ओबीसी से आने वाले छात्र/छात्राओं को हर हाल में अद्यतन दस्तावेज नामांकन के समय जमा करने होंगे। लेकिन विश्वविद्यालय द्वारा उन्हें एक महीने का समय दिया जा रहा है। वे आवेदन कर सकते हैं। ओबीसी की हकमारी को लेकर फारवर्ड प्रेस के संपादक(हिंदी) नवल किशोर कुमार ने दिल्ली विश्वविद्यालय के स्टूडेंट्स वेलफेयर के डिप्टी डीन गुरप्रीत सिंह टुटेजा से बातचीत की। प्रस्तुत है संपादित अंश :
विश्वविद्यालय द्वारा ओबीसी के छात्र/छात्राओं को ओबीसी और गैर क्रीमीलेयर का अद्यतन प्रमाण पत्र जमा करने को कहा जा रहा है। इसके लिए उन्हें समय भी नहीं दिया जा रहा है। आप क्या कहेंगे?
नहीं, अद्यतन का मतलब वर्तमान वित्तीय वर्ष में जारी प्रमाण पत्र जमा करने को नहीं कहा गया है। हम यह कह रहे हैं कि ओबीसी का प्रमाण 1 अप्रैल 2017 के बाद का होना चाहिए। जिनके पास पहले का प्रमाण पत्र है तो उन्हें एक सक्षम पदाधिकारी से अनुमोदन करवाना है। ओबीसी के छात्र/छात्राओं को हमने छूट दी है कि सक्षम पदाधिकारी जैसे तहसीलदार या फिर जिलाधिकारी के यहां अनुमोदन के लिए आवेदन करें और वहां से जो उन्हें पावती(एक्नॉलाजमेंट) प्राप्त होता है, उसकी रसीद संख्या नामांकन के लिए आवेदन करते समय उल्लेखित करें। एक महीने बाद जब नामांकन का समय आयेगा तबतक उनके पास प्रमाण पत्र भी होगा। तब वे उसे जमा कर सकेंगे।

दिल्ली के बाहर से आने वाले छात्र/छात्राओं के पास यदि समय नहीं हो, तो क्या उनका अंडरटेकिंग के आधार पर भी दाखिला लेंगे?
नहीं, दाखिला नहीं दे सकते हैं हम। दाखिले में हमें परेशानी है। दाखिला कॉलेज देता है। कॉलेज यह सब सर्टिफिकेट माँगता है। सुप्रीम कोर्ट का आदेश है कि क्रीमीलेयर से आने वाले छात्र/छात्राओं के नामांकन से पहले उनके प्रमाण पत्र सुनिश्चित किए जाएं। गैर क्रीमीलेयर साबित करने के कई और तरीके हैं। कई लोग आयकर रिटर्न आदि का सहारा लेते हैं। कॉलेज अक्सर उन्हें स्वीकार भी कर लेते हैं।
ग्रामीण इलाकों से आने वाले बच्चों को तो परेशानी होगी ही?
वहाँ तो और आसान है। तहसीलदार से आसानी से मिल जाता है।
यह भी पढ़ें : दिल्ली विश्वविद्यालय : ओबीसी आवेदकों की कोई सुनने वाला नहीं!
ओबीसी के छात्र/छात्राओं की समस्यायें इससे तो खत्म नहीं होंगी?
बहुत सारे छात्र/छात्राएं ओबीसी वर्ग के हैं। बहुतों को हमने यह बताया है कि वे अपने दस्तावेज पूरे करें। दूसरी बात यह कि हम इस बार हर ओबीसी कैंडिडेट से उनके राज्य के बारे में पूछते हैं और फिर उनकी सहायता करते हैं। दो दिन पहले एक अभिभावक का फोन आया। कहने लगे दिल्ली में जाट ओबीसी नहीं हैं। मैंने कहा कि दिल्ली विश्वविद्यालय में आरक्षण का लाभ ओबीसी के लिए केंद्र सरकार द्वारा जारी सूची के आधार पर मिलेगा। तब जाकर वे समझ सके। मैं तो चाहता हूं कि बच्चे अपने घर से बाहर निकल हमारे पास आयें। हम उनकी सहायता करेंगे। 15 मई से लेकर अबतक मैं करीब 1400 ईमेल का जवाब दे चुका हूं।
दिल्ली विश्वविद्यालय में एससी, एसटी और ओबीसी की शिकायतों के निवारण के लिए क्या कोई विशेष सेल बनाया गया है?
बिल्कुल है। शिकायत प्रकोष्ठ बनाया गया है। इसके जरिए सभी वर्गों के छात्रों की शिकायतों का निराकरण किया जाता है।
यानी फिलहाल ओबीसी,एससी और एसटी के लिए कोई विशेष सेल नहीं है?
देखिए, दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा हर बार एक पृथक प्रकोष्ठ बनाया जाता है। अभी एडमिशन प्रोसेस भी शुरू नहीं हुआ है। जब आगामी 19 जून से जब एडमिशन शुरू हो जाएँगे तब शिकायत निवारण कमेटी की बैठक होगी और तब इस मामले में कोई निर्णय लिया जायेगा। प्रो. अखिलेश इसके संयोजक हैं।
क्या यह विशेष रूप से एससी, एसटी और ओबीसी के छात्र/छात्राओं के लिए कार्य करेगी?
नहीं, एससी,एसटी सेल तो अलग से नहीं बनेगा। विश्वविद्यालय द्वारा ‘रेड बुक’ की व्यवस्था की जाती है। नामांकन में परेशानियों को लेकर छात्र/छात्राएं इसमें अपनी आपत्तियाें को दर्ज करा सकते हैं। तदुपरांत कार्रवाई की जाती है।
(लिप्यांतर : प्रेम बरेलवी)
फारवर्ड प्रेस वेब पोर्टल के अतिरिक्त बहुजन मुद्दों की पुस्तकों का प्रकाशक भी है। एफपी बुक्स के नाम से जारी होने वाली ये किताबें बहुजन (दलित, ओबीसी, आदिवासी, घुमंतु, पसमांदा समुदाय) तबकों के साहित्य, सस्कृति व सामाजिक-राजनीति की व्यापक समस्याओं के साथ-साथ इसके सूक्ष्म पहलुओं को भी गहराई से उजागर करती हैं। एफपी बुक्स की सूची जानने अथवा किताबें मंगवाने के लिए संपर्क करें। मोबाइल : +919968527911, ईमेल : info@forwardmagazine.in
फारवर्ड प्रेस की किताबें किंडल पर प्रिंट की तुलना में सस्ते दामों पर उपलब्ध हैं। कृपया इन लिंकों पर देखें :
दलित पैंथर्स : एन ऑथरेटिव हिस्ट्री : लेखक : जेवी पवार