आधी सदी की भारतीय चेतना
भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान, शिमला की पत्रिका ‘चेतना’ के अगली अंक की तैयारी हो चुकी है। इसमें हाल के कई दशकों में दलित-आदिवासी चेतना और आंबेडकर के विचारों को विस्तार देने को लेकर खासा जोर दिया गया है। संस्थान ने इस अंक के लिए देशभर के शोधार्थियों, शिक्षकों और जानकारों से विशेष आलेख और निबंध आमंत्रित किए हैं।
पत्रिका के लिए मौलिक व अप्रकाशित रचनाओं के आमंत्रण की प्रस्तावना में कहा गया है कि पिछली आधी सदी और खासकर बीते तीन दशकों में सामाजिकताओं के अनेक, कुछ प्रत्याशित और कुछ सर्वथा अप्रत्याशित, संस्करणों का जन्म और विकास भारत में हुआ है। इस दौर ने आदिवासी और दलित चेतना का उद्भव देखा है तो मध्यवर्ग का अपूर्व विस्तार और विराट स्वप्न भी। हिन्दू सांस्कृतिक राष्ट्र का पुनर्विन्यास नेहरू युग के अवसान की घोषणा और गांधी और आंबेडकर को हासिल करने के प्रयास के साथ घटित होता है। इन सामाजिकताओं के तनाव और उत्सव, विफलताओं और कुंठाओं, उल्लास और ऊर्जा से निर्मित होता यह भारत अपनी नियति से एक नवीन साक्षात्कार की दहलीज़ पर है।

‘चेतना’ का आगामी अंक आकांक्षाओं और अंतर्विरोधों में रंगी इन सामाजिकताओं और उनके हाशियों पर केंद्रित है। इस विषय पर 31 दिसंबर 2019 तक निबंध भेजे जा सकते हैं। इस बारे में आशुतोष भारद्वाज (abharwdaj@gmail.com) और राजेश कुमार (rajbhasha@iias.ac.in) से संपर्क किया जा सकता है।
भोजन और जलवायु परिवर्तन
राजस्थान विश्वविद्यालय जयपुर ने 20 से 22 दिसंबर 2019 को तीन दिन का “क्लाइमेट चेंज: इंपेक्ट ऑन बायोडायवर्सिटी एंड ग्लोबल हेल्थ सिक्योरिटी” विषयक राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन किया है। आयोजकों का कहना है कि जलवायु परिवर्तन इस समय विश्व-व्यापी समस्या का रूप ले चुका है। पर्यावरणवीय बदलावों का सीधा प्रभाव जलवायु के उतार-चढाव पर पड़ा है। इस सम्मेलन का मकसद उन सब विचारों और लोगों को एक साथ लाना है जो जलवायु परिवर्तनों का पौधों और जीवों पर प्रभाव का अध्ययन कर रहे हैं और काफी चिंता में दिखते हैं।
सम्मेलन के कुछ उपविषय हैं- मानव स्वास्थ्य और वनस्पति उत्पाद, प्लांट जैव विविधता और इसका संरक्षण, वन्य जीवों का संरक्षण और नई चुनौतियां, जलवायु परिवर्तन और जैव तकनीक नियोजन, जलवायु परिवर्तन और जेनेटिक प्रोफाइलिंग, पशु जैवविविधता और संरक्षण, खनिज संसाधनों का उपयोग और जलवायु परिवर्तन। सेमिनार के संबंध में अधिक जानकारी के लिए cibgh2019@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है। साथ ही संयोजन समिति के डॉ. जी.पी. सिंह को 9414309210, डॉ. हेमंत पारीक को 9414056582 और डॉ. सी.पी. सिंह को 8107924464 नंवर पर संपर्क करें।
अगली पीढ़ी के होनहार इंजीनियर
अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद ( एआईसीटीसी) आईएमएस इंजीनियरिंग कॉलेज, गाजियाबाद ने “अगली पीढ़ी की सामग्री और विनिर्माण” विषय पर 16 दिसंबर से 28 दिसंबर 2019 तक एक विश्वस्तरीय कार्यशाला का आयोजन किया है। इस कार्यशाला और सम्मेलन में जिन विषयों को कवर किया जाना है उसके कुछ बिंदु हैं- प्रसंस्करण, लक्षणों की पहचान, उन्नत इंजीनियरिंग सामग्री और धातु मैट्रिक्स कंपोजिट की सूक्ष्म संरचनात्मक विशेषताएं। यांत्रिक गुणों और उन्नत इंजीनियरिंग सामग्री और धातु मैट्रिक्स कंपोजिट के लक्षण। उन्नत इंजीनियरिंग सामग्री के इंजीनियरिंग अनुप्रयोग और धातु मैट्रिक्स कंपोजिट। कास्टिंग, वेल्डिंग, धातु बनाने व कंपोजिट से जुडी ताजी जानकारी। माइक्रो/नैनो मशीनिंग। विनिर्माण में औद्योगिक प्रबंधन/गुणवत्ता नियंत्रण की भूमिका।
सम्मेलन में विशेषज्ञों और संकाय संस्थानों के प्रतिनिधि आईआईटी, एनईटी, जेएमआई और डीटीयू से होंगे। आयोजन का मकसद शिक्षकों और शोधकर्ताओं को नई सामग्री प्रदान करना और इस क्षेत्र की उन्नति के साथ अनुभव साझा करना है। छात्रों को पेशेवर कार्य और करियर की उन्नति में सम्मेलन कारगर हो सकता है।
यह आयोजन मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग आईएमएस इंजीनियरिंग कॉलेज,एनएच-24, आध्यात्मिक नगर गाजियाबाद में होगा। कार्यक्रम संचालक डॉ. वी.के. सैनी हैं। इनसे vk.saini@imsec.ac.in ईमेल और मोबाइल नंबर 9873182304 पर संपर्क किया जा सकता है।
संस्कृत का एक विद्वान अब शिमला से
देश के अकादमिक जगत में बीएचयू के फिरोज खान का मुद्दा अभी ठंडा नहीं हुआ है जब उनको संस्कृत पढ़ाने को लेकर हिंदू संगठनों ने हाय-तौबा मचाई। इसी बीच भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान, शिमला ने अगले साल 23-24 मार्च, 2020 को होने वाले सम्मेलन की घोषणा कर दी है। इस वार्षिक एकीकरण सम्मेलन को “भारत की साहित्यिक संस्कृति में नदी” विषय पर केंद्रित किया गया है। इस बार सम्मेलन के संयोजन का जिम्मा ईएफएल विश्वविद्यालय शिलॉन्ग कैंपस की सहायक प्रोफेसर डॉ. अर्ज़ुमन आरा को दिया गया है।
सम्मेलन की प्रस्तावना में कहा गया है कि, “नदी एक जीवित इकाई के रूप में हमारी साहित्यिक और सांस्कृतिक चेतना में गहराई से पैठ बनाए हुए है। भारतीय संस्कृति में, नदी दिव्य है; यह जीवन का भरण-पोषण करती है। नदी-चेतना हमारी सांस्कृतिक काल्पनिकता में इतनी व्याप्त है कि यह आज के जीवन में पहेलियों, मुहावरों, वाक्यांशों के रूप में और लोककथाओं, गीतों और काल्पनिक कथाओं के रूप में भी जीवन में महत्वपूर्ण स्थान बनाए हुए है।”

सम्मेलन के उपविषय हैं- 1. भारत की रचनात्मक और सांस्कृतिक कल्पना में नदी, 2. नदी एक जीवित संस्कृति के रूप में: मिथक, सांस्कृतिक अभ्यास और भारत में नदियों की पवित्रता, 3. नदी और नैरेटिव कल्चर: भाषा साहित्य, 4. नदी और लोक संस्कृति, 5. नदी और लिंग, 6. नदी और बच्चे, 7. नदी और लोकप्रिय संस्कृति, 8. नदी और दृश्य संस्कृति, 9. पहचान, सामुदायिक चेतना में नदी, 10. साहित्य में नदी के विविध आयाम, 11. नदी और ऐतिहासिक चेतना।
सेमिनार में सीमित संख्या में प्रतिभागियों को आमंत्रित किया जाएगा। भाग लेने के इच्छुक लोगों को ईमेल भेजना चाहिए- प्रस्तावित पेपर के 500 शब्दों के साथ अपना संक्षिप्त परिचय (लगभग 200 शब्दों में) डॉ. अर्ज़ुमन आरा, सहायक प्रोफेसर, ईएफएल विश्वविद्यालय, शिलांग परिसर को भेज सकते हैं। ईमेल पता है: arzumanara@eflushc.ac.in। इसकी एक प्रति रितिका शर्मा, शैक्षणिक संसाधन अधिकारी, भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान, राष्ट्रपति निवास, शिमला- 171005 (0177-2831385) ईमेल: aro@iias.ac.in को भी भेजें। शोधपत्र, आलेख या निबंध का संक्षेप जमा करने की अंतिम तिथि 5 जनवरी, 2020 है।
चेन्नई में हिंदी पर चिंता
उत्तर भारत के विश्वविद्यालयों और दूसरे शैक्षणिक संस्थानों में हिंदी में शोध को लेकर भाषा और विषयों के संदर्भ में जैसी आसानी और पहुंच हासिल है, उस लिहाज के दक्षिण में संभव नहीं है- खासकर जब बात हिंदी साहित्य की हो। लेकिन मद्रास विश्वविद्यालय कई सालों से शोध (अब भले हिंदी में क्यों नहीं) को लेकर सदा गंभीर दिखता है। मद्रास में 14 और 15 दिसंबर को दो दिन की राष्ट्रीय कार्यशाला में हिंदी में शोध से जुड़ी समस्याओं को लेकर राष्ट्रीय स्तर का बड़ा विमर्श होने वाला है।
मद्रास विश्वविद्यालय, चेन्नई के हिंदी विभाग के प्रोफेसर और अध्यक्ष डॉ. चिट्टि अन्नपूर्णा ने बताया कि इसमें विश्वविद्यालय की कोशिश है कि उत्तर भारत के राज्यों से बेहतर माहौल हिंदी विभाग में दिखे। आयोजन के मुताबिक अरविंद महिला महाविद्यालय पाटलीपुत्र पटना के डॉ. शिवनारायण मुख्य वक्तव्य रखेंगे। मुख्य अतिथि के तौर पर इसमें तिरुनलबेली विश्वविद्यालय के रिटायर्ड प्रोफेसर डॉ. ए. भवानी शामिल होंगे। इस आयोजन के बादे में मद्रास विश्वविद्यालय के संपर्क संख्या (033-25399422, 25399746) पर संपर्क किया जा सकता है।
(संपादन : नवल/सिद्धार्थ)
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