कोरेगांव-भीमा और शनिवारवाड़ा में लोगों को हिंसा के लिए उकसाने और प्रेरित करने के आरोप में महाराष्ट्र पुलिस ने 6 जून को पांच लोगों को गिरफ्तार किया। गिरफ्तार लोगों में दलित लेखक-कार्यकर्ता सुधीर ढावले, प्रोफेसर सोमा सेन, एडवोकेट सुरेन्द्र गाड़लिंग, रोना विल्सन और महेश राऊत शामिल हैं। सुधीर ढावले दलित लेखक और कार्यकर्ता हैं और विद्रोही पत्रिका के संपादक हैं, जबकि सुरेंद्र गाडलिंग एसोसिएशन ऑफ पीपुल्स लायर्स ( नागपुर) के सचिव हैं। प्रोफेसर सोमा सेन नागपुर विश्वविद्यालय के अंग्रेजी विभाग की विभागाध्यक्ष हैं। रोना विल्सन पब्लिक रिलेशन कमेटी फॉर रिलीज ऑफ पॉलिटिकल प्रिजनर्स के सचिव हैं और महेश राऊत भारत जनआंदोलन के विस्थापन विरोधी कार्यकर्ता हैंं।

इन सभी को कोरेगांव-भीमा और शनिवारवाड़ा में हिंसा उकसाने और लोगों को हिंसा के लिए प्रेरित करने के आरोपों में गिरफ्तार किया गया है। इन्हें 8 जून 2018 को दर्ज मुकदमे के तहत गिरफ्तार किया गया है। शुरू में जो एफआईआर दर्ज की गई थी, उसमें सिर्फ सुधीर ढावले और सुरेन्द्र गाडलिंग का नाम था। अब उसमें प्रोेफेसर सोमा सेन, रोना विल्सन और महेश राऊत के नाम भी जोड़े दिये गये हैं।

यह एफआईआर पुणे के विश्राम बाग़ पुलिस स्टेशन में दर्ज करायी गयी थी। आरोप यह था कि एलगार परिषद ने 31 दिसंबर 2017 को शनिवारवाड़ा और 1 जनवरी 2018 को भीमा-कोरेगांव में शौर्य दिन प्रेरणा अभियान आयोजित करके लोगों को हिंसा के लिए उकसाया। मूल रूप में एफआईआर भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 153 (A), 505(1)(b), 117 और 34 के दहत दर्ज करायी गयी थी। अब इसके साथ गैर कानूनी गतिविधि निवारक अधिनियम (UAPA) भी जोड़ दिया गया है। कल 6 जून की गिरफ्तारी इसी के तहत की गई। हम सभी जानते हैं कि गैर-कानूनी गतिविधि निवारक अधिनियम में कितने क्रूर, निष्ठुर और सख्त प्रावधान शामिल हैं। इसके तहत लंबे समय के लिए बंदी बनाया जा सकता है और जमानत हासिल करना भी बहुत ही मुश्किल होता है।

याद दिलाते चलें कि 1 जनवरी 2018 को लाखों की संख्या में लोग कोरेगांव-भीमा में जुटे थे। इसमें दलित-बहुजन समुदाय के लोगऔर अन्य प्रगतिशील व्यक्ति शामिल थे। दलित-बहुजनों की यह जुटान ब्राह्मणवादी पेशवाई शासन के अंत के 200 वर्ष बीतने पर हुई थी। पेशवा की सेना को पराजित करने में अछूत कहे जाने वाले महार सैनिकों की निर्णायक भूमिका थी। 1 जनवरी 1818 को भीमा नदी के किनारे हुए इस युद्ध ने ब्राह्मणवादी पेशवाई का अन्त कर दिया था। इसके चलते दलित-बहुजनों और महिलाओं के लिए एक नए युग की शुरुआत हुई थी। 1927 में आंबेडकर कोरेगांव-भीमा गये थे और उन्होंने इस स्थल को दलित के शौर्य के स्थल के रूप में याद किया। इस बार कोरगांव-भीमा की इस जुटान में प्रकाश आंबेडकर की भी अहम भूमिका थी। जिग्नेश मेवाणी, उमर खालिद और रोहित बेमुला की मां राधिका बेमुला ने भी इसमें हिस्सेदारी की थी।

हम सभी को याद होगा कि जब 1 जनवरी 2018 को दलित-बहुजन कोरेगांव-भीमा जा रहे थे, तो हिंदुत्ववादी संगठन के लोगों ने उन पर घातक हमला बोल दिया था। इस हमले में सैकड़ों लोग घायल हुए थे। बड़े पैमाने पर दलित-बहुजनों की गाड़ियों में आग लगा दी गयी थी। इस हिंसा के लिए संभाजी भिंडे और मिलिंद एकबोटे को दलित-बहुजन संगठनों ने जिम्मेदार माना था। उनके खिलाफ एफआईआर भी दर्ज कराई गई थी। लेकिन संभाजी भिंडे को आज तक गिरफ्तार नहीं किया गया। याद रहे कि संभाजी भिंडे को हमारे माननीय प्रधानमंत्री मोदी जी गुरु जी कहकर संबोधित करते हैं। दलित-बहुजन संगठनों के दबाव पर काफी दिनों की टालमटोल के मिलिंद एकबोटे की गिरफ्तारी हुई, लेकिन जल्द ही उसे जमानत भी मिल गई।

अब दलित-बहुजन कार्यकर्ताओं और उनके समर्थक बुद्धिजीवियों को कोरेगांव-भीमा की हिंसा के लिए जिम्मेदार ठहराकर और उनका संबंध माओवादी शहरी नेटवर्क से जोड़कर लंबे समय के लिए जेल की सलाखों के पीछे भेजने की प्रक्रिया शुरू की गई है। उत्तर प्रदेश में पहले से भीम आर्मी के अगुवा चंद्रशेखर आज़ाद ‘रावण’ को जमानत मिलने के बाद भी रासुका के तहत जेल में बंद करके रखा गया है।
(संपादन : प्रेम बरेलवी)
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