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बिरसा की जयंती पर बनारस में जुटे गोंड, कहा- गोंडी परंपरा को मिले शासकीय संरक्षण

भारत में वर्चस्ववादी संस्कृति के सबसे बड़े केंद्र बनारस में गोंड समुदाय के लोगों ने अपनी परंपराओं और संस्कृति को लेकर सवाल उठाये। बिरसा मुंडा की 144वीं जयंती के मौके पर आयोजित गोंडी धर्म संसद के दौरान यह मांग भी रखी गयी कि गोंडी धर्म को राज्य सरकार पृथक धर्म के रूप में मान्यता दे। फारवर्ड प्रेस की खबर

उत्तर प्रदेश के बनारस में गोंड समुदाय के लोगों ने धरती आबा बिरसा मुंडा (15 नवंबर 1875 – 9 जून 1900)  को उनकी 144वीं जयंती के मौके पर याद किया। इस मौके पर गोंडी धर्म संसद का आयोजन शिवपुर प्रखंड के गनेशपुर ग्राम स्थित जनजातीय शोध एवं विकास संस्थान के कार्यालय परिसर में किया गया। इस मौके पर राज्य सरकार से मांग की गयी कि वह गोंड धर्म और संस्कृति को शासकीय संरक्षण दे। साथ ही 2021 में होने वाली जनगणना में गोंडी धर्म को हिन्दू धर्म से अलग धर्म के रूप में मान्यता दिये जाने के संबंध में भी मांग रखी गयी।

इस मौके पर नागपुर, महाराष्ट्र से आये गोंडी भाषा के अध्येता रावेन इनवाते मुख्य अतिथि थे। उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि गोंडी धर्म और परंपराओं के केंद्र में विश्व शांति एवं मानव कल्याण के विचार हैं। हम अपनी गोंडी परंपराओं में प्रकृति और पर्यावरण को सबसे प्रमुख मानते हैं। लेकिन जिस तरीके से विकास के नाम पर प्रकृति का अंधाधुंध दोहन किया जा रहा है, उससे प्रकृति असंतुलित हो गई है और विश्वव्यापी जलवायु संकट सामने आया है। इस संकट का मुकाबला गोंडी संस्कृति और परंपराओं के अनुरूप आचरण करके ही किया जा सकता है। 

उत्तर प्रदेश के बनारस  में बिरसा मुंडा को श्रद्धांजलि देते गोंड समुदाय के लोग

गोंड समुदाय के लोगों में विश्व गोंडी धर्म गुरू के नाम से प्रसिद्ध व अखिल गोंडवाना कोया पुनेम भुमका सेवा संस्थान, नागपुर, महाराष्ट्र के प्रमुख विचारक रावेन इनवाते मुख्य अतिथि थे। उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि आदिवासी जनजाति समाज अपने रीति-रिवाज व परम्पराओं से  दूर कर दिए जाने के कारण अपने हक और हुकूक से वंचित है। धरती आबा बिरसा मुंडा ने आदिवासी समाज को उसका हक दिलाने के लिए अपने प्राण की बलि दे दी। उनका संघर्ष इसलिए भी याद किया जाएगा कि उनके नेतृत्व में आदिवासी समाज एकजुट हुआ था और सबने मिलकर अंग्रेजों और सामंतों का विरोध किया था। आज एक बार फिर यह जरूरी है कि हम सभी कोयतुर (आदिम) समुदाय के लोग अपनी संस्कृति और परंपराओं को बचाने की दिशा में आगे आएं।  

यह भी पढ़ें – महिषासुर विमर्श : गोंड आदिवासी दर्शन और बहुजन संस्कृति

धर्म संसद को उत्तर प्रदेश सरकार के वन एवं पर्यावरण मंत्रालय द्वारा गठित समिति के सदस्य बृजभान मरावी ने भी संबोधित किया। उन्होंने कहा कि जब तक हम अपने आपको नहीं पहचानेंगे और एकजुट नहीं होंगे तब तक हमें हमारा अधिकार नहीं मिलेगा। हमें आपस में एकता बनानी होगी।


जनजातीय शोध एवं विकास संस्थान के अध्यक्ष डॉ. बनवारी लाल गोंड ने इस मौके पर सवाल उठाया कि सरकारी संरक्षण नहीं मिलने से उत्तर प्रदेश के विभिन्न जिलों में रहने वाले गोंड परंपरा धीरे-धीरे दम तोड़ रही है। जनगणना में गोंडी धर्म को हिन्दू धर्म मान लिया जाता है जबकि गोंडी धर्म हिन्दू धर्म से बहुत पुराना धर्म है। इसके प्रमाण कोया पुनेम दर्शन से जुड़े ग्रंथों में उपलब्ध हैं। 

धर्म संसद के दौरान आदिवासी गोंडी भाषा गोटूल पाठशाला के बच्चों के द्वारा सांस्कृतिक प्रस्तुति की गई एवं प्रमाण-पत्र/सम्मान पत्र का वितरण भी किया गया। कार्यक्रम का संचालन भइया लाल गोंड ने किया। इस अवसर पर भूमका तिरूमाल गेंदा लाल उइके (मध्य प्रदेश), तिरूमाल संतोष मसराम (महाराष्ट्र), तिरूमाल बाला उइके,, डाॅ. शिवमुनी गोंड (मऊ, उत्तर प्रदेश) सहित बड़ी संख्या में लोग उपस्थित थे।

(संपादन : नवल/सिद्धार्थ)


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