अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति को पदोन्नति में आरक्षण देने के लिए अब राज्य सरकारों को इस बारे में आंकड़े जुटाने की जरूरत नहीं होगी। इस बार में बुधवार को सुप्रीम कोर्ट की पाँच जजों की पीठ ने सर्वसम्मति से यह फैसला सुनाया। इस फैसले को लेकर दलितों के अधिकारों के लिए लड़ने वाले लोगों ने अलग-अलग प्रतिक्रिया व्यक्त की है।
बहुजनों के हक की लड़ाई लड़ने वाले दुर्गा प्रसाद यादव ने इस फैसले का स्वागत किया है और इसे ऐतिहासिक बताया है। उन्होंने कहा है कि इससे निर्णय लेने की प्रक्रिया में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों की भागीदारी बढ़ेगी। पर उन्होंने कहा कि इसी तरह का आरक्षण अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए भी होना चाहिए।

दुर्गा प्रसाद का मानना है कि सरकार में निर्णय लेने वाले लोगों में एससी, एसटी वर्ग के लोगों की संख्या लगभग नहीं के बराबर होती है। जनसंख्या के अनुपात में निर्णय लेने की प्रक्रिया में उनका प्रतिनिधित्व बहुत कम होता है। लेकिन अब इस फैसले के बाद से इस वर्ग के ज्यादा लोग निर्णय लेने की प्रक्रिया में शामिल हो पाएंगे।
दुर्गा प्रसाद ने कहा कि कानून बनाने में देश के बहुसंख्यकों की भागीदारी नहीं है। सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय से यह सुनिश्चित किया जा सकेगा।
लेकिन दलितों और ओबीसी के लिए कानूनी लड़ाई लड़ने वाले पेशे से अधिवक्ता और ‘ओबीसी एंड स्टेट पॉलिसी’ नामक पुस्तक के लेखक और सामाजिक कार्यकर्ता हैदराबाद के कोंडोला राव अलग विचार रखते हैं। ओबीसी के हक की लड़ाई लड़ने वाले राव का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले में कुछ भी नया नहीं है और यह अपर्याप्त है। एम. नागराज मामले में पदोन्नति में आरक्षण देने के लिए जो शर्तें निर्धारित की गई थीं उनमें से सिर्फ एक में ही ढील दी गई है। बाकी दो के बारे में सुप्रीम कोर्ट ने कुछ नहीं कहा है। ये दो मामले हैं पदोन्नति में एससी, एसटी का कम प्रतिनिधित्व और प्रशासनिक सक्षमता का प्रभावित होना।
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दुर्गा प्रसाद का कहना है कि क्रीमी लेयर पर किसी भी तरह की बात करने से सुप्रीम कोर्ट ने साफ मना कर दिया है। ऐसी उम्मीद की जा रही थी कि सुप्रीम कोर्ट ओबीसी की तरह एससी, एसटी में भी क्रीमी लेयर के मुद्दे को उठाएगा। इस मामले पर सुनवाई के क्रम में मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा के यह कहने के बाद कि “आंकड़े महत्त्वपूर्ण हैं”, यह आशंका व्यक्त की जा रही थी कि हो सकता है कि कोर्ट आंकड़ों के बारे में कोई ढील न दे। पर इसकी जरूरत को समाप्त कर कोर्ट ने राज्यों द्वारा एससी, एसटी समुदाय को पदोन्नति में आरक्षण देने के राज्य सरकारों के प्रयासों को आसान कर दिया है।
सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पाँच जजों की पीठ का गठन नवंबर 2017 में किया गया था ताकि एम नागराज मामले में आए फैसले की समीक्षा की जा सके। इस पीठ में न्यायमूर्ति कुरियन जोसफ, आर.एफ. नरीमन, एस.के. कौल और इन्दु मल्होत्रा भी शामिल हैं।
(कॉपी-संपादन : एफपी डेस्क, राजन)
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