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दुर्गापूजा आयोजकों को अनुदान पर हाईकोर्ट ने उठाया सवाल, ममता की उम्मीदों काे झटका

कलकत्ता हाई कोर्ट ने पश्चिम बंगाल सरकार के फैसले पर सवाल उठाया है। उस फैसले पर जिसके तहत सरकार द्वारा दुर्गापूजा आयोजन समितियों को दस-दस हजार रुपए अनुदान दिया जाना है। फिलहाल हाईकोर्ट ने सरकार को रूकने के लिए कहा है। फारवर्ड प्रेस की खबर

कलकत्ता उच्च न्यायालय के एक फैसले से ममता बनर्जी सरकार की उम्मीदों को झटका लगा है। दरअसल राज्य सरकार ने सवर्ण हिन्दू वोटरों में बीजेपी के प्रति बढ़ते रूझान को ध्यान में रखकर बीते 11 सितंबर 2018 को एक निर्णय लिया था कि वह राज्य की सभी दुर्गापूजा समितियों को दस-दस हजार रुपए का अनुदान सरकारी खजाने से देगी। जाहिर तौर पर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का मकसद सवर्ण हिन्दू वोटरों को लुभाना था। लेकिन कलकत्ता हाईकोर्ट की टिप्पणियों से फिलहाल उनकी उम्मीदों पर पानी फिरता दिख रहा है। अदालत ने सरकार से पूछा है कि जिस तरीके से अनुदान की घोषणा दुर्गापूजा के आयोजकों के लिए की गयी है, क्या इसी तरह का प्रावधान अन्य धर्मों से जुड़े आयोजनों के लिए भी की जाएगी?

गौर तलब है कि पश्चिम बंगाल में बड़ी संख्या में दलित-बहुजन दुर्गापूजा का बहिष्कार करते हैं। वे महिषासुर को अपना पुरखा और दुर्गा को उनका हत्यारा मानते हैं। महिषासुर के सम्मान में वे पश्चिम बंगाल के बड़े हिस्से में महिषासुर शहादत दिवस मनाते हैं। पिछले वर्ष करीब एक हजार जगहों पर महिषासुर शहादत दिवस का आयोजन किया गया था।

दुर्गा की एक प्रतिमा पर रंग भरतीं पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी

हाईकोर्ट ने सरकार को अभी इस योजना पर रोक लगाने को कहा है जिसमें उसने राज्य के सभी दुर्गापूजा आयोजन समितियों को दस-दस हजार रुपए अनुदान देने की घोषणा की है।  

बताते चलें कि इसके लिए सरकार की ओर से 28 करोड़ रुपए का आवंटन भी जारी किया जा चुका है। हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को कहा है कि जब तक अदालत इस संबंध में फैसला नहीं ले लेती है तब तक वह दुर्गापूजा समितियों को अनुदान न दे। बीते 5 अक्टूबर 2018 को अदालत ने याचिकाकर्ता सौरव दत्ता की आपत्तियों को सुना। इस मामले में अब अगली सुनवाई 9 अक्टूबर 2018 को होगी।

यह भी उल्लेखनीय है कि दस दिनों तक चलने वाले दुर्गापूजा समारोह की शुरुआत आगामी 10 अक्टूबर से होगी।

कलकत्ता हाईकोर्ट

मामले की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश देवाशीष कर गुप्ता और न्यायमूर्ति शिम्पा सरकार की खंडपीठ ने की। हालांकि अभी तक उन्होंने अपनी तरफ से इस मामले में कोई टिप्पणी नहीं की है कि सरकार का फैसला गलत है या सही। लेकिन उन्होंने राज्य सरकार और सीएजी, पश्चिम बंगाल से पूछा है कि क्या अनुदान दिये जाने के संबंध में कोई नीति बनायी गयी है? यदि कोई पूजा समिति दस हजार के बजाय 9 हजार रुपए ही खर्च करती है तब शेष एक हजार रुपए की सरकारी खजाने में वापसी सरकार कैसे सुनिश्चित करेगी। खंडपीठ ने यह भी कहा कि यह जनता का पैसा है। इसका हिसाब रखना भी सरकार की जिम्मेवारी है।

यह भी पढ़ें : बंगाल का महिषासुर दिवस : मिथकीय जंजीरों को उतार फेंकने का दिन

अदालत ने सरकार से सवाल पूछा है। पश्चिम बंगाल में 2800 से अधिक दुर्गापूजा समितियां हैं। सरकार किस समिति को अनुदान देगी और किसे नहीं, क्या इसके लिए कोई मानदंड निर्धारित किया गया है?

खंडपीठ ने राज्य सरकार की कार्यशैली पर टिप्पणी करते हुए कहा कि राज्य में लोक कल्याणकारी योजनाओं के क्रियान्वयन के मामले ‘हमेशा धन की कमी के संकेत मिलते हैं और वैध बकाये भी लंबित हैं। इसके बावजूद 28 करोड़ रुपये खर्च किए जा रहे हैं।

वहीं राज्य सरकार के फैसले का विरोध महिषासुर को अपना पुरखा मानने वाले लोग भी कर रहे हैं। इनमें से एक चेरियन हेम्ब्रेम भी हैं। फारवर्ड प्रेस से बातचीत में उन्होंने बताया कि कोर्ट ने अभी तक इस मामले में जो सवाल खड़े किये हैं, वह तो अपनी जगह ठीक ही हैं। लेकिन सरकार को यह बताना चाहिए कि क्या वह भारतीय संविधान का पालन नहीं करना चाहती है। संविधान के मुताबिक भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है। सभी धर्मों काे समान महत्व देना सरकार की जिम्मेवारी है। फिर कैसे राज्य सरकार एक धर्म विशेष के लोगों को उनके धार्मिक आयोजन के लिए सरकारी खजाने से पैसा दे सकती है।

यह पूछे जाने पर कि राज्य सरकार ने जैसे दुर्गापूजा आयोजन समितियों को अनुदान देने का एलान किया है, क्या वे भी मांग करेंगे कि उन्हें भी सरकार द्वारा अनुदान दिया जाय, हेम्ब्रेम कहते हैं, “हम महिषासुर को अपना पुरखा मानते हैं। हम श्रम में विश्वास रखते हैं। हमें अपने पुरखे को याद करने के लिए सरकारी चंदे की आवश्यकता नहीं है।”

(कॉपी संपादन : सिद्धार्थ)


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एफपी डेस्‍क

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