उत्तराखंड अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति आयोग के सचिव गीता राम नौटियाल के खिलाफ झूठे आरोप लगाने वाले अधिवक्ता पर दो लाख रुपए के जुर्माने की सजा पर फिलहाल सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी है।

स्थगन का यह फैसला सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति एके सिकरी और न्यायमूर्ति अशोक भूषण की पीठ ने सुनाया। अधिवक्ता चन्द्र शेखर करगेती ने हाईकोर्ट के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देकर अपने खिलाफ अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत दर्ज मामले को समाप्त किये जाने का आग्रह किया था।
क्या था मामला?
करगेती पर उत्तराखंड अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति आयोग के सचिव गीता राम नौटियाल के खिलाफ झूठे आरोप लगाने की वजह से मामला दायर किया गया था। आरोप यह था कि करगेती ने फेसबुक पर नौटियाल को भ्रष्ट अधिकारी बताते हुए उनके खिलाफ अपमानजनक पोस्ट डाले थे।

दायर मामले का संज्ञान लेते हुए देहरादून के विशेष जज (एससी-एसटी अधिनियम) ने करगेती के खिलाफ सम्मन जारी किया था। करगेती ने विशेष जज की इस कार्रवाई को हाईकोर्ट में चुनौती देत हुए शपथपत्र दायर कर कहा कि गीता राम नौटियाल अनुसूचित जाति के नहीं हैं, बल्कि ब्राह्मण जाति से आते हैं।
उपलब्ध दस्तावेजों की जांच के बाद हाईकोर्ट इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि करगेती ने हाईकोर्ट में फर्जी शपथपत्र दायर किया था ताकि उसे मनमाफिक फैसला मिल सके। हाईकोर्ट ने झूठा हलफनामा दायर करने के लिए चन्द्र शेखर करगेती की गतिविधियों की निंदा करते हुए उस पर दो लाख रुपए का जुर्माना लगाया था।
फिलहाल, सुप्रीम कोर्ट ने उपरोक्त जुर्माने पर रोक लगा दी है। इस मामले पर अब छह सप्ताह के बाद सुनवाई होगी।
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