तीन मार्च को पटना में ऐतिहासिक रैली हो रही है। नाम है- संकल्प रैली। किस संकल्प की रैली है, यह नहीं बताया गया है। लेकिन कार्यकर्ताओं को समझाया जा रहा है- कुर्सी वापसी का संकल्प है। नरेंद्र मोदी को फिर प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठाना है। इसके लिए भाजपा के साथ रामविलास पासवान और नीतीश कुमार भी ‘कुर्सी संकल्प’ को ताकत देने में जुटे हैं। इनको भी अपनी कुर्सी वापसी की चिंता सता रही है। इसलिए सब मिलजुलकर कुर्सी वापसी का अभियान चला रहे हैं। जाहिर तौर पर राजनीति है तो कुर्सी भी होगी और ‘कुर्सीवान’ भी होगा।
राजधानी पटना की सड़कें रैली के पोस्टर, बैनर और होर्डिंग से पाट दी गयी हैं। तीनों पार्टियों के नेता अपनी औकात और उम्मीद के अनुसार रैली में ताकत झोंक रहे हैं। इसमें ‘निरबंस’[1] और ‘बहुबंस’[2]सभी तरह के लोग जुटे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कोई पारिवारिक उत्तराधिकारी भी नहीं है। इसके विपरीत रामविलास पासवान का पूरा वंश ही राजनीति करता है। बेटा और भाई सांसद हैं तो एक भाई राज्य सरकार में मंत्री हैं। चर्चा तो यह भी है कि वे अपनी पत्नी रीना पासवान को खगडि़या से चुनाव लड़ाना चाहते हैं। नीतीश कुमार की स्थिति दोनों से अलग है। उनका अपना पुत्र है, लेकिन अभी वे राजनीति नहीं करते हैं। उनके पुत्र राजनीति में नहीं आयेंगे, इसकी घोषणा भी नीतीश नहीं करते हैं। यानी पुत्र के लिए राजनीति में संभावना बनाये हुए हैं।

दरअसल 3 मार्च को निरबंस और बहुबंस की रैली है, जिसका मकसद ‘कुर्सी वापसी’ का संकल्प लेना है। राजनीति बड़ी तेजी से परिवार की गिरफ्त में आती जा रही है। इसमें पार्टी और जाति का कोई बंधन नहीं है। इसलिए राज्य और जिला स्तरीय नेता भी अपने परिवार के साथ रैली को सफल बनाने में जुटे हैं। सत्ता बाप के हाथ से गयी तो बेटे के हाथ में पहुंच सके। राजनीतिक रैलियों का मकसद ही कुर्सी वापसी का संकल्प दुहराना होता है। इसमें नेता के साथ पार्टी और परिवार की राजनीति सुरक्षा का भरोसा भी छुपा होता है। संकल्प रैली के बाद ही यह कहा जा सकता है कि यह कितना सफल रहा।
(कॉपी संपादन : एफपी डेस्क)
संदर्भ :
[1] जिसकी कोई संतान न हो
[2] जिसकी अनेक संताने हो
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