कपड़ों से आंदोलन को एक कद आगे बढ़ाया जा सकता है। यह कर रही हैं रूपाली जाधव। हां, ये कपड़े बेचती हैं लेकिन खास तरह के कपड़े। इनके कपड़ों पर फुले-आंबेडकरवादी विचार और प्रतीक होते हैं। उनके इस उद्यम को खास तौर पर दलित-बहुजनों द्वारा पसंद किया जा रहा है। खास बात यह है कि इन कपड़ों की कीमत बहुत अधिक नहीं है। कोई भी चाहे तो ढाई सौ रुपए से लेकर पांच सौ रुपए तक खर्च करके इन कपड़ों को ऑनलाइन खरीद सकता है।
महाराष्ट्र के पूना शहर की रहने वाली रूपाली जाधव ने अपने उद्यम को ई-कामर्स से जोड़ दिया है। अपने उद्यम को उन्होंने “रूट्स रिवोल्यूशन” कहा है और ऑनलाइन बिक्री के लिए एक वेबपोर्टल भी जारी किया है। प्रोमोशन आदि के लिए ये फेसबुक व व्हाट्सअप आदि सोशल मीडिया प्लेटफार्म का उपयोग करती हैं। इस प्रकार के प्रयोगों से रूपाली का यह उद्यम लोगों के बीच लोकप्रिय हो रहा है।
अपने बारे में पूछे जाने पर रूपाली ने बताया कि वह कबीर कला मंच से 2009 से जुड़ी हैं। यह संगठन 2002 में स्थापित हुआ था और कास्ट, क्लास और जेंडर के विषय पर सांस्कृतिक कार्यक्रमों के जरिए काम करती है। रूपाली स्वयं एक गायिका व कवियत्री भी हैं। उन्होंने बताया कि संगठन में काम करने से आय की प्राप्ति नहीं होती। जबकि घर चलाने के लिए पैसे जरूरी होते हैं। इसलिए वह कुछ काम करना चाहती थीं। इसलिए उन्होंने एक एनजीओ में पांच साल तक काम किया। रूपाली के मुताबिक, एनजीओ क्षेत्र में भी ऊंची जाति के लोगों कब्जा है और वे भेदभाव करते हैं। नौकरी मिल नहीं रही थी और इस कारण यह विचार आया कि अपना खुद का उद्यम शुरू किया जा सकता है।

यह आइडिया कहां से आया कि दलित-बहुजन नायकों के स्लोगन व उनके चित्र टीशर्ट पर प्रिंट कराया जाय, के जवाब में रूपाली ने बताया कि पहली बार यह आइडिया तो तब आया जब भीमाकोरेगांव समारोह के मौके पर कुछ लोगों को डॉ. आंबेडकर का चित्र टीशर्ट पर बेचते देखा। तब उनलोगों से कहा भी कि सावित्रीबाई फुले और फातिमा शेख आदि के विचारों को भी ऐसे ही सामने लाया जाना चाहिए। इस बीच 23 मार्च 2019 को नरेंद्र दाभोलकर की संस्था जो कि अंध श्रद्धा निर्मूलन का काम करती है, के आयोजन के मौके पर यह विचार आया कि यह काम खुद से भी शुरू किया जा सकता है। लेकिन पास में पैसे नहीं थे। कोई संसाधन भी नहीं था। तो नरेंद्र दाभोलकर की संस्था के साथ जुड़कर काम किया जो भगत सिंह के संदेश और उनके चित्र टीशर्ट बनाकर बेचती है। इसके जरिए हर टीशर्ट पर सौ रुपए की आमदनी होती थी। लेकिन तभी बड़ी चुनौती कोरोना की वजह से देश में लागू लॉकडाउन से हो गई।
रूपाली बताती हैं कि इसके पहले मुझे तकनीकी जानकारियों का घोर अभाव था। मुझे तो यह भी नहीं पता था कि विभिन्न माप – स्मॉल, मीडियम, लांग, एक्सएल और डबल एक्सएल – क्या होता है और कहां से अच्छी क्वालिटी के टीशर्ट मिलते हैं। कोई बताने वाला भी नहीं था। महिला होने की वजह से भी परेशानियां हुईं। फिर एक महिला मित्र के साथ मुंबई गई और वहां बाजार का पता किया। इन सब काम में मेरे एक कलाकार मित्र उत्तम घोष ने मेरी बड़ी मदद की। उनसे मैंने यह विचार साझा किया कि हम सावित्रीबाई फुले, फातिमा शेख आदि की तस्वीरों व उनके विचारों को टीशर्ट पर प्रिंट करेंगे। उन्होंने मेरा साहस बढ़ाया और काम आगे बढ़ा।
रूपाली बताती हैं कि वह स्वयं दलित समुदाय से आती हैं और उनके सामने बड़ी चुनौती यही थी कि कोई संसाधन नहीं था। एक टीशर्ट से जो पैसे मिलते उससे दूसरा टीशर्ट और फिर इस तरीके से इस उद्यम को आगे बढ़ाया है। रूपाली ने बताया सोशल मीडिया पर लोगों ने बड़ी मदद की है। उनके मुताबिक, उन्हें कोई पैसे से मदद न करे क्योंकि वह एक तरह का कर्ज होगा, जो उन्हें वापस करना होगा। लेकिन यदि मेरे मित्र मेरे इस आइडिया को सोशल मीडिया पर प्रोमोट करें तो निश्चित तौर पर वह बड़ा सहयोग होगा।
बहरहाल, रूपाली का यह उद्यम शैशवास्था में है। वह फुले दंपत्ति, फातिमा शेख और आंबेडकर तक सीमित नहीं रहना चाहती हैं। वह दक्षिण भारत के नायकों यथा पेरियार और वासवन्ना के विचारों को भी आगे बढाएंगीं।
(संपादन : अनिल)
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