भारतीय राजनीति में वामपंथी दलों की पहचान गरीब-गुरबों के हितों के लिए संघर्ष करने की रही है। परंतु, शासन-प्रशासन में वंचित तबकों की हिस्सेदारी को लेकर वामपंथी दल मुखर नहीं रहे हैं। हालांकि 2014 में भारतीय जनता पार्टी द्वारा खुलकर ओबीसी राजनीति करने के बाद हालात बदल गए हैं। यहां तक कि वामपंथी पार्टियों को भी अनुसूचित जनजाति, अनुसूचित जाति और पिछड़ा वर्ग के मुद्दों को अपनी राजनीति के केंद्रीय विषयों में शामिल करना पड़ रहा है। एक उदाहरण भाकपा माले है। माले ने अपने घोषणा पत्र में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और पिछड़ा वर्ग के मुद्दों को जगह तो दी ही है, नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा आर्थिक आधार पर सवर्णों को दस प्रतिशत आरक्षण दिए जाने पर सवाल उठाया है।
ध्यातव्य है कि भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (एमएल) यानी भाकपा माले उत्तर भारत के बिहार व झारखंड में महत्वपूर्ण वामपंथी दल है। अनुसूचित जनजाति, अनुसूचित जाति और पिछड़ा वर्ग के मुद्दों को इस पार्टी ने खुलकर जगह दी है। माले द्वारा जारी घोषणा पत्र में कहा गया है कि वह दलित अधिकारों को बुलंद करेंगी। इसके तहत अनुसूचित जाति, जनजाति (अत्याचार निवारण) कानून 2018 को लागू किया जायेगा और एफआईआर न दर्ज करने वाले पुलिस अधिकारियों को सजा दी जाएगी। साथ ही अनुसूचित जाति के छात्रों की छात्रवृत्ति के लिए आवंटित राशि का पूरी तरह इस्तेमाल होगा और इस राशि में इजाफा किया जाएगा।
माले ने यह भी वादा किया है कि शिक्षण संस्थाओं में जाति आधारित भेदभाव की रोकथाम के लिए कानून (रोहित वेमूला के नाम पर) बनाया जाएगा। माले की ओर से कहा गया है कि बिहार व अन्य राज्यों में दलितों के जन संहार के मामलों में अभियुक्तों को बरी किए जाने के खिलाफ लम्बित याचिकाओं के निपटारे के लिए सुप्रीम कोर्ट फास्ट ट्रैक अदालतों का गठन करेंगे. केंद्र सरकार इसके लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाख़िल करेगी।
माले ने अपने घोषणा पत्र में हाथ से सफाई करने की प्रथा को समाप्त करने का वादा किया है। कहा गया है कि वह हाथ से सफाई करने/ मैला ढोने पर रोक लगाने के लिए बने कानून को कड़ाई से लागू कराएगी। दलित सफाई मजदूरों के लिए पूरी मजदूरी, सुरक्षा और सम्मान की गारंटी कराएगी।

इसके अलावा माले ने कहा है कि लोकतांत्रिक आन्दोलनों (महाराष्ट्र में भीमा-कोरेगांव मामला, मध्य प्रदेश में एससी/एसटी कानून को कमजोर करने के खिलाफ आन्दोलन, या उत्तर प्रदेश में एनएसए में निरुद्ध किये गये आन्दोलनकारियों आदि) में जेल भेजे गये दलितों एवं दलित आन्दोलनों के समर्थकों की रिहाई सुनिश्चित करायी जाएगी और उनके विरुद्ध लगाए गए आरोपों को वापस लिया जायेगा।
(कॉपी संपादन : सिद्धार्थ)
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