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बहुजन नायकों की परंपरा ही इस देश की क्रांतिकारी परंपरा है

हिंदी नवजागरण का सिद्धांत गढ़ने वाले वामपंथी आलोचक रामविलास शर्मा जब नवजागरण की परंपरा की तलाश करते हैं तो, एक क्षण के लिए भी उनकी निगाह बहुजन नवजागरण की समृद्ध परंपरा और साहित्य की ओर नहीं जाती, ले-देकर कुछ कुछ द्विज या द्विज मानसिकता साहित्यकारों तक ही सिमटे रहते हैं

पेरियार ललई स्मृति गांव के लोग सम्मान 2018 व 2017 से सम्मानित किये गये क्रमश: प्रो. चौथीराम यादव  और आनंद स्वरूप वर्मा, पंकज बिष्ट को मिला राम प्रताप दास स्मृति सम्मान  

भारत में क्रांति का सपना देखने वाले मार्क्सवादी सिद्धांतों के हवाई विमर्श में उलझे रहे हैं। उन्हें बुद्ध अपने नहीं लगे, फुले, पेरियार और आंबेडकर कभी अपने नहीं लगे। उन्होंने अपने को भारत की क्रांतिकारी बहुजन परंपरा के साथ नहीं जोड़ा। जबकि वास्तविकता यह है कि बहुजन नायकों की परंपरा ही इस देश की क्रांतिकारी परंपरा है। ये बातें प्रसिद्ध साहित्य आलोचक प्रोफेसर चौथीराम यादव ने बीते 26 मई को नई दिल्ली के नारायण दत्त तिवारी सभागार में गांव के लोग सोशल एंड एजुकेशनल ट्रस्ट, वाराणसी द्वारा आयोजित सम्मान समारोह को संबोधित करते हुए कही।

प्रो. चौथी राम यादव को सम्मानित करते मुख्य अतिथि

उन्हें वर्ष 2018 के लिए पेरियार ललई स्मृति गांव के लोग सम्मान दिया गया। जबकि प्रसिद्ध पत्रकार, अनुवादक और संपादक आनंद स्वरूप वर्मा को यही सम्मान 2017 के लिए दिया गया। वहीं मासिक पत्रिका समयांतर के संपादक पंकज बिष्ट को राम प्रताप दास स्मृति गांव के लोग सम्मान दिया गया। सम्मान के रूप में सभी को दस-दस हजार रुपए और शॉल प्रदान किया गया।

आनंद स्वरूप वर्मा को मिला पेरियार ललई स्मृति गांव के लोग सम्मान 2017

बहुजनों नायकों को अपना नहीं मानता भारतीय वामपंथ

इस मौके पर अपने संबोधन के दौरान प्रो. चौथीराम यादव ने कई सवाल खड़े किये। उन्होंने भारतीय मार्क्सवादियों पर भी जमकर प्रहार किया। उन्होंने कहा कि मंगल पाण्डेय को महानायक बना दिया गया जबकि यह सबको पता है कि मंगल पाण्डेय एक सैनिक सिपाही था, जिसने विद्रोह किया। लेकिन यह कितनों को पता है कि ललई सिंह यादव भी सिपाही थे और सिपाही के रूप में विद्रोह किया था। 1933 में ग्वालियर की सशस्त्र पुलिस बल में बतौर सिपाही भर्ती हुए थे। पर कांग्रेस के स्वराज का समर्थन करने के कारण, जो ब्रिटिश हुकूमत में जुर्म था, वह दो साल बाद बरखास्त कर दिए गए। उन्होंने अपील की और अपील में वह बहाल कर दिए गए। 1946 में उन्होंने ग्वालियर में ही ‘नान-गजेटेड मुलाजिमान पुलिस एण्ड आर्मी संघ’ की स्थापना की, और सर्वसम्मति से इसके अध्यक्ष बने। इस संघ के द्वारा उन्होंने पुलिसकर्मियों की समस्याएं उठाईं और उसके लिए उच्च अधिकारियों से लड़े।

पेरियार ललई स्मृति गांव के लोग सम्मान 2018 को संबोधित करते प्रो. चौथी राम यादव

प्रो. यादव ने कहा कि वामपंथियों ने पेरियार, ललई सिंह जैसे जमीनी क्रांतिकारियों के साथ अपने को कभी नहीं जोड़ा। रामस्वरूप वर्मा की क्रांतिकारी विरासत की ओर नजर उठाकर भी नहीं देखा। बिहार के लेनिन कहे जाने वाले जगदेव बाबू के संघर्षों को कभी याद नहीं किया। पुनर्जागरण के पुरोधा के रूप में राजाराम मोहन राय को सिंहासन पर बैठा दिया, लेकिन पुनर्जागरण के वास्तविक जनक जोतीराव फुले को कभी अपना नहीं माना। उन्होंने कहा कि जनसाहित्य की उपस्थिति का रोना रोते रहे, लेकिन ललई सिंह यादव के द्वारा लिखे साहित्य को प्रगतिशील जन साहित्य नहीं माना। शायद ही कुछ लोगों को पता हो कि ललई सिंह यादव ने पांच जन-नाटक  लिखे। इनमें अंगुलीमाल नाटक, शम्बूक वध, सन्त माया बलिदान, एकलव्य और नाग यज्ञ नाटक शामिल हैं। ये पांचों नाटक बहुजन परंपरा नायकों और उसकी प्रगतिशील मानवीय विरासत को सामने लाते हैं और वौदिक ब्राह्मणवादी संस्कृति के कुरूप चरित्र को उजागर करते हैं।

द्विज मानसिकता  से ग्रसित थे रामविलास शर्मा

प्रो. चौथीराम यादव ने कहा कि ये नाटक हिंदी साहित्य की प्रगतिशील विरासत को आगे ले जा सकते थे, लेकिन हिंदी वामपंथी आलोचकों ने इन्हें साहित्य माना ही नहीं। हिंदी नवजागरण का सिद्धांत गढ़ने वाले वामपंथी आलोचक रामविलास शर्मा जब नवजागरण की परंपरा की तलाश करते हैं तो, एक क्षण के लिए भी उनकी निगाह बहुजन नवजागरण की समृद्ध परंपरा की ओर नहीं जाती, ले-देकर कुछ कुछ द्विज या द्विज मानसिकता साहित्यकारों तक ही सिमटे रहते हैं।

कार्यक्रम के दौरान उपस्थित गणमान्य

उन्होंने कहा कि वामपंथ और बहुजन परंपरा के बीच उसी समय दरार पड़ गई थी, जब डॉ. आंबेडकर और कम्युनिस्ट पार्टी के नेता डांगे के पहली टकराहट शुरू हुई। डांगे कहते थे कि आर्थिक मुक्ति के बाद सामाजिक मुक्ति हो जायेगी। जबकि आंबेडकर का कहना था कि सामाजिक मुक्ति और आर्थिक मुक्ति की लड़ाई एक साथ लड़ी जानी चाहिए।  वे सही थे। पूंजीवाद तो आया, लेकिन क्या वर्ण व्यवस्था और जाति से मुक्ति मिली? सच तो यह है कि भारतीय वामपंथियों ने ब्राह्मणवाद को कभी अपना दुश्मन माना ही नहीं। वर्ण और जाति व्यवस्था से पैदा हुई दासता, अपमान और शोषण-उत्पीड़न उनके लिए कोई मुद्दा ही नहीं था।

बहुजनों का है मराठी का प्रगतिशील साहित्य

प्रो. यादव ने जोर देते हुए कहा कि सच तो यह  है कि हिंदी के आधुनिक साहित्य पर द्विजों और द्विज मानसिकता के लोगों का वर्चस्व ही कायम रहा, बहुजन परंपरा और इसके द्वारा सृजित साहित्य को इन्होंने अपनाया ही नहीं, जिसका परिणाम यह निकला कि इनके पास अंगुली पर गिनने के लिए साहित्यकार नहीं, जिन्हें जनता अपना लेखक मानती हो। इसके उलट मराठी भाषा के प्रगतिशील वामपंथी साहित्य ने बहुजन-दलित साहित्य को अपनाया। आज मराठी का प्रगतिशील साहित्य बहुजन साहित्यकारों का ही साहित्य है जिसकी व्यापक जन तक पहुंच है।

देश का नेतृत्व करने को बहुजन तैयार

उन्होंने कहा कि आज सभी चिंतित हैं। पूरे देश पर संघ और उसके आनुषांगिक संगठनों का नियंत्रण और वर्चस्व कायम हो गया है। न केवल राजनीतिक-आर्थिक बल्कि सामाजिक जीवन पर भी उन्होंने नियंत्रण कायम कर लिया है। सभी चिन्तित हैं कि इनका मुकाबला कैसे किया जाय।  उन्होंने कहा कि इनसे मुकाबला बहुजन समाज ही कर सकता है, जिसमें दलित, ओबीसी, अल्पसंख्यक और महिलाएं शामिल हैं। आदिवासी तो पहले से ही लड़ रहे हैं और वे तो सबसे ज्यादा मार झेल रहे हैं। उनका तो कत्लेआम किया जा रहा है, लेकिन वे लड़ रहे हैं, कड़ा प्रतिवाद और प्रतिरोध कर रहे हैं। सरकार नक्सली के नाम पर आदिवासियों का सफाया कर रही है। बीते 2 अप्रैल को बहुजनों ने अपनी शक्ति दिखा दी है। आज के बहुजन समाज के युवा चेतना संपन्न हैं, वे देश और समाज को नई दिशा देने के लिए तत्पर हैं। वे फुले,पेरियार और आंबेडकर के साथ भगत सिंह को भी अपना नायक मानते हैं।

करीब एक घंटे के अपने संबोधन के दौरान प्रो. चौथीराम यादव ने कहा कि मार्क्सवाद एक सामाजिक विज्ञान है, जो चीजों को देखने, समझने और बदलने में मदद करता है। लेकिन देखना तो हमें अपनी आंखों से ही होगा। साथ ही यह भी ध्यान रखना होगा कि भारत में क्रांतिकारी परिवर्तन का कोई भी रास्ता आंबेडकर से होकर ही गुजरेगा।

रामस्वरूप वर्मा सम्मान देने की योजना

इससे पहले गांव के लोग पत्रिका के संपादक रामजी यादव ने ट्रस्ट और पत्रिका के उद्देश्यों के बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने कहा कि इसका मुख्य उद्देश्य पिछड़े, दलित और अल्पसंख्यक समाज की आवाज बनना है। साथ ही गावों के उन व्यक्तित्वों और प्रतिभाआों को सम्मानित करना है जो जीवन के किसी भी क्षेत्र में समाज को समृद्ध बना रहे हैं। इसके साथ ही आज के फासीवादी संकट और साम्प्रदायिक राजनीति  के खिलाफ वैचारिकी तैयार करना भी हमारा उद्देश्य हैं। आगे उन्होंने ने यह भी बताया कि रामस्वरूप वर्मा सम्मान देने की हमारी योजना है।

कार्यक्रम का संचालन यदुवंश प्रणय ने किया। वहीं स्वागत वक्तव्य बी.आर. विप्लवी ने दिया और धन्यवाद ज्ञापन गांव की ओर पत्रिका की कार्यकारी संपादक अपर्णा ने किया। कार्यक्रम के दौरान अनेक लेखक, पत्रकार, रंगकर्मी व अन्य बुद्धिजीवी उपस्थित रहे।

(कॉपी एडिटर : नवल)


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लेखक के बारे में

सिद्धार्थ

डॉ. सिद्धार्थ लेखक, पत्रकार और अनुवादक हैं। “सामाजिक क्रांति की योद्धा सावित्रीबाई फुले : जीवन के विविध आयाम” एवं “बहुजन नवजागरण और प्रतिरोध के विविध स्वर : बहुजन नायक और नायिकाएं” इनकी प्रकाशित पुस्तकें है। इन्होंने बद्रीनारायण की किताब “कांशीराम : लीडर ऑफ दलित्स” का हिंदी अनुवाद 'बहुजन नायक कांशीराम' नाम से किया है, जो राजकमल प्रकाशन द्वारा प्रकाशित है। साथ ही इन्होंने डॉ. आंबेडकर की किताब “जाति का विनाश” (अनुवादक : राजकिशोर) का एनोटेटेड संस्करण तैयार किया है, जो फारवर्ड प्रेस द्वारा प्रकाशित है।

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