छत्तीसगढ़ में इस साल भी महिषासुर के अपमान का मामला तूल पकड़ने लगा है। राज्य के कोरबा जिले स्थित पोंडी-उपरोड़ा में ‘गोंडवाना स्टूडेंड यूनियन’ से जुड़े युवा इस संकल्प के साथ आदिवासियों के बीच जागरुकता पैदा कर रहे हैं कि उनके आदर्श महिषासुर और रावण का हिंदू उत्सवों के नाम पर जो अपमान किया जाता है, वह उनकी संस्कृति, ऐतिहासिकता और पुरखों का अपमान है, जिसे जल्द से जल्द बंद किया जाए। गौरतलब है कि साल 2017 में भी दर्जनों संगठनों ने मध्यप्रेदश, छत्तीसगढ व झारखंड में इस प्रकार के ज्ञापन प्रशासन को दिए थे तथा कुछ जगहों पर दुर्गा पूजा के विरोध में पुलिस् में शिकायत भी दर्ज करवाई गई थी।
दुर्गा द्वारा महिषासुर वध और दशहरे पर रावण के दहन को आदिवासियों के अस्मिता का अपमान मानते हुए इस साल भी आदिवासी युवा संगठित हो रहे हैं कि चाहे हिंदू अपने आदर्श दुर्गा और राम को पूजें, मगर आदिवासी जननायक महिषासुर का वध और राजा रावण का दहन अब किसी भी कीमत पर स्वीकार्य नहीं है। पिछले कुछ वर्ष से देशभर में आदिवासी, अन्य पिछडा वर्ग और दलित समुदाय के लोग महिषासुर वध और रावण दहन का विरोध करते आ रहे हैं, मगर अब यह व्यापक तौर पर हो रहा है।

इसी संकल्प के साथ आदिवासियों की यह पहल पहुंच चुकी है छत्तीसगढ़ के कोरबा तक। यहां इसी वर्ष अप्रैल माह में गठित ‘गोंडवाना स्टूडेंट यूनियन’ की शाखा से जुड़े युवाओं ने डीएम को इस आशय का एक ज्ञापन सौंपा है कि दुर्गा प्रतिमा के साथ असुरराज महिषासुर की प्रतिमा न लगाई जाए, साथ ही रावण का दहन न किया जाए। कुछ महीने पहले गठित इस यूनियन में अब तक पढ़ने—लिखने वाले, नौकरी पेशा और किसान युवाओं की अच्छी—खासी संख्या जुड़ चुकी है। आदिवासी हितों की बात करने वाली ‘गोंडवाना स्टूडेंड यूनियन’ 2008 में मध्य प्रदेश में गठित हो चुकी थी।
दुर्गा पूजा से कुछ दिन पहले 17 सितंबर को डीएम कार्यालय में उन्हें सौंपे गए एक ज्ञापन में उन्होंने आगाह किया है कि ‘आदिवासियों के पूर्वज महिषासुर की प्रतिमा दुर्गा के साथ रखकर हिन्दुओं द्वारा अपमानित किया जाता है व गोंडवाना सम्राट महाराजा,आदिवासी पुरखा महाराजा रावण की प्रतिमा बनाकर बुराई का प्रतीक मानकर जलाया जाता है, जबकि मूलनिवासी, आदिवासी समुदाय में अभी से नहीं प्राचीनकाल से उनको आराध्य मानकर पूजा जाता है। अत:उक्त मामले को संज्ञान में लेते हुए असुरराज महिषासुर और रावण दहन को पूर्ण रूप से बंद किया जाए।’
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‘गोंडवाना स्टूडेंड यूनियन’ के ब्लाक संयोजक हरीशचंद्र कोराम, ब्लॉक उपाध्यक्ष संजय मरकाम, जिला उपाध्यक्ष रामकुमार श्याम, मुकेश कमरो, दिल बोध, राजेश, शत्रुघ्न मरकाम, बंधु कंवर, ललित पावले, योगीराज आयाम समेत तमाम युवाओं ने यह ज्ञापन डीएम कार्यालय में सौंपा। गोंडवाना स्टूडेंड यूनियन’ के कोरबा ब्लॉक संयोजक जो कि पेशे से दुकानदार हैं, हरीशचंद्र कोराम कहते हैं, ‘आदिवासी समुदाय प्राचीनकाल से महिषासुर को अपने पूर्वज के रूप में पूजते आ रहे हैं। मूर्तियों में उनकी हत्या दर्शाकर हर साल उनका अपमान किया जाता है जिससे आदिवासियों की आस्था को चोट पहुंचती है।’

गौरतलब है कि दुर्गा के साथ महिषासुर की मूर्ति रखने और रावण दहन के खिलाफ गोडवाना स्टूडेंट यूनियन के जिलाध्यक्ष अनिल कुमार मरावी के नेतृत्व में पाली तहसीलदार जगतराम सतरंज को राष्ट्रपति के नाम ज्ञापन भी सौंपा गया है, जिसमें मांग की गई है कि असुरराज महिषासुर आदिवासियों के पूर्वज हैं। उनकी प्रतिमा दुर्गा के साथ रखकर अपमानित किया जाता है। यूनियन ने शासन-प्रशासन से गुजारिश की है कि इस मामले को गंभीरता से संज्ञान में लेते हुए उनकी मांग पर अमल की जाए। असुरराज महिषासुर को दुर्गा के पंडालों में स्थापित और उनकी हत्या करते दुर्गा को दिखाने की परंपरा पर पूर्ण रूप से प्रतिबंध लगाया जाए। इसकी वजह से उनकी आस्था बार-बार आहत हो रही है।

गोंडवाना स्टूडेंट यूनियन के संरक्षक विमल मरावी कहते हैं, ‘असुरराज महिषासुर हम अनार्यों यानी आदिवासियों के पूर्वज हैं, जिनकी आराधना भैसासुर के रूप में सदियों से छत्तीसगढ़ के गांव-गांव में की जा रही है। वे यहां के हर गांव में बैगादेव के रूप में स्थापित हैं। गांव के बैगा के माध्यम से महिषासुर की पूजा सदियों से प्रचलित है। प्राचीनकाल में शुरू की गई हमारी यह परंपरा पीढ़ी-दर-पीढ़ी हस्तांतरित हुई है। छत्तीसगढ़ के आदिवासी इलाकों के हर गांव में निवास करने वाला प्रत्येक परिवार बैगादेव पर श्रद्धा रखता है। महिषासुर ही नहीं रावण भी हमारे पूर्वज हैं। इन दोनों के अपमान को हमारा समाज अब कतई बर्दाश्त नहीं करेगा।’

विमल मरावी आगे कहते हैं, ‘हम यह नहीं कहते कि ब्राह्मण दुर्गा या राम की पूजा न करें, मगर हमारा ऐतराज रावण के पुतला दहन और दुर्गा द्वारा असुरराज महिषासुर के वध से है। अगर पुतला ही जलाना है तो आधुनिक बलात्कारी बाबाओं राम रहीम, आसाराम या फिर अन्य कोई जिनकी पूरी फेहरिस्त है उनका जलाएं, दुर्गा द्वारा उनका वध दिखाएं, मगर हमारी आदिवासी अस्मिता का अपमान बंद करें, क्योंकि यह अब नाकाबिले बर्दाश्त है। रावण के मामले में देखें तो यह मूलत: आर्यों और अनार्यों के बीच की संस्कृति की लड़ाई थी। अनार्य में एससी-एसटी-ओबीसी आते हैं, हमारे पूर्वज महिषासुर-रावण रक्त संस्कृति के रक्षक थे, जिन्हें आर्यों ने राक्षस कह दिया, मगर अब इतनी जागरुकता व्याप्त होने के बाद हम चाहते हैं कि जो सदियों से हमारे पूर्वजों–राजाओं का अपमान होता आया है वह बंद हो। रावण पर आरोप था कि उन्होंने सीता का हरण किया, सही मायनों में तो वर्तमान ढोंगी बलात्कारी बाबाओं का दहन होना चाहिए। अपने समाज के आदर्शों और अस्मिता की रक्षा के लिए हमारे समाज के 5 वीं पास कर चुके बच्चे भी गोंडवाना स्टूडेंट यूनियन से जुड़ने लगे हैं।’
गौरतलब है कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 15 में भी धर्म, वंश, जाति, लिंग अथवा जन्मस्थान के आधार पर भेदभाव किए जाने पर सख्त मनाही है। इसी का हवाला देते हुए गोंडवाना स्टूडेंट यूनियन ने महिषासुर को प्रतिमा में शामिल करने एवं रावण दहन पर पूर्ण रूप से प्रतिबंध लगाने की मांग की है।
खेती-किसानी से जुड़े गोंडवाना स्टूडेंट यूनियन के जिलाध्यक्ष अनिल कुमार मरावी के मुताबिक, ‘दुर्गा द्वारा हमारे राजा महिषासुर का वध दिखाना आर्य यानी उच्च जातियां बंद करें, साथ ही रावण दहन जैसे आयोजन भी बंद किया जाएं। अगर यहां इस तरह के आयोजन होंगे तो हम इसके खिलाफ पुलिस-कोर्ट में जाने को मजबूर होंगे, जिसकी जिम्मेदारी जिलाधिकारी की होगी, क्योंकि हम उन्हें ज्ञापन सौंप आगाह कर चुके हैं कि इस तरह की गतिविधियां जल्द से जल्द बंद की जाएं।’
इस साल भी दुर्गा पूजा में महिषासुर वध और रावण दहन का बहिष्कार करने लिए ये युवा संकल्पबद्ध हैं। इनकी योजना अपने आदर्श-पूर्वज राजा महिषासुर और रावण का दिवस आयोजित करने की है। हालांकि पहले भी ये युवा यहां महिषासुर दिवस और रावण पूजा का आयोजन करते आ रहे हैं, मगर आदिवासी क्षेत्र कोरबा में गोंडवाना स्टूडेंट यूनियन के बैनर तले यहां इस तरह का यह पहला आयोजन होगा।
इस बार 19 अक्टूबर को दुर्गा पूजा और दशहरा का पर्व आयोजित होगा, देखना होगा कि गोंडवाना स्टूडेंड यूनियन की पहलकदमी का इस इलाके पर कितना असर पड़ता है, कितनी जगह रावण दहन नहीं होता और कितने पंडालों पर दुर्गा की मूर्ति के साथ महिषासुर वध नहीं दिखाया जाता। अगर यह कुछ जगह पर भी हो पाता है तो इसे आदिवासियों की एक बड़ी सफलता के तौर पर लिया जाना चाहिए।
(कॉपी-संपादन : सिद्धार्थ/प्र.रं.)
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