नागरिकता संशोधन कानून (सीएए), नेशनल पापुलेशन रजिस्टर (एनपीआर) और नेशनल राजिस्टर ऑफ सिटीजन्स (एनआरसी) को लेकर पिछले चार दिनों से दिल्ली में दंगे हो रहे हैं। मिली जानकारी के अनुसार इन दंगों में अबतक 21 लोगों की मौत हो चुकी है और डेढ़ सौ से अधिक लोगों के घायल होने की सूचना है। जीटीबी हस्पताल सूत्रों के अनुसार घायल हुए लोगों में लगभग आधे से अधिक लोगों को गोली लगी है।
इस सांप्रदायिक दंगे के शिकार पत्रकार भी हो रहे हैं। उनसे उनका धर्म का सबूत मांगा जा रहा है। नहीं देने पर उनके साथ मारपीट की जा रही है। ऐसी ही एक घटना 26 फरवरी, 2020 को फारवर्ड प्रेस से जुड़े स्वतंत्र पत्रकार सुशील मानव और उनके साथी व रंगमंच कलाकार अवधू आजाद के साथ दिल्ली के मौजपुर इलाके में घटित हुई। दोनों को हिंदू बहुल इलाके में भीड़ ने बुरी तरह पीटा। मार-पीट के दौरान भीड़ में शामिल एक शख्स ने कनपटी पर पिस्तौल सटाकर उनसे हनुमान चालीसा व गायत्री मंत्र पढ़ने को कहा।
सुशील मूलतः उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद जिले के फूलपुर तहसील के निवासी हैं और दिल्ली में पिछले दस वर्षों से रहकर स्वतंत्र पत्रकारिता करते हैं। फारवर्ड प्रेस के साथ उनका जुड़ाव दो वर्षों से है। उत्तर पूर्वी दिल्ली के जिस जगह पर यह घटना घटित हुई, वह मौजपुर का गली नंबर 7 है। इसी जगह तीन दिन पहले दिल्ली पुलिस के एक कांस्टेबुल रतन लाल की हत्या हुई थी। मौजपुर के इसी इलाके के आसपास जेके-24 के रिपोर्टर आकाश नापा को 25 फरवरी को गोली मारी गयी थी।

अपने साथ हुए वारदात के बारे में सुशील मानव ने बताया कि एक न्यूज वेब पोर्टल के एसाइनमेंट को पूरा करने वह अपने एक मित्र आजाद के साथ जाफराबाद, सीलमपुर, नूर इलाही इलाके में गए थे। इस दौरान उन्हें मौजपुर इलाके के गली नंबर 7 के बारे में जानकारी मिली कि इसी गली के मोड़ पर सिपाही रतनलाल की हत्या हुई थी।
सुशील के मुताबिक, घटना दोपहर करीब 1 बजे घटित हुई। वे और उनके साथी मोटरसाइकिल से गए थे। मौजपुर के गली नंबर 7 में जैसे ही अंदर घुसे और मोबाइल से वीडियो शूट करने लगे। यह देख मोटरसाइकिल पर सवार दो लोग आए और कहने लगे कि यहां का वीडियो क्यों बना रहे हो। यह कहने पर कि वे पत्रकार हैं, दोनों में से एक नौजवान ने कहा कि “तुम मीडिया वाले कटुओं [मुसलमानों के लिए उपयोग किया जाने वाला अपमानजनक शब्द] के इलाके में क्यों नहीं जाते। केवल एक धर्म के लोगों को बदनाम करते हो।”
जब यह सब चल रहा था तब कुछ और लोग वहां पहुंच गए और सबने मिलकर सुशील और उनके साथी को मारना शुरू कर दिया। सुशील के अनुसार वे जान लेने को उतारू थे। वे उन्हें लात-घुंसों से मार रहे थे। इस बीच कई नौजवानों ने पिस्तौल निकाल लिया। एक नौजवान ने पिस्तौल सुशील के कनपटी पर रखते हुए कहा कि यदि तुम हिंदू हो तो हनुमान चालीसा सुनाओ।

मुमकिन है कि उन्मादी नवयुवकों ने सुशील को उनकी बड़ी दाढ़ी को देख दूसरे धर्म का समझ लिया हो। सुशील के अनुसार वे मानने को तैयार ही नहीं थे कि मैं हिंदू हूं। उस नौजवान ने गायत्री मंत्र पढ़ने को कहा। इसी बीच भीड़ में शामिल एक नौजवान ने पैंट उतारने को कहा। इस बीच वे लात-घुंसों से मारते भी रहे। सुशील बताते हैं कि जिस जगह यह सब हो रहा था, पुलिस करीब सौ मीटर की दूरी पर खड़ी थी। जब भीड़ बढ़ गई और हमें जान लेने के इरादे से पीटा जा रहा था, तब कुछ पुलिसकर्मी आए और उन्हें भीड़ के हत्थे चढ़ने से बचाया।

सुशील ने बताया कि वे इस घटना में बुरी तरह जख्मी हो गए हैं। लेकिन इसके बावजूद पुलिस ने न तो उनकी बात सुनी और न ही उनका प्राथमिक उपचार कराया। वहां से बच निकलने के बाद दोनों ने एक निजी चिकित्सक के यहां इलाज कराया।
सूत्रों के मुताबिक अब तक एक दर्जन से अधिक पत्रकार इस सांप्रदायिक दंगे के शिकार हो चुके हैं। इस तरह के उदाहरण पहली बार सामने आ रहे हैं जब उन पत्रकारों को निशाना बनाया जा रहा है जो कवरेज करने जा रहे हैं। उनसे न केवल उनकी मज़हबी पहचान पूछा जा रहा है, बल्कि उन्हें अपने मज़हब को साबित करने के लिए मजबूर किया जा रहा है। हमले की क्रूरता का हद तो यह है कि पत्रकारों के मज़हब की पुष्टि हेतु उनके कपड़े तक उतरवाए जा रहे हैं।
गौरतलब है कि दिल्ली में सांप्रदायिक दंगे में पत्रकारों के उपर हमलों को लेकर एडिटर्स गिल्ड ने बयान जारी कर दिल्ली पुलिस से कहा गया है कि वह कवरेज कर रहे पत्रकारों को समुचित सुरक्षा प्रदान करे। इस संबंध में एडिटर्स गिल्ड ने केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से भी कार्रवाई कर अपराधियों को दंडित करने की मांग की। संसथान के अनुसार पत्रकारों पर हमला, प्रेस की आजादी पर सीधा हमला है और इस तरह की हिंसा में लिप्त होने वाले दोषियों को तुरंत गिरफ्तार किया जाना चाहिए।
(संपादन : नवल/गोल्डी)