फॉलोअप : महिषासुर-दुर्गा विवाद
महिषासुर दिवस का पहला चर्चित आयोजन वर्ष अक्टूबर 2011 में दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में हुआ था। उसके बाद से यह सांस्कृतिक आंदोलन बढ़ता ही गया है। आज देश के सैकड़ों कस्बों-गांवों में ब्राह्मणवादी सांस्कृतिक वर्चस्व से मुक्ति का यह उत्सव मनाया जाने लगा है। लेकिन इन वर्षों में इससे संबंधित कई अन्य घटनाक्रम भी हुए हैं। कई जगहों पर दुर्गा के खिलाफ टिप्पणी करने पर मुकदमे दर्ज हुए। छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश समेत कई राज्यों में महिषासुर और रावेन के अपमान के खिलाफ शिकायतें दर्ज कराई गई। कुछ कस्बों में दुर्गा के कथित अपमान के खिलाफ प्रदर्शन किए गये तो कुछ जगहों पर महिषासुर के सम्मान में भी बड़ी-बड़ी रैलियां निकाली गईं। ‘महिषासुर-दुर्गा विवाद’ से संबंधित इस फॉलोअप सीरिज में हम उन घटनाओं के पुनरावलोकन के साथ-साथ मौजूदा स्थिति की जानकारी दे रहे हैं – संपादक
‘दक्षिणपंथी ताकतें देश से मानवतावाद और संविधान खत्म कर मनुस्मृति को करना चाहती हैं लागू’ : धीरूभाई छोटूभाई
-प्रेमा नेगी
यह घटना उस जगह की है, जिसका नाम हम उत्तर भारत के लोग सिर्फ जनरल नॉलेज अथवा भूगोल की किताबों में पढ़ते हैं। अखबारों में उस जगह का जिक्र शायद ही कभी आता है। वह जगह है दादरा-नगर-हवेली। उत्तर भारत के मैदानों से चली सांस्कृतिक वर्चस्व के विरोध की हवा केंद्र शासित प्रदेश में सोशल मीडिया के पंखों पर सवार होकर पहुंची।

नतीजा यह हुआ कि अक्टूबर, 2017 में दादरा नगर हवेली के बामसेफ से जुड़े आदिवासी समुदाय से संबंध रखने वाले धीरूभाई छोटूभाई पटेल के खिलाफ दुर्गा और शिव-पार्वती का अपमान करने का मुकदमा किया गया। लेकिन जब वहां का मूल निवासी बहुजन समुदाय ने अपने तेवर दिखाए तो आंखें तरेर रहे बजरंग दल और विश्व हिंदू परिषद के कार्यकर्ताओं ने अपनी दुम दबा ली।
बजरंग दल के कार्यकर्ता सुरेशभाई रमेशभाई पुरोहित की शिकायत पर दर्ज किए गए इस मामले में पुलिस ने 15 नवंबर 2017 को चार्जशीट दाखिल की थी। मगर 4-5 तारीखें लगने के बावजूद अभी तक कोई सुनवाई नहीं हो पाई है। बस तारीख पर तारीख आगे बढ़ रही है। अगली तारीख फिर एक बार 18 सितंबर की दे दी गई है।
धीरूभाई कहते हैं कि “जिस धारा के तहत मुझ पर मुकदमा दर्ज किया गया है, उन पर सुप्रीम कोर्ट का पिछला रिकॉर्ड भी कहता है कि कोई केस ही नहीं बनता है। 66ए के तहत ऐसे मामलों में पहले भी कोर्ट केस खारिज कर चुका है।” हालांकि पुलिस ने उनपर धारा 295 और 295ए भी लगाई है।

अपने सार्वजनिक जीवन में दलित बहुजन चेतना के प्रचार—प्रसार के लिए संघर्षरत धीरूभाई छोटूभाई पटेल राष्ट्रीय मजदूर संघ से भी जुड़े हुए हैं। आदिवासी समुदाय के धीरूभाई उस दादरा नगर हवेली में रहते हैं, जहां 80 फीसदी आदिवासी जनसंख्या निवास करती है, हालांकि अब वहां पर बाहरी लोगों की भी अच्छी-खासी संख्या शुमार हो चुकी है, जिनमें मजदूर वर्ग खासा शामिल है। इसीलिए इस संघशासित प्रदेश में महंगाई और मकान के किराए की दरों ने महानगरों का भी रिकॉर्ड तोड डाला है।
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धीरूभाई कहते हैं, “मैं बामसेफ संगठन के जरिए आदिवासियों के लिए काम करता हूं। सोशल मीडिया पर कुछ-कुछ लिखते और कोई पोस्ट पसंद आने पर शेयर भी करता हूं। पिछले साल दुर्गा पूजा के समय दुर्गा को लेकर एक पोस्ट आई थी, जिसे मैंने शेयर किया था। इसके अलावा एक और पोस्ट आई थी, जिसमें एक बहुरूपिए को शिव-पार्वती के रूप में पत्थर पर बैठे हुए सिगरेट पीते हुए दिखाया गया था, वह भी मैंने शेयर की। इसके अलावा स्वामी विवेकानंद का एक कोटेशन था कि गीता पढ़ने से अच्छा फुटबॉल खेलना है, उसे भी मैंने अपनी वॉल पर शेयर किया था।”

धीरूभाई के मुताबिक “किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाने का मेरा कोई मकसद नहीं था, मगर जो ठीक लगा संविधान ने जो आजादी हमें दी है उसके आधार पर मैंने वो पोस्टें शेयर कीं। मुझे नहीं लगता कि मैंने कुछ ऐसा काम किया है जिसके लिए कोई सजा तय की जाय या जिससे किसी की भावनाएं भड़कें, बड़ी बात तो यह कि ये मेरी मूल पोस्टें भी नहीं थीं। पुलिस के पास बतौर सबूत आरएसएस-बजरंग दल वालों ने मेरे फेसबुक का पिछले 4-5 सालों का कमेंट, पोस्ट, शेयर का डाटा प्रिंटआउट निकालकर जमा किया।”
धीरूभाई कहते हैं कि “मुझे टारगेट का मुख्य कारण यह है कि मैं बामसेफ का कार्यकर्ता हूं और कहीं भी लिखता-कहता रहता हूं कि आदिवासी हिंदू नहीं हैं। उन पर होने वाले हर शोषण—दमन के खिलाफ हम लोग आवाज उठाते हैं। मुझे तो खुद जानना है कि दुर्गा कौन थी और महिषासुर कौन थे। आखिर देश के राजा जोकि वंचितों—शोषितों, पिछड़ों का मसीहा था उसकी हत्या दुर्गा ने क्यों की आखिर कौन सी गलती की थी उन्होंने।”
व्यथित और आक्रोशित धीरूभाई कहते हैं, “देशभर में एससी-एसटी-ओबीसी की आवाज़ उठाने वालों के खिलाफ जिस तरह से फर्जी तरीके से मुकदमे दर्ज किए जा रहे हैं, उसे देखते हुए लग रहा है कि हमें भी दादरा नगर हवेली में महिषासुर दिवस मनाना चाहिए, बस हमारी कमेटी एक फाइनल डिसिजन ले ले। 80 फीसदी आदिवासी आबादी होने के बावजूद यहां अभी तक महिषासुर दिवस नहीं मनाया गया है।महिषासुर आदिवासियों की भावनाओं से जुड़ा मामला है देश में जो माहौल बन रहा है उसे देखते हुए मेरा भी मन होता है कि हमारे महापुरुषों के बारे में हम अपने लोगों को बताएं। जहां तक केस खत्म नहीं होने की बात है तो मैं किसी आतंकी गतिविधि में संलिप्त नहीं हूं और न ही संविधान विरोधी कोई काम किया है। अगर मेरे द्वारा फेसबुक पर कुछ पोस्टें शेयर किया जाना कानूनन अपराध है तो मैं सजा के लिए तैयार हूं। बस मुकदमा दर्ज करने वाले यह सिद्ध करके दिखाएं।”

ओबीसी समर्थन समिति, गुजरात के संगठन मंत्री देवेंद्रनाथ पटेल धीरूभाई पर दर्ज मुकदमे के बारे में कहते हैं, “इस मुकदमे के विरोध में उनके द्वारा फेसबुक पर शेयर किए गए पोस्टों के समर्थन में वामसेफ, बहुजन क्रांति, राष्ट्रीय मूलनिवासी संघ, राष्ट्रीय आदिवासी एकता परिषद, मंडल समर्थन समिति और कई लोगों ने पुलिस को वो डॉक्यूमेंट दिखाए बहुजन समाज का लिटरेचर वहां जमा कराया, जो इस बात की पुष्टि करते हैं कि उन्होंने कुछ गलत नहीं किया है। ब्राह्मणवादी व्यवस्था के खिलाफ लोगों ने पूरे दस्तावेज—लिटरेचर पुलिस को सौंपे। तर्क दिया कि अगर धीरूभाई पर मुकदमा दर्ज हुआ है तो उन लोगों पर भी मुकदमा दर्ज करो जो ब्राह्मणवादी व्यवस्था को चुनौती देते हुए किताबें-लेख लिखते हैं।”

देवेंद्र पटेल आगे कहते हैं, “धीरूभाई मामले में जैसे ही बहुजन समाज एकजुट हुआ, विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल ने यह कहते हुए मुकदमा दर्ज करने वाले यह पल्ला झाड़ लिया कि यह हमारे संगठन से जुड़ा हुआ नहीं है। सिलवासा में संविधान की छठी अनुसूची लागू होती है, मतलब अगर वहां ट्राइबल के अलावा कोई और रहता है तो उसे परमिशन लेनी होती है। जबकि मुकदमा दर्ज करने वाला आरएसएस—बजरंग दल कार्यकर्ता मूल रूप से राजस्थान का रहने वाला है, जिसका परिवार 20 साल पहले सिलवासा आया था।”
दूसरी तरफ धीरूभाई कहते हैं कि “यहां जो लोग इस तरह की बदमाशियां कर रहे हैं हम चाहते हैं कि वो भी चैन से जीयें और दूसरों को जीने दें। संविधान ने सभी को जीने का अधिकार दिया है। देश में बहुजनों और ब्राह्मणवाद के खिलाफ आवाज उठाने वालों को निशाना बना रहे ये लोग अपनी करतूतों से बाज नहीं आये तो इन्हें यहां से भागना पड़ेगा। लोग अपने अधिकारों और गलत—सही के प्रति जागरूक हो रहे हैं, एक माहौल बन रहा है, अगर ऐसा ही होता रहा तो उम्मीद करते हैं कि 2025 से पहले मूल निवासियों यानी बौद्ध शासन होगा देश पर।”
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