इक्कीसवीं सदी के दूसरे दशक में भी झारखंड में अंधविश्वास इस कदर है कि लोग अपने ही लोगों की हत्या तक कर दे रहे हैं। बीते 2 मई को नामकुम प्रखंड हुआंगहातु पंचायत के सुकरीडीह गांव में लोहर सिंह मुंडा और उसकी पत्नी कैरी देवी की गांव के अखड़ा में ही ग्रामीणों ने डायन-बिसाही का आरोप लगा कर बड़ी बेरहमी से पीट-पीट कर मार डाला। दोनों आत्मसमर्णण कर चुके माओवादी नेता कुंदन पाहन के रिश्तेदार बताये जाते हैं। हालांकि इस बारे में रांची के सीनियर एसपी कुलदीप द्विवेदी ने इन्कार किया है। उनका कहना है कि इस घटना का कुंदन से कोई लेना-देना नहीं है।

गौर तलब है कि 2008 में भी मृतक दंपत्ति पर डायन-बिसाही का आरोप लगा कर पंचायत में 8 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया गया था। उस समय माओवादी कुंदन पाहन ने अपने भाई श्याम पाहन से चिरुडीह के ग्रामीणों को फोन करवा कर जुर्माने की रकम वापस करने का आदेश दिया था। डर के कारण ग्रामीणों ने जुर्माने के तौर पर ली रकम वापस कर दी थी। क्योंकि लोहर सिंह मुंडा और उसकी पत्नी तब के माओवादी पार्टी में सक्रिय रह चुके कुंदन पाहन के सगे मौसा-मौसी थे। 2017 में कुंदन पाहन ने नक्सल सरेंडर नीति के आलोक में सरेंडर कर दिया है।

पांचवी बार दे दी मौत की सजा
उल्लेखनीय है कि 2008 से 2 मई 2018 के बीच लोहर सिंह मुंडा और उसकी पत्नी कैरी देवी पर पंचायत में चार बार जुर्माना लगाया गया है। गांव में जब कभी भी किसी कारणवश किसी की मौत होती, तब उस मौत का आरोप इसी दंपत्ति पर लगाया जाता। 2 मई 2018 को इसी गांव के बिन्दु मुंडा की बेटी की मौत सांप काटने से हो गई थी, इसके लिए भी लोहर सिंह मुंडा और कैरी देवी को दोषी ठहराया गया। खूंटी जिला अंतर्गत भंडरा स्थित कांकी गांव का रहने वाला भगत (ओझा) एतवा मुंडा ने हत्या से पूर्व इस दंपत्ति पर 35 हजार रुपये नगद, 1 बैल, 6 खस्सी, 8 मुर्गा और बत्तख सहित एक सुअर देने का जुर्माना लगाया था। इस जुर्माने को भरने के लिए लोहर सिंह मुंडा को अपनी जमीन बेचनी पड़ी थी। यहीं नहीं इस दंपत्ति पर अत्याचार का दमन यही समाप्त नहीं हुआ। भगत एतवा मुंडा ने गांव वालों से कहा कि इन दोनों के उपर जो भूत है वह तब तक नहीं भागेगा जब तक ये दोनों जिन्दा हैं। भगत (ओझा) एतवा मुंडा द्वारा इस फरमान के बाद ही गांव वालों ने दोनों की हत्या कर उनके शव को जंगल में गाड़ दिया था।
भगत (ओझा) एतवा मुंडा उसी इलाके का है जहां पत्थलगड़ी परवान पर है। पुलिस भी उस इलाके में जाने की हिम्मत नहीं कर पाती, क्योंकि पिछले 25 अगस्त 2017 को इसी क्षेत्र के कांकी सिलादोन गांव के लोगों ने खूंटी के डीएसपी रणवीर कुमार सहित पुलिस टीम को बंधक बना लिया था। ग्रामीणों और पुलिस के बीच हल्की झड़प भी हुई थी। पुलिस को फायरिंग भी करनी पड़ी थी। करीब 24 घंटे के बाद बंधक बने पुलिसकर्मियों को मुक्त कराया जा सका था।
15 मई को जिला परिषद् सदस्य सह बाल संरक्षण आयोग की अध्यक्ष आरती कुजूर और हुआंगहातु पंचायत की मुखिया के साथ पत्रकारों की टीम सुकरीडीह गांव पहुंची। वहां कई घरों में ताला लटका हुआ था। इस टीम में सुरक्षा के मद्देनजर पुलिस के जवान भी थे। हत्या के नामजद आरोपियों के साथ साथ अन्य पुरुष सदस्य भी गांव छोड़ चुके थे। इस दौरान जिस अखड़ा में लोहर सिंह मुंडा और उसकी पत्नी की हत्या हुई थी।
गांव की महिलाओं ने बेटे को माता-पिता का कातिल बताया
उसी अखड़ा में टीम ने गांव की महिलाओं के साथ बैठक कर पूरे घटनाक्रम की जानकारी ली। महिलाओं के मुताबिक बिन्दु मुंडा (उस मृतक बच्ची के पिता जिसकी मौत सांप के काटने से हुई थी) ने सबसे पहले लोहर सिंह मुंडा को पंचायत में थप्पड मारा था, लेकिन तभी मुंडा (लोहर सिंह मुंडा का पुत्र) ने बिन्दु मुंडा को मारने से रोका और खुद पास ही पड़े लकडी के टुकड़े को उठा कर अपने पिता को पीटने लगा, जिसके बाद उसकी मौत हुई।

जबकि मुंडा ने ग्रामीणों के इस आरोप को बेबुनियाद बताया। वह कहता है कि सब जानते हैं कि मेरे मां-बाप की हत्या भगत एतवा मुंडा के यह कहने पर हुई है कि ‘इन दोनों के मरने के बाद ही इनके शरीर से भूत भागेगा।’ जिसके बाद ही अखड़ा में मेरे मां-बाप की हत्या कर दी गई। हत्या के आरोप में 18 मई को पुलिस ने पांच आरोपियों को गिरफ्तार किया है मगर भगत एतवा मुंडा अभी भी पुलिस की गिरफ्त से दूर है।
अबतक 11 हुए गिरफ्तार
घटना के बारे में रांची के सीनियर एसपी कुलदीप द्विवेदी ने बताया कि घटना को 2 मई को अंजाम दिया गया। लेकिन प्राथमिकी 11 मई को दर्ज की गई। उन्होंने कहा कि स्थानीय पुलिस ने मृतक दंपत्ति के पुत्र के बयान के आधार पर 11 लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज किया। इन सभी को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया है। एसएसपी ने कहा कि रांची में डायन प्रथा के खात्मे के लिए विशेष अभियान चलाये जा रहे हैं। इसके लिए पुलिस को भी जागरूक करने का अभियान चलाया गया है। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि इस घटना को माओवादी नेता कुंदन पाहन से कोई संबंध नहीं है।
बहरहाल भारत का 28वां राज्य झारखंड को बने 17 साल हो गए हैं। इस बीच केन्द्र और राज्य में कई सरकारे आईं। सभी सरकारों ने यहां के विकास को लेकर बड़़े-बड़े दावे किए। निस्संदेह राज्य में विकास को लेकर कई योजनाएं बनीं। सूचना प्राद्योगिकी से लेकर शिक्षा के क्षेत्र में भी कई क्रान्तिकारी बदलाव हुए। लेकिन आधुनिकता की यह लौ झारखंड के आदिवासी गांवों तक नहीं पहुंच पाई। आदिवासी समाज आज भी अंधविश्वास व अवैज्ञानिक जीवन पद्धति से मुक्त नहीं हो पाया है। परिणामस्वरूप आदिवासी बहुल क्षेत्रों में भूत-पिशाच, जादू-टोना, झाड़-फूंक जैसे अंधविश्वास और रुढ़िवाद के कारण आए दिन डायन, बिसाही के आरोप में लोगों की हत्याएं हो रही हैं।
(कॉपी एडिटिंग : ब्रह्मदेव/नवल )
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