त्रिपुरा में गरीबों-पिछड़ों के हितैषी कहे जाने वाले कम्युनिस्टों को सत्ता से बेदखल कर जीत का परचम लहराने के बाद पूरे देशभर में भगवा गुंडों ने शोषितों, वंचितों, पिछड़ों के मसीहा कहे जाने वाले डॉ. भीमराव आंबेडकर, पेरियार, लेनिन की मूर्तियां ढहाने का जो तांडव मचाया, वह वाकई खौफनाक था।
लेकिन इसे क्या कहेंगे कि 15 मार्च 2018 के बाद से सिर्फ उत्तर प्रदेश में ही आंबेडकर समेत पिछड़ों-दमितों की आवाज उठाने वाले महापुरुषों की 36 मूर्तियां ढहाई जा चुकी हैं। यह जानकारी मानसून सत्र के दौरान समाजवादी पार्टी के एमएलसी शशांक यादव के एक सवाल के जवाब में विधान परिषद में उत्तर प्रदेश की योगी सरकार की तरफ से दी गई।
सरकार की तरफ से साझा की गई जानकारी के मुताबिक मार्च से अब तक इस आंकड़े के मद्देनजर हर हफ्ते डॉ. भीमराव आंबेडकर, लेनिन, रविदास और अन्य महापुरुषों की औसतन दो मूर्तियां भाजपाइयों के द्वारा ढहाकर पिछड़ों का मनोबल कमजोर किया गया। इससे भाजपाइयों के वोट बैंक यानी सवर्णों तक यह मैसेज भी पहुंचा कि हम पिछड़ों का उभार किसी भी कीमत पर नहीं होने देंगे, फिर चाहे इसके लिए साम-दाम-अर्थ-दंड-भेद कोई भी तरीका अपनाना पड़े। पिछड़े-दलित हमेशा हमारी जूतों के नीचे ही रहेंगे।
गौरतलब है कि मूर्तियों को ढहाने, तोड़ने की कुल 36 घटनाएं अब तक सामने आई हैं, जबकि शासन-प्रशासन की तरफ से मात्र 14 लोगों को गिरफ्तार किया गया और 4 लोगों ने मूर्ति तोड़ने का आरोप स्वीकारते हुए अदालत के समक्ष आत्मसमर्पण किया। अगर हर मामले में एक को भी आरोपी माना जाए तो 22 लोग अभी तक कानून के शिकंजे से दूर हैं। क्या इससे यह मैसेज नहीं पहुंचता कि सरकार की ऐसे असामाजिक तत्वों को खुली शह है, और जान-बूझकर उनकी गिरफ्तारियां नहीं की गईं। एक मामला जिसमें आंबेडकर और संत रविदास दोनों की मूर्तियां तोड़ी-ध्वस्त की गई थीं, में एक ही रिपोर्ट दर्ज की गई है।

इस मसले पर समाजवादी पार्टी से विधान परिषद सदस्य शशांक यादव फारवर्ड प्रेस से कहा कि मेरे सवाल का पूरा जवाब भी सरकार की तरफ से नहीं आ पाया। सरकार की तरफ से मुझे बताया गया कि 36 मामले सामने आए हैं मूर्ति भंजन के जिनमें से मात्र 14 में मामले दर्ज हो पाए हैं। इसका मतलब यह है कि दलितों के आदर्श महापुरुषों की मूर्तियां तोड़े जाने के 22 मामलों में अभी तक कोई कार्रवाई ही नहीं की गई है। बहुत से मामलों में अज्ञात कहकर टाला जा रहा है कि फाइनल रिपोर्ट में यह सामने आएगा। त्रिपुरा में भाजपा की सरकार बनने के बाद से मूर्तिभंजन का यह तांडव मचाया गया। मूर्तियों को ढहाए जाने के मामले तब थमे हैं जब इस पर विपक्ष द्वारा खूब हो-हल्ला मचाना और प्रोटेस्ट करना शुरू किया गया। बाबा साहब के साथ ही पेरियार और गांधी की मूर्तियों को भी सांप्रदायिक माहौल बनाने के लिए निशाना बनाया गया था।

शशांक आगे कहते हैं कि मूर्ति तोड़ने का माहौल प्रदेश में इसलिए भी रचा गया क्योंकि पिछड़े एक ताकत के रूप में सामने आ रहे थे, जिन्हें किसी भी तरह तोड़ना मकसद था। अगर इस मसले पर विपक्ष ने एकजुट हो चौरतफा शोर नहीं मचाया होता तो शायद सरकार ने इन पर रोक लगाने के लिए कोई कार्रवाई भी नहीं की होती। मेरा मानना है कि मूर्ति तोड़ने की जितनी भी घटनाएं हुई हैं उन्हें बहुत ही सोची-समझी साजिश के तहत अंजाम दिया गया था। सवर्ण वोटों को अपने पाले में करने के लिए पिछड़ों पर ये हमले सरकार प्रायोजित थे।

इसी की एक कड़ी सुप्रीम कोर्ट द्वारा एससी-एसटी एक्ट में बदलाव से भी जुड़ती है, जिसमें कहा गया था कि दलितों के आरोपों पर किसी की तुरंत गिरफ्तारी नहीं की जाएगी। उससे पहले आरोपों की जांच जरूरी है, जांच करने के बाद ही एससी/एसटी एक्ट के तहत केस दर्ज होगा। इसके खिलाफ 2 अप्रैल 2018 को पिछड़ों द्वारा देशव्यापी बंद का ऐलान किया था, जो काफी हद तक सफल भी रहा। मगर इसे विडंबना ही कहेंगे कि जिन दलितों-पिछड़ों ने एससी/एसटी एक्ट में बदलाव के खिलाफ आंदोलन किया, वही लोग पीटे गए, वही लोग मारे गए, वही जेल में भी बंद हैं।
सदन में पिछड़ों, दलितों, दमितों के मसीहा आंबेडकर समेत अन्य महापुरुषों की मूर्तियां तोड़े जाने का सवाल उठाने के पीछे मेरा मकसद यही था कि सरकार आज भी पिछड़ों के मसले को लेकर संवेदनशील नहीं है। मूर्ति तोड़े जाने की 36 घटनाओं में से केवल 14 में गिरफ्तारी भी उसकी मंशा को स्पष्ट कर रही है।
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हालांकि शशांक यादव को जवाब देते हुए योगी सरकार ने अपना बचाव भी किया कि ऐसी घटनाओं पर रोक लगाने के लिए उसने शासन-प्रशासन को सोशल मीडिया पर जाति समूहों पर नजर रखने और अन्य तरह की भड़काने वाली बहसों पर नजर रखने का निर्देश दिया है। यही नहीं हमने ऐसी घटनाएं भविष्य में न हों, इसलिए जिला स्तर पर सुरक्षा समितियां स्थापित की हैं।
योगी सरकार ने अपना पक्ष रखते हुए जवाब में आगे कहा है कि गांव स्तर पर चौकीदारों को उनके क्षेत्र के भीतर महापुरुषों की मूर्तियों पर नजर रखने को निर्देशित किया गया है। ग्राम स्तर तक पर ऐसे असामाजिक तत्वों पर नजर रखने को कहा गया है जो अपने निजी स्वार्थों के लिए जाति आधारित भेदभाव और हिंसा को हवा देते हैं।
मगर असल सवाल अब भी यही है कि अगर सरकार ये सारे कदम उठा रही है तो फिर 36 मामलों में अब तक सिर्फ 14 गिरफ्तारियां क्यों कर पाई है। क्यों आरोपी अभी भी कानून के शिकंजे से दूर हैं। समाजवादी पार्टी के एमएलसी शशांक यादव भी अब तक सिर्फ 14 गिरफ्तारियों पर सवाल उठाते हुए कहते हैं कि सरकार पिछड़ों को लेकर बिल्कुल भी गंभीर नहीं है। उसे सिर्फ अपने सवर्ण वोटों को कैश करना है, जिसके लिए वह कोई भी तरीका अख्तियार करती है।
अभी लोग वह घटना नहीं भूले होंगे जब पिछले साल मई में उत्तर प्रदेश के शब्बीरपुर में राजपूतों ने रविदास की मूर्ति तोड़कर महाराणा प्रताप की मूर्ति लगाने की कोशिश की थी। जब दलितों ने इसका विरोध किया और वो किसी भी हाल में रविदास की मूर्ति को तोड़कर महाराणा प्रताप की मूर्ति लगाने की सवर्णों की कोशिश में आड़े आ रहे थे तो भाजपा समर्थित अराजक तत्वों ने दलितों की पूरी बस्ती ही स्वाहा कर दी थी।
(कॉपी संपादन : एफपी डेस्क)
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