दलित-आदिवासी हितों के लिए लडने वाले सामाजिक कार्यकर्ताओं के घरों पर छापेमारी कर महाराष्ट्र पुलिस अपने ही बुने जाल में फंसती जा रही है।
गत 31 अगस्त को मुंबई में एक खचाखच भरे प्रेस कॉन्फ्रेंस में महाराष्ट्र के अतिरिक्त महानिदेशक (कानून और व्यवस्था) परमबीर सिंह ने संवाददाताओं को बताया कि सामाजिक कार्यकर्ता व वकील सुधा भारद्वाज ने किसी कामरेड प्रकाश को एक पत्र लिखा था। उन्होंने उस पत्र की पंक्तियां संवाददाताओं के समक्ष पढते हुए दावा किया ये ‘शहरी नक्सली’ आतंकवाद समेत अनेक प्रकार की देश विरोध गतिविधियों में संलिप्त हैं। उन्होंने सुधा भारद्वाज के कथित पत्र के हवाले से बताया कि छत्तीसगढ़ के डिग्री प्रसाद चौहान द्वारा एक ऑपरेशन गुप्त रूप से किया गया था, जिसके लिए उन्हें धन दिया जाना था।

सुधा भारद्वाज ने परमबीर सिंह द्वारा दिखाए गए उपरोक्त पत्र को सिरे से फर्जी बताया है तथा अपने वकील के जरिए एक पत्र भेज कर महाराष्ट्र पुलिस पर साजिश रचने का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा है कि वे देश के अलग-अलग हिस्सों में दलितों और आदिवासियों पर होने वाले जुल्म के खिलाफ आवाज उठाती रही हैं तथा छत्तीसगढ़ के अधिवक्ता डिग्री प्रसाद चौहान को भी जानती हैं। उनके मुताबिक चौहान मानवाधिकार कार्यकर्ता हैं, जिन्होंने मानवाधिकार के कई मामलों को अदालत में उठाया है।
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कौन हैं डिग्री प्रसाद चव्हाण?

सुधा भारद्वााज की बात अपने जगह सही है। लेकिन डिग्री के आंदालनों की पूरी जानकारी शायद उन्हें नहीं है। फारवर्ड प्रेस के पाठकों के लिए यह जानना आवश्यक है कि डिग्री प्रसाद चौहान कौन हैं?
डिग्री प्रसाद चौहान पेशे से अधिवक्ता हैं। नेशनल ह्यूमन ला नेटवर्क से संबद्ध चौहान छत्तीसगढ़ के अदालतों में आदिवासियों को कानूनी सहायता देते हैं। उनके मुकदमे लड़ते हैं। इसके अलावा उन्होंने छत्तीसगढ़ में सांस्कृतिक साम्राज्यवाद के खिलाफ अभियान चला रखा है। रावण और महिषासुर को अपना पुरखा मानने वाले आदिवासी समाज के आंदोलन में वह लगातार सक्रिय रहे हैं।
वर्ष 2017 में छत्तीसगढ़ के पखांजूर में जब लोकेश सोरी ने दुर्गा पूजा के आयोजकों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया था। उस समय छत्तीसगढ़ पुलिस ने उन्हें ही गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था। सांस्कृतिक साम्राज्यवाद के खिलाफ लोकेश की लड़ाई में डिग्री प्रसाद चौहान की भी भागीदारी थे। उन्होंने निरतंर उनके पक्ष में आवाज उठाई थी।
चौहान का जन्म छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिला मुख्यालय से करीब 35 किमी दूर महानदी के किनारे दाराडोली गाँव में गांडा जाति (अनुसूचित जाति) में हुआ। यह आर्थिक रूप से अत्यंत ही पिछड़ा हुआ इलाका है। उनके पिता डाकिया थे। किसी तरह वे अपने परिवार का भरण-पोषण कर पाते थे।
चौहान की प्राथमिक शिक्षा गाँव में ही हुई। बाद में हाईस्कूल में पढ़ने के लिए उन्हें रोज करीब 15 किलोमीटर दूर पुसौर जाना पड़ता था। उच्च शिक्षा के लिए वे रायगढ़ आ गए। वहीं उन्होंने अखबारों में लिखना शुरू किया। वर्ष 2010 में उनकी नियुक्ति शिक्षक के रूप में हुई। तीन साल तक आदिवासी बहुल क्षेत्र धरमजयगढ़ में कार्यरत रहे। फिर पुसौर तहसील में उनका स्थानांतरण हो गया। वहां वे शिक्षकों के संगठन से जुड़े, जिस पर ऊंची जातियों के लोगों का कब्जा था। डिग्री प्रसाद चौहान ने एक अलग संगठन बना कर आंदोलन की शुरुआत की। इसके लिए उन्हें निलंबित कर दिया गया और तब उन्होंने कानून की पढ़ाई की और वकील बने। 2016 में उन्होंने सरकारी शिक्षक की नौकरी त्याग दी।
चौहान पिछले 15 वर्षों से दलितों और आदिवासियों के अधिकारों को लेकर काम कर रहे हैं। उन्होंने रायगढ़ जिले में विभिन्न कारपोरेट कंपनियों द्वारा खनन और उसके कारण विस्थापित होने वाले आदिवासियों के लिए जन आंदोलन किया। उनके भूमि संबंधी अधिकारों के लिए अदालत में भी कानूनी लड़ाई लड़ी। इसके अलावा छत्तीसगढ़ में आदिवासियों के फर्जी एनकाउंटर के सवालों को भी उन्होंने लगतार उठाया है।
जाहिर तौर पर यह सब ऐसे कार्य हैं जो राज्य सत्ता के खिलाफ हल्लाबोल हैं।
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चौहान बताते हैं कि अबतक उन्होंने बहुराष्ट्रीय कंपनियों और सरकारी अधिकारियों के खिलाफ 98 मुकदमे दर्ज करवाए हैं। वे पहली बार सरकार की नजर में तब आये जब उन्होंने रायगढ़ जिले में उद्योगपतियों के द्वारा आदिवासियों के जमीन को गैर-आदिवासियों के द्वारा हड़पने के मामले में एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया और विभिन्न संगठनों के साथ मिलकर आंदोलन किया। यह आंदोलन सफल रहा और तभी से वे सरकार के आला अधिकारियों की आंखों में चुभने लगे।
दो-तीन वर्ष पहले चौहान सांस्कृतिक और सामाजिक अस्मिता की लड़ाई में कूदे। रायगढ़ में रावण दहन का विरोध किया। दुर्गा द्वारा महिषासुर की हत्या को प्रदर्शित करने वाली प्रतिमाओं का विरोध करते हुए उन्होंने अभियान चलाया। उनका कहना है कि ब्राह्मणवाद ने अंधविश्वास के जरिए हम मूलनिवासियों का शोषण किया है।
महाराष्ट्र पुलिस द्वारा जारी पत्र के बारे में पूछने पर डिग्री प्रसाद चौहान बताते हैं कि “वह फर्जी है। यह पहला वाकया नहीं है। दलितों और आदिवासियों के अधिकारों के लिए संघर्ष के दौरान मुझे अनेक बार झूठे मुकदमों में फंसाया गया। महीनों तक जेल में भी रखा गया। पुलिस मुझे नक्सलियों के साथ जोड़ने की साजिश पहले भी करती रही है, जबकि हिंसक आंदोलनों से मेरा दूर-दूर तक कोई नाता नहीं है।”

चौहान ने फारवर्ड प्रेस को फोन पर कहा कि “हमारे सांस्कृतिक आंदोलनों व ट्र्राइब लैंड राइट एक्ट के पक्ष में संघर्ष के कारण बहुत सारे ऐसे लोग परेशान हैं, जो बहुत ताकतवर हैं। पिछले साल जब मैं खर्चिया, जसपुर , बुंदेली और महासमुंद के इलाके में घूम रहा था तब वहां के अनेक पंचायतों के सरपंचो ने लिखकर दिया था कि हम अपने क्षेत्र में रावण और महिषासुर का दहन नहीं होने देंगे। हम लोगों ने दलित-आदिवासी मिथकों के पक्ष में तथा ब्राह्मणवादी सांस्कृतिक साम्रज्यवाद के विरोध में आवाज उठाई है। हमारा संघर्ष हिन्दू ब्राह्मणवादी सामाजिक व्यवस्था के खिलाफ है। हिंदू द्विज हमारे संसाधनों पर कब्जा तो कर ही रहे हैं, हमारे उपर अपनी हिंसक व वर्चस्ववादी संस्कृति भी थोप रहे हैं। भीमा-कोरेगांव के मामले से मुझे इसलिए जोडा जा रहा है क्योंकि मैं बहुजन संस्कृति के पक्ष में लडाई लड रहा हूं। छत्तीसगढ़ के संदर्भ में मेरा आंदोलन बहुजन आंदोलन है। यह मूल निवासी आंदोलन है, यह ब्राह्मणवाद को चोट पहुंचा रहा है, इसलिए सत्ता में जो ऊंची जाति के लेाग बैठे हैं, वे मुझसे नाराज हैं। लेकिन मैं झुकूंगा नहीं।”
ज्ञातव्य है कि बीते 28 अगस्त 2018 को प्राख्यात सामाजिक कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज तथा वरवरा राव, गौतम नवलखा, अरूण फरेरा और वेरनान गोंसाल्विस को अलग-अलग स्थानों से भीमा-कोरेगांव हिंसा के मामले में गिरफ्तार किया था। इन सबों को कोर्ट के आदेश से नजरबंद रखा गया है। कयास लगाया जा रहा है कि पुलिस डिग्री प्रसाद चौहान को भी जल्दी ही गिरफ्तार कर सकती है।
(कापी संपादन : एफपी डेस्क/क्षितिज कुमार)
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