पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने बीते दिनों एक अहम फैसला दिया। यह फैसला चंडीगढ़ के एससी वर्ग के स्थानीय छात्रों और बाहरी छात्रों को प्रभावित करने वाला है। हालांकि हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कोई खास निर्देश नहीं दिया है लिहाजा मामला सुलझने के बजाय उलझने की पूरी संभावना है।

दरअसल हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति महेश ग्रोवर और महाबीर सिंह सिधु की खंडपीठ ने चंडीगढ़ के सेक्टर 32 स्थित राजकीय आयुर्विज्ञान महाविद्यालय में एमबीबीएस में अनुसूचित जाति कोटे के तहत दाखिले के लिए बनी मेरिट लिस्ट को रद्द कर दिया है। कोर्ट ने इसके लिए फिर से काउंसलिंग का आदेश दिया है। लेकिन कोर्ट ने दुबारा काउंसलिंग के लिए मानदंड में बदलाव का कोई सुझाव नहीं दिया है। ऐसे में नई मेरिट लिस्ट पहले बनी मेरिट लिस्ट से अलग कैसे होगी इस बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता।
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गौरतलब है कि राजकीय आयुर्विज्ञान महाविद्यालय में एमबीबीएस की कुल 85 प्रतिशत सीटें स्थानीय छात्रों के लिए आरक्षित है। शेष 15 फीसदी कोटा बाहरी छात्रों के लिए है। संख्या के लिहाज से बात करें तो स्थानीय कोटा के तहत कुल सीटों की संख्या 77 है। जबकि इसमें अनुसूचित जाति के लिए छात्रों की संख्या 17 है। हाईकोर्ट ने उपरोक्त आदेश इसी श्रेणी में प्रवेश के लिए दावेदार चंडीगढ़ की एक छात्रा कमल की याचिका पर दिया है जिसने आरोप लगाया है कि इस श्रेणी के तहत ऐसे लोगों का भी प्रवेश हो रहा है जो इस शहर के नहीं बल्कि बाहर से पढ़ाई किए हैं।
किसको मिल सकता है इसमें प्रवेश
जीएमसीएच की अधिसूचना के अनुसार इसमें प्रवेश वही छात्र ले सकते हैं जिन्होंने चंडीगढ़ प्रशासन से मान्यताप्राप्त स्कूल/कॉलेज से 12वीं पास किया हो और जो इसी शहर में स्थित हो। इसके अलावा इसमें प्रवेश के लिए कोई और मानदंड निर्धारित नहीं किए गए हैं।
कमल ने 10वीं और 12वीं की परीक्षा शहर से ही पास की है। कमल का कहना है कि एससी श्रेणी के बहुत से छात्र चंडीगढ़ के नहीं हैं और वह 19 वें स्थान पर है जबकि सिर्फ 17 छात्रों का प्रवेश हो सकता है। कमल का कहना है कि हर राज्य में एससी और एसटी समुदाय को अलग अलग तरह की सामाजिक मुश्किलें झेलनी पड़ती हैं और एससी/एसटी सूची में उनको शामिल करने का मानदंड इसी से निर्धारित होता है और इस वजह से एक राज्य का एससी दूसरे राज्य में आरक्षण का दावा नहीं कर सकता बशर्ते कि उस राज्य विशेष ने इसके बारे में अधिसूचित कर रखा हो। अपनी याचिका में कमल ने मांग की है कि जो चंडीगढ़ के प्रमाणित एससी नहीं हैं उन्हें इस कोटे के तहत प्रवेश नहीं दिया जाए।
याचिकाकर्ता ने यह भी मांग की है कि शहर के वास्तविक छात्रों को एससी श्रेणी सहित 85% सीटों पर प्रवेश मिले इसके लिए ‘उचित मानदंड’ बनाए जाने की जरूरत हैं। उसने कहा कि चंडीगढ़ से 12वीं करने वाले छात्रों को ही शहर का निवासी माना जाता है और कॉलेज के प्रॉस्पेक्टस में किसी और मानदंड का कोई जिक्र नहीं है। याचिकाकर्ता ने एससी कोटे के तहत भर्ती प्रक्रिया का यह कहते हुए विरोध किया है कि इस सूची में चंडीगढ़ के बाहर के एससी भी शामिल हैं।
किधर जा सकता है यह मामला?
अपने फैसले में हाईकोर्ट ने एससी कोटे में प्रवेश के लिए दुबारा काउंसेलिंग करने को कहा है पर यह नहीं बताया है कि दुबारा काउंसलिंग के लिए बुलाये जाने वाले उम्मीदवारों के चयन का मानदंड क्या होगा। अगर मानदंड पुराना ही है तो फिर वही सारे उम्मीदवार बुलाये जाएंगे जिन्हें पहले बुलाया गया था और बहुत संभावना है कि उनका ही चयन फिर हो। ऐसे में इसके सकल परिणाम में बहुत अंतर आने की उम्मीद कम है।
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फिर कोर्ट ने याचिकाकर्ता की इस दलील पर फिलहाल कोई गौर नहीं किया है कि अलग अलग राज्यों में एससी की स्थिति अलग है और उनको जिन सामाजिक मुश्किलों का सामना करना पड़ता है उनके आधार पर ही उस राज्य विशेष में उन्हें एससी सूची में जगह मिलती है। कोर्ट के फैसले से अभी यह स्पष्ट नहीं है कि याचिकाकर्ता की इस दलील से कोर्ट प्रभावित है कि नहीं। क्योंकि अगर ऐसा होता है तो एक राज्य के एससी दूसरे राज्य या केंद्र शासित प्रदेश के एससी कोटे में प्रवेश की पात्रता खो देंगें। इस मुद्दे पर कोर्ट का रुख एक नई बहस को जन्म दे सकता है। लेकिन अभी इसका कोई संकेत नहीं है। हो सकता है कि दुबारा काउंसेलिंग के बाद भी अगर इस सूची में फर्क नहीं पड़ता है और वही उम्मीदवार फिर सूची में जगह पाते हैं तो उस स्थिति में याचिकाकर्ता की उन दलीलों पर कोर्ट गौर करे और इस बारे में कोई व्यापक दिशानिर्देश जारी करे।
(कॉपी एडिटर : नवल)
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