मुज़फ़्फ़रपुर (बिहार) स्थित पुलिस लाइन में आयोजित अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा के कार्यक्रम में फूलन देवी की हत्या के आरोप में सजायाफ्ता शेर सिंह राणा के, प्रतिबंध के बावजूद, आने और भाषण देकर निकल जाने की घटना ने स्थानीय पुलिस–प्रशासन से लेकर नीतीश सरकार तक की दलितों के प्रति नियत को संदेह के घेरे में डाल दिया है। इसे लेकर मुख्य विपक्षी पार्टी राष्ट्रीय जनता दल समेत विभिन्न दलित संगठनों में जबरदस्त उबाल है।

राणा के आगमन के विरोध में इन संगठनों ने प्रदर्शन किया और शहर के लक्ष्मी चौक पर टायर जलाकर सड़क जाम भी किया। हालांकि डीएम धर्मेंद्र सिंह और प्रभारी एसएसपी उपेंद्र नाथ वर्मा समेत स्थानीय पुलिस–प्रशासन ने तुरंत चौकसी दिखलाते हुए माहौल को तो तत्काल शांत करा दिया है, लेकिन अंदर–अंदर विरोध की आग सुलग रही है। भारी विरोध और पुलिस–प्रशासन के प्रतिबंध के बावजूद राणा का आकर भाषण दे जाना एक और खतरनाक माहौल का संकेत दे रही है। ऐसा लगता है मानो आमतौर पर शांतिप्रिय शहर मुज़फ़्फ़रपुर दलित अधिकारों को लेकर समर्थन और विरोध के किसी जबरदस्त दावानल के ऊपर है। याद रहे, सहारनपुर (यूपी) के शब्बीरपुर में पिछले वर्ष हुए दलित विरोधी हमलों के लिए इसी शेर सिंह राणा को मास्टर माइंड भी कहा जाता रहा है।

शेर सिंह राणा के बिहार आगमन को लेकर पिछले दिनों बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता और पूर्व उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने भारी विरोध प्रकट किया था। फेसबुक पर 21 अप्रैल के अपने पोस्ट में तेजस्वी लिखते हैं– “वंचित जमात की फूलन देवी का हत्यारा कल बिहार की पावन धरती पर अपना कलंकित कदम रखने की कोशिश करेगा। इस हत्यारे का विरोध होना चाहिए। नीतीश राज में अब यही देखना रह गया है। लालू राज में यही तो नहीं होता था इसलिए तो तथाकथित ऊंची जातियों के लोग लालू जी को गरियाते हैं। लालू जी का राज होता तो मार लाठी के उल्टा खदेड़ दिया जाता। रामविलास जी तो फूलन देवी को अपनी बहन मानते थे। अब क्या हो गया?” राजद नेता तेजस्वी यादव ने अपने फेसबुक पोस्ट के साथ पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह और रामविलास पासवान के साथ फूलन देवी की फोटो भी लगाई थी। उनकी पार्टी समेत निषाद विकास संघ, एकलव्य सेना, राष्ट्रीय मूल निवासी मछुआरा संघ, भीम आर्मी, अखिल भारतीय रविदास महासभा आदि संगठनों ने मुज़फ़्फ़रपुर में राणा के कार्यक्रम को लेकर जबरदस्त विरोध किया था। पुलिस–प्रशासन ने भी राणा पर प्रतिबंध लगा दिया था। मगर सबको चकमा देकर और प्रतिबन्ध को धता बताते हुए, शेर सिंह राणा न केवल मुज़फ़्फ़रपुर आया, बल्कि पुलिस लाइन में आयोजित कार्यक्रम में भाषण देकर निकल भी गया। घटना के बाद लाठी पीटना वाली मुज़फ़्फ़रपुर पुलिस ने सफाई दी कि उनके पास राणा की फोटो ही नहीं थी, इसलिए वे उसे पहचान ही नहीं पाए।

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पुलिस–प्रशासन की यही दलील इस मसले पर उसकी तत्परता और नियत को रेखांकित करती है। राणा के मुज़फ़्फ़रपुर आकर चले जाने और व्यापक जन विरोध के बावजूद इस मसले पर सत्ता के गलियारे से भी कोई प्रतिक्रिया नहीं आ रही। खुद नीतीश जी की पार्टी जदयू के प्रदेश अध्यक्ष राज्यसभा सांसद बशिष्ठ नारायण सिंह भी इस मुद्दे पर बोलने से बच रहे हैं। फूलन देवी की निषाद जाति से ही आने वाले मुज़फ़्फ़रपुर के बीजेपी सांसद अजय निषाद भी इस मसले पर कुछ कहने से मना करते हैं। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नए एनडीए अवतार में यह सब कोई अप्रत्याशित नहीं है। बिहार की गतिविधियों पर पैनी नज़र रखने वाले नीतीश सरकार के दलित प्रेम को केवल दिखावा बताते हैं। इसे समझने के लिए एक उदाहरण काफी है– पिछले दिनों संपन्न अंबेडकर जन्मदिवस (14 अप्रैल) पर बिहार के मुख्यमंत्री या राज्यपाल का न तो कोई शुभकामना संदेश बिहार की मीडिया में कहीं था, और न ही नीतीश सरकार के किसी विभाग का इस दिवस को लेकर या इसके बहाने से कोई विज्ञापन। इसके मुकाबले केंद्र की मोदी सरकार के कई विज्ञापन अखबारों में छाए हुए थे। दूसरे शब्दों में, नीतीश सरकार दलितों से प्रेम क्या करे, उसे तो दलित प्रेम का दिखावा करना भी नहीं आता।

शेर सिंह राणा का बिहार में आकर भाषण दे जाने की यह कोई पहली घटना नहीं है। वह बिहार आकर अलग–अलग शहरों में कार्यक्रमों में शामिल होता रहा है।ऐसे कार्यक्रमों में नंगी तलवारें लहराकर शौर्य प्रदर्शन करना आम बात है। इनमें सामाजिक सौहार्द्र और विकास आदि की बातें आमतौर पर नहीं या कम होती हैं। राजसत्ता व शासन पर अपने अधिकारों के पुराने दिनों को याद किया जाता है और वैसे ही भविष्य के सपने बुने जाते हैं। मुज़फ़्फ़रपुर, बिहार की भूमिहार–राजनीति का केंद्र और अन्य अगड़ी जातियों का भी गढ़ रहा है। लंबे समय से इस क्षेत्र से दलितों और पिछड़ों के राजनीतिक प्रतिनिधित्व और पूरे बिहार की राजनीति में बढ़े पिछड़ा वर्चस्व को लेकर यहां लगातार सुगबुगाहट बनी रही है। बीजेपी के फायर ब्रांड नेता और केंद्र में मंत्री गिरिराज सिंह काफी समय से मुज़फ़्फ़रपुर में अगड़ी जातियों, खासकर भूमिहारों की गोलबंदी को लेकर सक्रिय रहे हैं। क्षत्रिय महासभा का आयोजन और शेर सिंह राणा का मुज़फ़्फ़रपुर आगमन इन सबसे अलग होकर भी दलित, पिछड़ा व मुस्लिम विरोध के नाम पर समग्र अगड़ी जातियों को एकजुट करने का काम करता है। गड़बड़ी यह है कि जाति–समाज के नाम पर होने वाले इन कार्यक्रमों और उनमें दिखने वाली एकजुटता से किसी जाति या समग्र सामाजिक समुदाय की भलाई का कोई काम होने की बजाय आरक्षण और दबे–कुचले दलितों–पिछड़ों (और अब मुस्लिम भी) के खिलाफ मोर्चेबंदी की ही बात ज्यादा होती है।
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