सामाजिक कार्यकर्ता सुरेंद्र कुशवाहा पिछले लगभग तीन दशकों से विभिन्न राजनीतिक-सांस्कृतिक आंदोलनों में भी सक्रिय रहे हैं। उन्होंने 11 वर्षों तक ‘कुशवाहा दर्शन’ नामक मासिक पत्रिका का संपादन व प्रकाशन किया। उस पत्रिका में ‘लोहे पर लकीरें’ नामक उनका संपादकीय कृषक जातियों के सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ताओं में लोकप्रिय हुआ करता था। सुरेंद्र पिछले दिनों ‘हिंदुस्थान निर्माण दल’ के राष्ट्रीय महामंत्री बनाए गए हैं।
दरअसल, ‘हिंदुस्थान निर्माण दल’ नामक राजनीतिक दल का गठन विश्व हिंदू परिषद के अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष रहे प्रवीण तोगड़िया ने किया है। इस लोकसभा चुनाव में इस पार्टी ने लगभग 100 जगहों से उम्मीदवार उतारे हैं। कहा जा रहा है गुजरात की एक पिछडी जाति (लेउवा पटेल) में पैदा हुए तोगडिया का हृदय परिवर्तन हुआ है, तथा वे इन दिनों सामाजिक न्याय की शक्तियों को अपने साथ जोडने में जुटे हैं। हालांकि यह परिवर्तन अचानक नहीं हुआ है। पिछले वर्ष यह खबर आयी थी कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के कहने पर वहां की पुलिस उन्हें अज्ञात स्थान पर ले गयी थी। तब सियासी गलियारे में हलचल मच गयी थी। बाद में इसकी परिणति तोगड़िया के विद्रोह के रूप में हुई। उन्होंने आरएसएस से किनारा कर लिया है। उनकी पार्टी का नया नारा है “शून्य भूखमरी, शून्य भ्रष्टाचार,शून्य गुंडागर्दी और एक दम्पत्ति की दो संतानें”।
फारवर्ड प्रेस : मूल रूप से गुजराती प्रवीण तोगड़िया इन दिनों उत्तर भारत के राज्यों में अपनी राजनीति फोकस कर रहे हैं और ऐसा लगता है कि वे जातिगत मुद्दों को भी शामिल कर रहे हैं। आप क्या कहेंगे?
सुरेंद्र कुशवाहा : पहले तो मैं यह साफ कर दूं कि प्रवीण तोगड़िया पहले राजनीति में नहीं थे। उनके सामने पहले से निर्धारित एक एजेंडा लाया जाता होगा और कहा जाता होगा कि इसे कहो। अब चूंकि उन्होंने राजनीति की अपनी दुकान खोली है तो उन्हें सबकी बात करनी होगी। मुझे लगता है कि आप यह जानना चाहते हैं कि प्रवीण तोगड़िया की अपनी सामाजिक पृष्ठभूमि क्या है तो मैं आपको बता दूं कि कुर्मी/कुशवाहा जाति के हैं। इन्हें ही गुजरात में पाटीदार कहते हैं। जैसे हमारे उत्तर भारत में पाटीदार होते हैं। गुजरात में पाटीदार तीन समुदायों में विभाजित है। लेउवा पटेल, कड़वा पटेल और काछिया पटेल। मैं आपको बता दूं कि वहां पाटीदार स्टेटस को रिप्रजेंट करता है कर्म को नहीं। तो प्रवीण तोगड़िया का गुजरात में जो समुदाय है, वह उत्तर प्रदेश, बिहार और मध्य प्रदेश आदि राज्यों में कुशवाहा, कोईरी और कुर्मी समाज के रूप में बहुतायत में है। और गुजरात में पटेल जो सरनेम है उसे चार जातियों के लोग लिखते हैं। इनमें गुर्जर, लोधी, कुशवाहा और कुर्मी शामिल हैं। प्रवीण तोगड़िया जी को इन चार जातियों के लोगों का समर्थन हासिल है। यदि आप जातिगत नजरिए से देखें तो राष्ट्रीय स्तर पर ऐसा कोई नेता नहीं है जिसे इस तरह चार जातियों का समर्थन हासिल है। वैसे वे जातिवादी नहीं हैं। उन्हें इस फ्रेम में बांधा भी नहीं जा सकता है। उन्हें घोर हिंदूवादी भी वोट करेगा और बहुजन भी करेंगे।

हिंदुस्थान निर्माण दल के राष्ट्रीय महामंत्री सुरेंद्र कुशवाहा
फा.प्रे. : आपकी अपनी पहचान एक सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में रही है। आप ओबीसी के सवालों को लेकर हमेशा सक्रिय रहे हैं। फिर अचानक एक ऐसे नेता के साथ जुड़ने की वजह क्या रही जिनकी पहचान कट्टर हिंदूवादी की रही है? आपकी पार्टी का नाम भी हिंदुस्थान निर्माण दल है। आखिर इस दल के एजेंडे क्या हैं?
सु. कु. : सबसे पहले तो मैं आपको बता दूं कि प्रवीण तोगड़िया जी जब विश्व हिंदू परिषद में रहे तब भी वह बहुजनों का ही काम करते थे। वे पेशे से कैंसर के डाक्टर हैं। अहमदाबाद में एक छोटी सी झोपड़ी में रहते थे। मां ने उन्हें दूध बेचकर पाला-पोसा। वहां से निकलकर वह उस संगठन में शामिल हुए। मूल बात तो यह है कि जो आदमी जहां रहता है या काम करता है और यदि उसके मन में पवित्रता है तो वह जहां कहीं भी रहेगा, काम करता ही रहेगा। जहां तक हिंदुस्थान निर्माण दल के साथ जुड़ने का सवाल है तो सबसे पहले मैं आपको यह बता दूं कि मुझे अपने नेतृत्व पर कोई शंका नहीं है।

हिंदुस्थान निर्माण दल के संस्थापक प्रवीण तोगड़िया
फा.प्रे. : आपने कहा कि प्रवीण तोगड़िया विश्व हिंदू परिषद में भी रहे तब भी उन्होंने दलित-बहुजनों के लिए काम किया। ऐसा आप किस आधार पर कह रहे हैं?
सु. कु. : देखिए, वे उस संगठन में करीब 20-22 साल रहे। इस दौरान कई राष्ट्रीय स्तर पर कई फैसले लागू किए गए जो बहुजनों के हित में थे, उनमें प्रवीण तोगड़िया जी की भूमिका रही। कई राज्यों में ओबीसी मुख्यमंत्री बने और कई नेताओं का उभार हुआ, उसमें उनकी भूमिका रही।
फा.प्रे. : आपको क्या यह लगता है प्रवीण तोगड़िया अब वह प्रवीण तोगड़िया नहीं रहे जो त्रिशूल बांटते थे, उन्मादी भाषण देते थे?
सु. कु. : मुझे लगता है कि वह बदल चुके हैं। त्रिशूल बांटना उन दिनों प्रतीक था। अब जमाना बदल चुका है। न्यूक्लियर युग है। डिजिटल क्रांति हो रही है देश-दुनिया में। आज प्रवीण तोगड़िया जी जानते हैं कि लोकतंत्र में संख्या बल का क्या महत्व है। 85 फीसदी बहुजन हैं। और इसलिए उन्होंने हिंदुस्थान निर्माण दल का गठन किया है। भारत के संविधान में जो अधिकार बहुजनों को दिए गए हैं, वह उन्हें मिले जो दबाए गए हैं, कुचले गए हैं। अब वे लोगों को त्रिशूल नहीं, कलम देना चाहते हैं।
फा.प्रे. : आखिर इस बदलाव की वजह क्या रही?
सु. कु. : भारत के इतिहास में ही है। सम्राट अशोक का हृदय कलिंग युद्ध के बाद परिवर्तित हो गया था।
(कॉपी संपादन : नवल)
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