h n

कौन है इस वैश्य परिवार की सामूहिक आत्महत्या का जिम्मेवार?

नोटबंदी और जीएसटी के कारण व्यापारी वर्ग क्या इस कदर निराश हो चुका है कि वह अपने पूरे परिवार के साथ खुदकुशी कर रहा है? पुलिस के शब्दों में भले यह खुदकुशी का मामला हो, वास्तव में सामूहिक हत्या  ही है। कारोबार के दिन-प्रतिदिन बदत्तर होते हालात में व्यापारियों को सूझ ही नहीं रहा है कि वे क्या करें। इस पूरी स्थिति के बारे में बता रहे हैं विशद कुमार :

झारखंड की राजधानी रांची से 90 किलोमीटर दूर हजारीबाग में 14 जुलाई की देर रात को एक वैश्य परिवार के छह सदस्यों की मौत से पूरा क्षेत्र सन्न रह गया। पुलिस का कहना है कि प्रथम दृष्टया यह कर्ज में डूबे होने की वजह से खुदकुशी का मामला है। कहा जा रहा है कि यह आत्महत्या मौजूदा केंद्र सरकार की नीतियों का परिणाम है। भाजपा के नेतृत्व वाली इस सरकार ने जो नीतियां बनाईं हैं, वह छोटे व्यापारियों पर कह ढा रही हैं। त्रासद यह है कि इसकी सबसे अधिक मार भाजपा को अपनी पार्टी मानने वाले  निम्न-वैश्य समुदाय पर ही पड़ रही है। ताजा घटना उसी की एक बानगी है। 

उजड़ गया हंसता-खेलता परिवार

यह घटना हजारीबाग के सदर थाना क्षेत्र स्थित मुनगा बगीचा के खजांची तालाब के पास की है। घटना हजारीबाग के खजांची तालाब के निकट सीडीएम अपार्टमेंट की है। मृतकों में  नरेश माहेश्वरी (40) वर्ष, महावीर माहेश्वरी (70) वर्ष, किरण माहेश्वरी (65) वर्ष, प्रीति माहेश्वरी (38) वर्ष, अन्वी माहेश्वरी (6) वर्ष अमन माहेश्वरी (8) वर्ष  है। पुलिस के अनुसार परिवार के छह सदस्यों में से दो बुजुर्ग सदस्यों (पति-पत्नी) ने फांसी लगाकर जान दी। वहीं एक बच्चे की धारदार हथियार से हत्या की गयी। जबकि एक बच्ची को जहर देकर मारा गया। एक महिला की गला दबाकर हत्या की गयी है। वहीं एक व्यक्ति की मौत छत से गिरने से हुई है।

भारतीय सामाजिक और राजनीतिक सरोकारेां पर आधारित पुस्तक ‘चिंतन के जन सरोकार’ अब अमेजन पर उपलब्ध

बताया जाता है कि नरेश माहेश्वरी ने पहले अपनी पत्नी और बच्चों की हत्या की और अंत में टेरेस से कूदकर आत्महत्या कर ली। इस शख्स का नाम नरेश माहेश्वरी है। शहर के अपार्टमेंट के तीसरे तल्ले के 303 और 304 नंबर फ्लैट में नरेश माहेश्वरी अपने पूरे परिवार के साथ रहता थे। परिवार में उसकी मां, पिता, पत्नी और दो बच्चे थे। पुलिस को अपार्टमेंट के कमरे से एक सुसाइड नोट बरामद हुआ है। ब्राउन रंग के लिफाफे पर लाल स्याही से लिखा हुआ है कि अमन को लटका नहीं सकते थे, इसलिए उसकी हत्या की। इसके नीचे नीली स्याही से मोटे अक्षरों में सुसाइड नोट लिखा हुआ है और उसके नीचे लिखा है : बीमारी + दुकान बंद + दुकानदारों का बकाया न देना + बदनामी + कर्ज = तनाव (टेंशन) = मौत ।

पुलिस को बरामद सुसाइड नोट

शुरुआती जांच में इसे आत्महत्या का मामला माना जा रहा है। लेकिन पुलिस हत्या की आशंका से भी इंकार नहीं कर रही है। कहा जा रहा है कि एक साथ छह लोगों की मौत के इस मंजर से ऐसा लगता है कि किसी ने इन सबकी हत्या की है। घटना की सूचना मिलते ही घटनास्थल पर पहुंचे डीएसपी ने बताया कि नरेश के घर से एक सुसाइड नोट बरामद हुआ है इसमें मौत के कारणों का जिक्र किया गया है। सुसाइड नोट में लिखा है कि नरेश कर्ज में डूब गया था। उसका कारोबार भी सही नहीं चल रहा था, कि वह लोगों का कर्ज चुका सके। कर्ज से परेशान होकर उसने ऐसा कदम उठाया है। नरेश माहेश्वरी का पूरा परिवार 50 लाख रुपये के कर्ज में डूबा था। नरेश का ड्राइ फ्रूट्स का पुश्तैनी धंधा दो महीने से ठप था। डीएसपी के अनुसार चार लिफाफे के अंदर अलग-अलग कागज में परिवार के सदस्य महावीर महेश्वरी, नरेश महेश्वरी, किरण महेश्वरी और प्रीति अग्रवाल के हस्ताक्षर थे। दो लिफाफे के ऊपर लाल रंग की सियाही से लिखा था-अमन को लटका नहीं सकते थे। इसलिए उसकी हत्या की गयी। कूलर पर खून से सना ब्लेड मिला। सेंटर टेबुल पर इथर से भरा बोतल और रूई मिले हैं। पावर ऑफ एट्रॉनी के लिए एक रुपये का स्टांप पेपर भी मिला है।

इस सामूहिक आत्महत्या के कारणों पर मृतक महावीर महेश्वरी के चचेरे भाई सावरमल माहेश्वरी बताते हैं कि नोटबंदी और जीएसटी के बाद इनका बहुत सारा पैसा बाजार में फंस गया था । ऐसी कई छोटी दुकानें बंद हो गईं जिन्हें इनके यहां से माल जाता था। जिनकी दुकानें बंद हुईं उनमें से कुछ लोगों के यहां से ही रिकवरी हो पाई, लेकिन ज्यादातर लोगों से रिकवरी नहीं हो पाई थी, क्योंकि बहाना नोटबंदी थी। कारोबार को जिंदा रखने के लिए महावीर महेश्वरी ने महाजनों से उधार और कई लोगों से कर्ज लिया जो अब वे चुका नहीं पा रहे थे। कर्ज की वजह से सामाजिक प्रतिष्ठा गिरती जा रही थी। वे और उनका परिवार डिप्रेशन का शिकार होने लगा था।   

वहीं नरेश  माहेश्वरी के एक पड़ोसी कुलदीप कृष्णा ने बताया कि सुबह उसकी मां ने उसे नींद से जगाया और कहा कि नरेश माहेश्वरी नीचे गिरा हुआ है। लगता है बेहोश है। उन्होंने आकर देखा तो उसकी सांसें नहीं चल रहीं थीं। वह मृत पड़े थे। इसके बाद उन्होंने नरेश के रिश्तेदार को इसकी सूचना दी। पुलिस को भी फोन कर इसकी जानकारी दी गई। बाद में पता चला कि परिवार के सभी सदस्यों की मौत हो चुकी है।

पड़ोसियों ने बताया कि यह मारवाड़ी परिवार सूखे फलों का कारोबार करता था। पिछले कुछ महीनों से कारोबार में भारी नुकसान झेल रहा था। इसके चलते परिवार में आये दिन झगड़े हुआ करते थे। आशंका है कि इन्हीं परेशानियों के बाद परिवार ने यह कदम उठाया।

इलाज के लिए 17 को वेल्लोर जानेवाले थे नरेश

पूरा  परिवार दो माह पहले ही वैष्णो देवी व अन्य जगहों पर  घूमने गये थे। सभी करीब 15 दिन बाहर रहे थे। वहां से आने के बाद नरेश अपनी  स्कूटी से सड़क पर गिर गये थे। उनकी पीठ में चोट आ गयी थी। हजारीबाग व रांची के कई डॉक्टरों से इलाज कराया, पर ठीक नहीं हुआ। 17 जुलाई  को वह वेल्लोर जानेवाले थे।

सवाल : हत्या या आत्महत्या?

चौथे तल्ले से नरेश के छलांग लगाने से हुई मौत पर सवाल उठ रहे हैं। पुलिस के मुताबिक जहां से उनका शव मिला है, वहां बहुत अधिक खून नहीं फैला था। सिर में भी कोई चोट नहीं  थी। सिर्फ हाथ फ्रैक्चर हुआ है। तलवे में दो जख्म थे, जहां खून निकलने के निशान थे। नीचे या ऊपर कोई रॉड या कांटी नहीं मिली है जिससे इस तरह के जख्म होते सकते हैं। नरेश के पिता महावीर का पैर बेड से टीका हुआ था। घुटना मुड़ा हुआ था। मां किरण माहेश्वरी का सिर छत की ओर उठा हुआ था। प्रीति अग्रवाल का शव बेड पर था। उसके गले में साड़ी का फंदा था।  बच्ची आनवी के मुंह से झाग निकलने के निशान थे वहीं, अमन अग्रवाल का गला रेता हुआ है।

बहरहाल, मानवीय संवेदनाओं को झकझोर देनेवाली इस घटना को लेकर स्थानीय लोगों में तरह-तरह के सवाल हैं। सवाल वाजिब भी है। कोई माता-पिता व्यावसायिक असफलता के कारण अपने मासूम बेटे की ब्लेड से गला रेत दे और फिर अपनी मासूम बेटी को जहर देकर मारने के बाद फांसी लगा ले तो यह घटना वर्तमान में आर्थिक झंझावात से जुझते लोगों में निराशा की पराकाष्ठा है और चिंतनीय है।

(कॉपी एडिटर : नवल/सिद्धार्थ)


फारवर्ड प्रेस वेब पोर्टल के अतिरिक्‍त बहुजन मुद्दों की पुस्‍तकों का प्रकाशक भी है। एफपी बुक्‍स के नाम से जारी होने वाली ये किताबें बहुजन (दलित, ओबीसी, आदिवासी, घुमंतु, पसमांदा समुदाय) तबकों के साहित्‍य, सस्‍क‍ृति व सामाजिक-राजनीति की व्‍यापक समस्‍याओं के साथ-साथ इसके सूक्ष्म पहलुओं को भी गहराई से उजागर करती हैं। एफपी बुक्‍स की सूची जानने अथवा किताबें मंगवाने के लिए संपर्क करें। मोबाइल : +917827427311, ईमेल : info@forwardmagazine.in

फारवर्ड प्रेस की किताबें किंडल पर प्रिंट की तुलना में सस्ते दामों पर उपलब्ध हैं। कृपया इन लिंकों पर देखें :

बहुजन साहित्य की प्रस्तावना 

दलित पैंथर्स : एन ऑथरेटिव हिस्ट्री : लेखक : जेवी पवार 

महिषासुर एक जननायक’

महिषासुर : मिथक व परंपराए

जाति के प्रश्न पर कबी

चिंतन के जन सरोकार 

लेखक के बारे में

विशद कुमार

विशद कुमार साहित्यिक विधाओं सहित चित्रकला और फोटोग्राफी में हस्तक्षेप एवं आवाज, प्रभात खबर, बिहार आब्जर्बर, दैनिक जागरण, हिंदुस्तान, सीनियर इंडिया, इतवार समेत अनेक पत्र-पत्रिकाओं के लिए रिपोर्टिंग की तथा अमर उजाला, दैनिक भास्कर, नवभारत टाईम्स आदि के लिए लेख लिखे। इन दिनों स्वतंत्र पत्रकारिता के माध्यम से सामाजिक-राजनैतिक परिवर्तन के लिए काम कर रहे हैं

संबंधित आलेख

यूपी : दलित जैसे नहीं हैं अति पिछड़े, श्रेणी में शामिल करना न्यायसंगत नहीं
सामाजिक न्याय की दृष्टि से देखा जाय तो भी इन 17 जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने से दलितों के साथ अन्याय होगा।...
बहस-तलब : आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के पूर्वार्द्ध में
मूल बात यह है कि यदि आर्थिक आधार पर आरक्षण दिया जाता है तो ईमानदारी से इस संबंध में भी दलित, आदिवासी और पिछड़ो...
साक्षात्कार : ‘हम विमुक्त, घुमंतू व अर्द्ध घुमंतू जनजातियों को मिले एसटी का दर्जा या दस फीसदी आरक्षण’
“मैंने उन्हें रेनके कमीशन की रिपोर्ट दी और कहा कि देखिए यह रिपोर्ट क्या कहती है। आप उन जातियों के लिए काम कर रहे...
कैसे और क्यों दलित बिठाने लगे हैं गणेश की प्रतिमा?
जाटव समाज में भी कुछ लोग मानसिक रूप से परिपक्व नहीं हैं, कैडराइज नहीं हैं। उनको आरएसएस के वॉलंटियर्स बहुत आसानी से अपनी गिरफ़्त...
महाराष्ट्र में आदिवासी महिलाओं ने कहा– रावण हमारे पुरखा, उनकी प्रतिमाएं जलाना बंद हो
उषाकिरण आत्राम के मुताबिक, रावण जो कि हमारे पुरखा हैं, उन्हें हिंसक बताया जाता है और एक तरह से हमारी संस्कृति को दूषित किया...