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गुजरात में भारतीय काव्यशास्त्र के बहाने संस्कृत पर जोर, कानपुर में इतिहास निर्माण में महिलाओं की भूमिका पर चर्चा 

अकादमिक जगत में संघ अपनी पैठ बनाता जा रहा है। गुजरात विवि के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित होने वाली एक संगोष्ठी इसका उदाहरण है। संगोष्ठी के आयोजकों का कहना है कि भारतीय काव्यशास्त्र से उनका आशय मुख्यतः संस्कृत काव्यशास्त्र से है

इतिहास निर्माण में महिलाओं की भूमिका  

छत्रपति शाहू महाराज यूनिवर्सिटी, कानपुर के लखीमपुरखीरी स्थित युवराज दत्त स्नोत्तकोत्तर महाविद्यालय ने 24 जनवरी 2020 को “आधुनिक भारत के इतिहास निर्माण में स्त्रियों की भूमिका” विषय को लेकर एक दिन की अंतर-अनुशासनीय राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित की है। यह संगोष्ठी इतिहास विभाग ने आयोजित की है।

संगोष्ठी के केंद्र में इतिहास के संदर्भ में अतीत और वर्तमान के बीच संवाद है। आयोजकों का कहना है कि इसी इतिहास के प्रागैतिहासिक काल के आदिमानव के जीवन से लेकर वर्तमान की तकनीक केंद्रित मानव जीवन के समस्त पहलू स्त्री-पुरुष के अधिकार एवं दायित्व के पारस्परिक द्वंद्व से प्रभावित होते हैं, और आगे भी होते रहेंगे। इन अधिकारों और दायित्वों के द्वंद्व के मध्य पितृसत्तात्मकता का उदय कब और क्यों हुआ, यह पड़ताल का विषय है।

लेकिन वर्तमान समय में जब पितृसत्तात्मक को चुनौती के स्वर तीव्र से तीव्रतर होते जा रहे हैं. विभिन्न क्षेत्रों में स्त्री की भूमिका के समग्र अध्ययन की अनिवार्यता समीचीन है।  

संगोष्ठी के कुछ उप विषय हैं- भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में स्त्रियों की भूमिका, कामकाजी स्त्री की सामाजिक व आर्थिक विकास में भूमिका, आधुनिकता के आईने में स्त्री विमर्श और चुनौतियां, भारतीय साहित्य लेखन में स्त्रियों की भूमिका, भारतीय समाज में पितृसत्तात्मक की चुनौती देने के प्रयासों का समग्र अध्ययन, विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में उदीयमान स्त्रियों का योगदान, व्यापक सामाजिक जीवन में स्त्रियों की स्थिति एवं भूमिका का आकलन, इतिहास प्रसिद्ध महिलाओं का जीवन और उपलब्धियां आदि। 

इस संगोष्ठी में भाग लेने के लिए डॉ. ज्योति पंत (9919491299) और दीपक बाजपेई (8299706992) पर संपर्क किया जा सकता है। शोध-पत्र का सार 31 दिसंबर तक ydcseminarhistory2019@gmail.com पर भेजा जा सकता है।  

भारतीय काव्यशास्त्र के बहाने संस्कृत पर विमर्श   

“काव्यार्थ विवेचन की भारतीय परंपरा- सामर्थ्य एवं प्रासंगिकता” को लेकर गुजरात यूनिवर्सिटी, अहमदाबाद के हिंदी विभाग और साहित्य अकादमी, गांधीनगर ने 10 जनवरी 2020 को संयुक्त तौर पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया है। 

क्या भारतीय काव्यशास्त्र का मतलब संस्कृत काव्यशास्त्र है? जाहिर तौर पर इसका जवाब नकारात्मक है। लेकिन, आयोजकों का कहना है कि भारतीय काव्यशास्त्र से उनका आशय मुख्यतः संस्कृत काव्यशास्त्र से है। उनकी मान्यता है कि भारतीय काव्यशास्त्र भारतीय संस्कृति और भारतीय दर्शन के मेल से बना काव्य सिद्धांत है। 

गुजरात विश्वविद्यालय, अहमदाबाद

कुल 25 प्रस्तावित उपविषय हैं। इनमें भारतीय सिद्धांतों की काव्याशास्त्रीय परंपरा, रस सिद्धांत का स्वरूप और इसके प्रमुख बिंदु, आचार्य भरतमुनि, आचार्य भट्ट नायक, आचार्य भट्ट लोल्लट, आचार्य अभिनव गुप्त, गुणालंकारवादी आचार्य भामह, रीति सिद्धांत और काव्यमार्ग – आचार्य वामन, ध्वनि सिद्धांत के प्रतिवादक आचार्य आनंदवर्धन, वक्रोति सिद्धांत के प्रतिवादक आचार्य कुंतक, औचित्य सिद्धांत की अवधारणाएं– आचार्य क्षेमेंद्र, आधुनिक काव्यशास्त्र का परवर्तन और संवर्धन, भारतेन्दु युग का काव्यशास्त्रीय स्तर आदि शामिल हैं। 


संगोष्ठी स्थल है उमाशंकर जोशी गृह भाषा साहित्य, गुजरात यूनिवर्सिटी अहमदाबाद। अधिक जानकारी के लिए डॉ. निशा रम्पाल, अध्यक्ष, हिन्दी विभाग, (मो. 9825853545) संगोष्ठी संयोजक डॉ. राजेंद्र परमार (मो.8780436495), सह सयोजक डॉ. भानुबहन वसावा (मो.9727918625) से संपर्क किया जा सकता है।  

बिहार की शैक्षणिक त्रासदी

नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के 122वीं जयन्ती के उपलक्ष्य में “बिहार में आधुनिक शिक्षा की दिशा एवं दशा” विषय पर 2 दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का 23-24  जनवरी, 2020 को आरडी एण्ड डीजे महाविद्यालय मुंगेर में रखी गई है। इसे संस्कृत विभाग और वाणिज्य विभाग के संयुक्त तत्त्वाधान में किया जा रहा है। इसमें  बीज वक्तव्य प्रो. दीप्ति त्रिपाठी पूर्व निदेशिका, राष्ट्रीय पाण्डुलिपि मिशन और श्रीराम कॉलेज ऑफ़ कॉमर्स दिल्ली विश्वविद्यालय के आलोक कुमार रखेंगे।

आयोजकों का कहना है कि “किसी भी राष्ट्र के प्रमुख घटक तत्वों में शिक्षा सबसे महत्त्वपूर्ण है। इस इकाई से अन्य सभी जीवनोपयोगी तत्व येन-केन-प्रकारेण सम्बद्धता रखते हैं। बिहार राज्य स्वतन्त्रता प्राप्ति के इतने वर्षों बाद भी शैक्षणिक दृष्टि से सबसे अधिक पिछडा राज्य है। संगोष्ठी में इस पर विचार किया जाएगा कि आखिर वे कौन से नकारात्मक कारक हैं जिसके कारण इस राज्य के छात्रों को अच्छी शिक्षा प्राप्त करने हेतु अन्य राज्यों की शरण में जाने के अतिरिक्त कोई अन्य विकल्प नहीं है?”

संगोष्ठी के उपविषय : आधुनिक शिक्षा में प्ले स्कूल तथा पारम्परिक प्ले स्कूल (संयुक्त परिवार) की भूमिका, आधुनिक शिक्षा में प्राथमिक, माध्यमिक एवं उच्च विद्यालयों की भूमिका, शैक्षणिक पृष्ठभूमि में मानव मूल्यों पर आधारित शिक्षा का योगदान, संस्कृत वाङ्गमय का अन्तर्वैषयिक शैक्षणिक पृष्ठभूमि में उपयोग, शैक्षणिक पृष्ठभूमि में प्रिंट, इलेक्ट्रोनिक मीडिया का योगदान, शैक्षणिक पृष्ठभूमि में अन्तर्विषयिक पाठ्यक्रम का योगदान, शैक्षणिक पृष्ठभूमि में कला एवं साहित्य का योगदान, शैक्षणिक पृष्ठभूमि में तकनीकी शिक्षा का योगदान, शैक्षणिक पृष्ठभूमि में बैंकिंग प्रणाली का योगदान, शैक्षणिक पृष्ठभूमि में वाणिज्य शिक्षा का योगदान आदि।  

अधिक जानकारी के लिए vvishvajeet@yahoo.com और वाट्सएप नंबर 9911712410 पर संपर्क किया जा सकता है। संयोजक मंडल में संस्कृत विभाग के डॉ. विद्यालंकार और वाणिज्य विभाग के मुनींद्र कुमार सिंह हैं। अन्य संपर्क हैं 9213573212, 9911712410, 8210650689, 8707546155। शोध- सारांश प्राप्ति की अन्तिम तिथि 06 जनवरी, 2020 है जबकि स्वीकृति सम्बन्धी सूचना 10 जनवरी, 2020 को दी जाएगी। पूर्ण शोध-पत्र प्राप्ति की अन्तिम तिथि 15 जनवरी, 2020 है।

(संपादन : नवल/सिद्धार्थ)


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लेखक के बारे में

कमल चंद्रवंशी

लेखक दिल्ली के एक प्रमुख मीडिया संस्थान में कार्यरत टीवी पत्रकार हैं।

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