनी हैं, तब आने वाले समय में आरक्षित वर्गों के प्रतिनिधित्व का अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है

देश के सभी 40 केंद्रीय विश्वविद्यालयों में एससी, एसटी और ओबीसी के 55 फीसदी पद रिक्त पड़े हैं। यह हालत तब है, जबकि विश्वविद्यालयों में आरक्षण रोस्टर का निर्धारण हाल तक विश्वविद्यालयवार होता था। अब जब सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद आरक्षण रोस्टर का निर्धारण विभागवार होना है, तब यह कल्पना करना जटिल नहीं है कि आने वाले समय में उच्च शिक्षा में एससी, एसटी और ओबीसी की हिस्सेदारी न्यून हो जाएगी। इस आशय की जानकारी बीती 17 फरवरी 2019 को ऑल इंडिया यूनिवर्सिटीज एंड कॉलेजेज एससी, एसटी, ओबीसी टीचर्स एसोसिएशन ने एक रिपोर्ट जारी करके दी। साथ ही मांग की है कि विश्वविद्यालयों में आरक्षण की मॉनिटरिंग के लिए एक उच्च स्तरीय समिति बनाई जाए, ताकि आरक्षित वर्गों के साथ हकमारी न हो।

रिपोर्ट में खुलासा किया गया है कि इन विश्वविद्यालयों में 55 फीसदी शिक्षकों के पद आरक्षित श्रेणी के हैं, जिन्हें लंबे समय से विश्वविद्यालयों द्वारा नहीं भरा गया है। टीचर्स एसोसिएशन ने 40 केंद्रीय विश्वविद्यालयों में शिक्षकों के रिक्त पदों के आंकड़े एकत्रित किए हैं। इन आंकड़ों के अनुसार, इन विश्वविद्यालयों में कुल 5606 असिस्टेंट प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर व प्रोफेसर के पद रिक्त हैं। इनमें अनुसूचित जाति के 873 पद, अनुसूचित जनजाति के 493 पद, ओबीसी के 786 पद तथा पीडब्ल्यूडी के 264 पद खाली हैं। इन विश्विविद्यालयों में शिक्षकों के कुल स्वीकृत पदों की संख्या 17,092 है।  

रिपोर्ट में यह बात भी सामने आई है कि स्वीकृत पदों में एससी कोटे के लिए प्रोफेसर के 224 पदों में से सिर्फ 39 पदों पर और एसटी कोटे के लिए 104 पदों में से सिर्फ 15 पदों पर ही नियुक्तियां हुई हैं। यूजीसी बार-बार विश्वविद्यालयों/कॉलेजों को सर्कुलर भेजता है कि इन आरक्षित पदों को भरा जाए, लेकिन लंबे समय से इन पदों को नहीं भरा गया है।

यूजीसी, नई दिल्ली

बताते चलें कि 40 केंद्रीय विश्वविद्यालयों में स्वीकृत पदों में प्रोफेसर के 2,426 पद, एसोसिएट प्रोफेसर के 4,805 पद, असिस्टेंट प्रोफेसर के 9,861 पद हैं। यानी कुल 17,092 स्वीकृत पद हैं। इन पदों में प्रोफेसर के 1,301 पद, एसोसिएट प्रोफेसर के 2,185 पद, सहायक प्रोफेसर के 2,120 पद रिक्त पड़े हैं। यानी कुल 5,606 पद रिक्त हैं, जिनमें से लगभग 55 फीसदी पदों पर एससी, एसटी और ओबीसी वर्ग के शिक्षकों की नियुक्ति की जानी है। इनमें अनुसूचित जाति के लिए प्रोफेसर के 185 पद, एसोसिएट प्रोफेसर के 357 पद, सहायक प्रोफेसर के 331 पद रिक्त पड़े हैं। इसी तरह से अनुसूचित जनजाति के लिए प्रोफेसर के 96 पद, एसोसिएट प्रोफेसर के 204 पद, सहायक प्रोफेसर के 193 पद रिक्त हैं। वहीं, ओबीसी उम्मीदवारों के तीनों स्तरों के 786 पद रिक्त हैं; जिन्हें अभी तक भरा नहीं गया है।

 उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा शिक्षकों के पद खाली

शिक्षकों के सभी वर्गों के लिए असिस्टेंट प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर और प्रोफेसरों के सबसे ज्यादा 1346 पद अकेले उत्तर प्रदेश के चार केंद्रीय विश्वविद्यालयों में रिक्त हैं। जैसे- अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में 343 पद, इलाहाबाद विश्वविद्यालय में 570 पद, बीएचयू में 396 पद, बाबा साहब भीमराव अंबेडकर यूनिवर्सिटी (लखनऊ) में 37 पद लंबे समय से रिक्त हैं। इसी तरह से दिल्ली में स्थित तीन केंद्रीय विश्वविद्यालयों- दिल्ली यूनिवर्सिटी, जामिया मिल्लिया इस्लामिया और जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में कुल 1261 पद रिक्त पड़े हैं। उत्तराखंड के हेमवती नंदन बहुगुणा विश्वविद्यालय में 202 पद, जम्मू-कश्मीर के दो विश्वविद्यालयों में 139 पद, हरियाणा केंद्रीय विश्वविद्यालय में 171 पद, हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय में 114 पद रिक्त हैं। इसी तरह से पंजाब केंद्रीय विश्वविद्यालय में 53 पद, गुरु घासीदास विश्वविद्यालय में 216 पद, डॉ. हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय में 128 पद, पांडिचेरी विश्वविद्यालय में143 पद,आसाम यूनिवर्सिटी में 68 पद, मणिपुर यूनिवर्सिटी में 115 पद, राजस्थान केंद्रीय विश्वविद्यालय में 65 पद, विश्व भारती विश्वविद्यालय में 160 पद रिक्त पड़े हैं। ये अस्सिटेंट प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर व प्रोफेसर के पद हैं।

आरक्षण की देख-रेख के लिए बने उच्च स्तरीय समिति

टीचर्स एसोसिएशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष व दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर हंसराज सुमन ने बताया कि पिछले एक दशक से इन केंद्रीय विश्वविद्यालयों में कई बार पदों को भरने के लिए विज्ञापन जारी हुए, लेकिन उन्हें भरा नहीं गया। उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय का उदाहरण देते हुए बताया कि यहां विश्वविद्यालय के विभागों के अलावा संबद्ध कॉलेजों में 4500 शिक्षक एडहॉक के रूप में कार्यरत हैं। इन पदों को भरने के लिए तीन बार विज्ञापन जारी हो चुके हैं, लेकिन कुछ पदों के भरने के बाद नियुक्ति प्रक्रिया रोक दी जाती है, जिससे हर साल एडहॉक शिक्षकों की संख्या बढ़ती जा रही है। उन्होंने बताया है कि फरवरी/मार्च 2017 में शिक्षकों के पदों को भरने के विज्ञापन दिए थे। तीन विभागों और एक कॉलेज में नियुक्ति के बाद आज तक कोई नियुक्ति नहीं हुई; जो पद निकाले गए थे, उनकी समय सीमा समाप्त हो गई।

टीचर्स एसोसिएशन के महासचिव प्रो के.पी. सिंह यादव ने कहा कि यूजीसी आरक्षित पदों की भरने की जिम्मेदारी ले और यूनिवर्सिटी/कॉलेजों को एक सर्कुलर जारी करे कि जिन पदों का विज्ञापन पिछले रोस्टर 200 प्वाइंट पोस्ट बेस से हो चुका है, उन पर विश्वविद्यालय/कॉलेज जल्द-से-जल्द नियुक्तियां करें। उनका यह भी कहना है कि कॉलेजों/विश्वविद्यालयों के द्वारा विज्ञापन तो निकाले जाते हैं, लेकिन पदों को भरा नहीं जाता। ऐसे विश्वविद्यालयों/कॉलेजों को यूजीसी अनुदान राशि देना बंद करे।

प्रो. यादव ने बताया है कि हम लोग छात्रों, कर्मचारियों और शिक्षकों के पदों को भरने के लिए उच्च स्तरीय समिति बनाए जाने की मांग सरकार से कर रहे हैं। इस समिति को यह जिम्मेदारी दी जाए कि वह विश्वविद्यालयों में आरक्षित वर्गों के प्रतिनिधित्व की देख-रेख करे। तभी इन आरक्षित रिक्त पदों को भरा जा सकता है और आगे भी आरक्षित वर्गों को उनका हक मिल सकेगा।

(कॉपी संपादन : प्रेम बरेलवी/एफपी डेस्क)


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लेखक के बारे में

कुमार समीर

कुमार समीर वरिष्ठ पत्रकार हैं। उन्होंने राष्ट्रीय सहारा समेत विभिन्न समाचार पत्रों में काम किया है तथा हिंदी दैनिक 'नेशनल दुनिया' के दिल्ली संस्करण के स्थानीय संपादक रहे हैं

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