बीते 26 अक्टूबर, 2020 को सुप्रीम कोर्ट के एक और फैसले के बाद तमिलनाडु में सियासी हलचल तेज हो गई है।। द्रविड़ मुनेत्र कषगम (डीएमके) नेता एम. के. स्टालिन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिख कर राज्यों की मेडिकल शिक्षण संस्थानों में केंद्रीय कोटे के अधीन ओबीसी आरक्षण के मुद्दे पर दख़ल देने की मांग की है। उन्होंने यह पत्र तब लिखा है जब सुप्रीम कोर्ट ने यह साफ कर दिया है कि वर्तमान शैक्षणिक सत्र में स्नातक पाठ्यक्रमों के लिए केंद्रीय कोटे के अधीन ओबीसी के लिए आरक्षण की व्यवस्था मुमकिन नहीं है।
वहीं स्टलिन ने अपने पत्र में कहा है कि इस मुद्दे पर राजनीति नहीं होनी चाहिए। उन्होंने कहा है कि यह पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के हजारों बच्चों के भविष्य का मामला है। यदि उन्हें आरक्षण नहीं दिया गया तो मेडिकल डिग्री हासिल करने का लाखों ओबीसी छात्रों का सपना पूरा नहीं हो पाएगा। स्टालिन ने अपने पत्र में लिखा है कि मेडिकल सीटों पर दाख़िलों को लेकर सुप्रीम कोर्ट का ताज़ा फैसला राज्य के ओबीसी छात्रों के लिए चिंता बढ़ाने वाला है। स्टालिन के मुताबिक़ सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद मौजूदा सत्र में राज्यों की तरफ से तय किया गया ओबीसी कोटा लागू नहीं हो पाएगा।
बताते चलें कि तमिलनाडु में डीएमके सहित अनेक पार्टियां ओबीसी युवाओं के पक्ष में खड़ी हैं। उनकी संयुक्त मांग है कि राष्ट्रीय अर्हता सह प्रवेश परीक्षा (नीट) पास करने वाले छात्रों को राज्य के अधीन मेडिकल संस्थानों में केंद्रीय कोटे के तहत ओबीसी को 50 फीसदी आरक्षण मिले।
हाल ही में डीएमके सहित राज्य की अनेक पार्टियों की याचिका पर मद्रास हाई कोर्ट ने राज्य व केंद्र सरकार को निर्देश दिया था कि तीन महीने के अंदर राज्य केंद्रित कोटा लागू करने के तरीक़ों पर विचार करें। हाईकोर्ट ने कहा था कि ओबीसी अभ्यर्थियों को को आरक्षण देने में सैद्धांतिक और सांविधानिक तौर से कोई बाधा नहीं है।
ताजा मामले में डीएमके सहित अन्य पार्टियों ने सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध करते हुए कहा था कि हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट नहीं किया है कि ओबीसी आरक्षण इसी सत्र में लागू किया जाएगा या नहीं। इस मामले में केंद्र सरकार ने दलील दी कि चालू शैक्षणिक सत्र में राज्याधीन संस्थानों में केंद्रीय कोटे के अधीन ओबीसी के लिए 50 प्रतिशत आरक्षण लागू करना व्यावहारिक नहीं होगा। इसके बाद जस्टिस एल. नागेश्वर राव, जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस अजय रस्तोगी की तीन सदस्यीय पीठ ने मौजूदा शैक्षणिक सत्र के दौरान 50 फीसदी आरक्षण लागू करने के लिए अंतरिम व्यवस्था करने की मांग ख़ारिज कर दी।
(संपादन : नवल)
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