h n

पटना में पुस्तक मेला 6 दिसंबर से, मौजूद रहेगा फारवर्ड प्रेस 

इस पुस्तक मेले में पाठक स्टॉल संख्या सी-4 से दलित, ओबीसी, पसमांदा व आदिवासी समुदायों के विमर्श पर आधारित फारवर्ड प्रेस द्वारा प्रकाशित किताबें खरीद सकेंगे

सेंटर फॉर रीडरशिप डेवलपमेंट (सीआरडी) के द्वारा बिहार की राजधानी पटना के गांधी मैदान में हर साल लगनेवाला पुस्तक मेला हमेशा सुर्खियों में रहा है। इस बार इस पुस्तक मेले का आगाज आगामी 6 दिसंबर, 2024 को डॉ. आंबेडकर के महापरिनिर्वाण दिवस के मौके पर होगा, जो 17 दिसंबर तक चलेगा। इस बार इस मेले में फारवर्ड प्रेस भी शरीक होगा, जहां से पाठक दलित-बहुजन वैचारिकी पर आधारित किताबें खरीद सकेंगे। मेले के दौरान बिहार व उसके समाज से जुड़ी पुस्तकें फारवर्ड प्रेस के स्टॉल (स्टॉल संख्या सी-4) पर उपलब्ध रहेंगीं। इनमें ‘बिहार की चुनावी राजनीति’, ‘भारतीय कार्यपालिका में सामाजिक न्याय का संघर्ष : अनकही कहानी, पी. एस. कृष्णन की जुबानी’, पूर्व राज्यसभा सदस्य अली अनवर द्वारा लिखित पसमांदा आंदोलन की हस्ताक्षर पुस्तक ‘मसावात की जंग’ का अंग्रेजी अनुवाद ‘बैटल फॉर इक्वलिटी’ के अलावा प्रेमकुमार मणि की चर्चित किताब ‘चिंतन के जनसरोकार’ शामिल हैं।

फारवर्ड प्रेस द्वारा प्रकाशित कई किताबें पाठकों के बीच लोकप्रिय रही हैं। बिहार में फारवर्ड प्रेस द्वारा प्रकाशित द्विभाषी पत्रिका ‘फारवर्ड प्रेस’ लोकप्रिय रही थी। इसका प्रकाशन जून, 2016 में स्थगित किए जाने के बाद वेब के जरिए दलित-बहुजन वैचारिकी को आगे बढ़ाते हुए फारवर्ड प्रेस ने पुस्तकों का प्रकाशन शुरू किया। बिहार के पाठकों के लिए यह पहला अवसर होगा जब उनका फारवर्ड प्रेस अपनी किताबों के साथ मौजूद रहेगा। इसे ध्यान में रखते हुए फारवर्ड प्रेस के द्वारा जिन किताबों को विक्रय हेतु स्टॉल पर रखा जा रहा है, उनमें डॉ. आंबेडकर से संबंधित तीन किताबें शामिल हैं। इनमें से एक है लब्ध प्रतिष्ठित पत्रकार व संपादक रहे राजकिशोर द्वारा अनूदित ‘जाति का विनाश’। इस किताब की खासियत यह है कि इसमें डॉ. आंबेडकर का प्रथम शोध पत्र ‘भारत में जातियां : उनका तंत्र, उत्पत्ति और विकास’ भी शामिल है। यह किताब फारवर्ड प्रेस द्वारा संदर्भ-टिप्पणियों से सुसज्जित पुस्तकों की शृंखला की पहली किताब है। इसकी संदर्भ-टिप्पणियां डॉ. सिद्धार्थ ने लिखी है।

डॉ. आंबेडकर पर केंद्रित दूसरी किताब है– ‘हिंदू धर्म की पहेलियां’। मूल अंग्रेजी ‘रिडिल्स ऑफ हिंदुइज्म’ से सहज भाषा में इसका अनुवाद अमरीश हरदेनिया ने किया है। फारवर्ड प्रेस द्वारा संदर्भ-टिप्पणियों से सुसज्जित पुस्तकों की शृंखला में यह दूसरी किताब है। इसका संकलन, संपादन और इसके संदर्भ-टिप्पणीकार डॉ. सिद्धार्थ हैं। इसकी भूमिका जानेमाने बहुजन समाजशास्त्री प्रो. कांचा आइलैय्या शेपर्ड ने लिखी है। अपनी भूमिका में उन्होंने हिंदू धर्म के मिथकों बारे में डॉ. आंबेडकर की दृष्टि को मौजूदा दौर के सापेक्ष व्याख्यायित किया है।

डॉ. आंबेडकर के विचारों से लैस तीसरी किताब, जो बिहार के पाठकों को पसंद आएगी, वह है– ‘आंबेडकर की नजर में गांधी और गांधीवाद’। इसका संपादन डॉ. सिद्धार्थ और अलख निरंजन ने किया है। इस किताब की प्रशंसा करते हुए दिवंगत समालोचक प्रो. चौथीराम यादव ने लिखा– “यह पुस्तक मेरे लिए इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि गांधी और आंबेडकर के बीच हुए वाद-विवाद का कोई प्रामाणिक दस्तावेज मेरे पास उपलब्ध नहीं था। इसके लिए फारवर्ड प्रेस का आभार तथा दोनों संपादकों– सिद्धार्थ व अलख निरंजन को हार्दिक बधाई! इसमें कई ऐसे लेख हैं, जो गांधी पर आंबेडकर के बेबाक विचारों को समझने के लिए जरूरी हैं।” 

पिछले पंद्रह वर्षों से दलित-बहुजन वैचारिकी के प्रसार में गतिमान फारवर्ड प्रेस द्वारा जोतीराव फुले व उनकी विचारधारा पर केंद्रित दो किताबें पाठकों के लिए उपलब्ध रहेंगीं। इनमें एक है ‘गुलामगिरी’, जिसका मूल मराठी से सहज अनुवाद उज्ज्वला म्हात्रे ने किया है। संदर्भ-टिप्पणियों से सुसज्जित पुस्तकों की शृंखला में यह फारवर्ड प्रेस की तीसरी किताब है। इसमें संदर्भ-टिप्पणियां डॉ. रामसूरत व आयवन कोस्का द्वारा तैयार की गई हैं। फुले साहित्य की दूसरी किताब ‘सावित्रीनामा’ है, जिसमें सावित्रीबाई फुले की रचनाओं का समग्र संकलन है। इसे भी मूल मराठी से लिया गया है, जिसका अनुवाद उज्ज्वला म्हात्रे ने किया है और इसकी प्रस्तावना फुले साहित्य के विशेषज्ञ दिवंगत हरी नरके ने लिखी है। 

बिहार की धरती कबीरपंथ की ऊर्वर धरती रही है। इसका उल्लेख कबीर से जुड़े इतिहास में ब्रिटिश शोधकर्ता एफ.ई. केइ ने अपनी किताब ‘कबीर एंड हिज फॉलोअर्स’ में 1931 में किया था। इसका अनुवाद प्रसिद्ध समालोचक कंवल भारती ने किया है। यह ‘कबीर और कबीरपंथ’ शीर्षक से फारवर्ड प्रेस द्वारा प्रकाशित है। इतिहास को समृद्ध करती मिस कैथरीन मेयाे द्वारा लिखित ‘मदर इंडिया’ कंवल भारती द्वारा अनूदित एक और किताब है, जिसमें पाठक ब्रिटिश काल में दलित-बहुजन समाज की वास्तविक तस्वीर देख सकते हैं।

वहीं फारवर्ड प्रेस के स्टॉल पर पेरियार के विचारों पर आधारित पुस्तक ‘ई.वी. रामासामी पेरियार : दर्शन-चिंतन और सच्ची रामायण’ भी बिक्री के लिए उपलब्ध रहेगी। इस किताब में पेरियार की विशेष पुस्तक ‘सच्ची रामायण’ भी उनके चुनिंदा आलेखों के साथ संकलित है।

फारवर्ड प्रेस प्रो. कांचा आइलैय्या की बहुचर्चित पुस्तक ‘हिंदुत्व मुक्त भारत की ओर’ को भी बिहार के पाठकों के बीच उपलब्ध करा रहा है। दलित-बहुजन समुदायों के जीवन और उनके अर्थशास्त्र को रेखांकित करती यह किताब बताती है कि किस तरह दलित-बहुजन समुदायों के पारंपरिक कौशल की उपेक्षा की गई और यह भी कि कैसे ये समुदाय समतामूलक भारत के निर्माण में अपनी भूमिका का निर्वहन कर सकते हैं।

इन पुस्तकों के अलावा बिहार के सुधी पाठक फारवर्ड प्रेस द्वारा प्रकाशित ‘महिषासुर : मिथक और परंपराएं’ (संपादन : प्रमोद रंजन), ‘दलित पैंथर का आधिकारिक इतिहास’ (लेखक जेवी पवार) आदि भी मेले में मौजूद पाएंगे।

फारवर्ड प्रेस की किताबों और स्टॉल से संबंधित जानकारी के लिए क्षितिज कुमार से उनके दूरभाष संख्या 7042230386 पर  संपर्क किया जा सकता है।

लेखक के बारे में

एफपी डेस्‍क

संबंधित आलेख

दिल्ली विधानसभा चुनाव : बसपा के पास न जीतने की रणनीति और न नीयत
बसपा की आदत अपने उम्मीदवारों को टिकट देकर भूल जाने की है। उम्मीदवारों को अपने दम पर चुनाव लड़ना पड़ता है। पार्टी न तो...
जब आरएसएस के सवाल पर लोहिया से भिड़ गए थे मधु लिमये
मधु लिमये बहुत हद तक डॉ. आंबेडकर से प्रेरित दिखते हैं। जाति प्रथा के ख़ात्मे तथा आरक्षण, जिसे वह सामाजिक न्याय के सिद्धांत का...
आंबेडकरवादी राजनीति : फैशन या लोकतांत्रिकरण?
सच तो यह है कि आंबेडकर का नाम बार-बार लेना (अमित शाह के शब्दों में फैशन) राजनीतिक संस्कृति के लोकतांत्रिकरण का एक प्रमाण है।...
दिल्ली विधानसभा चुनाव : सांप्रदायिकता का खेल तेज
दिल्ली में ज्यादातर गरीब मुसलमानों और दलितों की ऐसी बस्तियां हैं, जहां पानी, सड़क और सफाई जैसी बुनियादी समस्याएं हैं। लेकिन राजनीतिक दल इन...
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव : दलित, ओबीसी और मुसलमानों के लिए तमिलनाडु मॉडल ही एकमात्र विकल्प (अंतिम भाग)
ओबीसी, दलित और मुसलमानों को सुरक्षा और स्वाभिमान की राजनीति चाहिए जो कि मराठा-ब्राह्मण जातियों की पार्टियों द्वारा संभव ही नहीं है, क्योंकि सत्ता...