सबरीमाला मंदिर में 10 वर्ष से 50 वर्ष की महिलाओं को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा प्रवेश की अनुमति दिये जाने के विरोध में ‘नायर सर्विस सोसायटी’ नामक संगठन सड़क पर उतर आया है। नायर सर्विस सोसायटी सवर्ण जातियों का एक संगठन है। सोसायटी ने सर्वोच्च न्यायालय में पुनर्विचार याचिका दाखिल करने का भी निर्णय लिया है। इस संगठन के महासचिव जी. सुकुमारन ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि केरल सरकार और त्रावणकोर देवस्वाम बोर्ड (टीडीबी) ने सबरीमाला के अय्यप्पा मंदिर में 10 वर्ष से 50 वर्ष के बीच की उम्र की महिलाओं के प्रवेश के सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के विरोध में पुनर्विचार याचिका दाखिल करने का निर्णय नहीं लिया है। उन्होंने यह भी कहा कि लोगों की आस्था की रक्षा करना सरकार की जिम्मेदारी है। यहां याद दिलाते चलें कि केरल की वर्तमान लेफ्ट डेमोक्रटिक फ्रंट की सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में हर उम्र की महिलाओं के प्रवेश का समर्थन किया था। मंदिर का प्रबंध करने वाले त्रावणकोर देवस्वाम बोर्ड ने इसका विरोध किया था, लेकिन सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय आने बाद उसने इस निर्णय को लागू करने की घोषणा की और पुनर्विचार याचिका दाखिल नहीं करने का भी फैसला लिया था।
सबरीमाला के अय्यप्पा मंदिर में हर उम्र की महिलाओं के प्रवेश के विरोध में विभिन्न संगठन सड़कों पर उतर आये हैं। सबसे मुखर तरीके से और जोर-शोर इस निर्णय के विरोध में सवर्ण जातियों का संगठन नायर सर्विस सोसायटी है। हर उम्र की महिलाओं के प्रवेश के विरोध में सभी मतभेद भुलाकर कांग्रेस, भाजपा और इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग एकजुट हो गए हैं। केरल विधानसभा में विपक्ष के नेता कांग्रेस के चेन्नीथाला ने कहा है कि वे नायर सोसायटी की पुनर्विचार याचिका का समर्थन करते हैं और वे 5 सिंतबर, 2018 से इस निर्णय के विरोध की शुरूआत पथानामथीट्टा से शुरू करेंगे। उन्होंने यह याद दिलाया कि कांग्रेस के नेतृत्व वाली इसके पहले की यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट की सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में हर उम्र की महिलाओं के प्रवेश का विरोध किया था। कांग्रेसी मुख्यमंत्री ओमान चंडी के नेतृत्व वाली सरकार ने 2016 में शपथ-पत्र दाखिल कर हर उम्र की महिलाओं के प्रवेश का विरोध किया था।

भाजपा भी जोर-शोर से अपने सहयोगी संगठनों के साथ इस निर्णय के विरोध में उतर आयी है। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष पी.एस. श्रीधरन पिल्लई ने कहा कि भाजपा सरकार के रूख का विरोध करेगी। उन्होंने कहा कि मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार पुनर्विचार याचिका दाखिल न करके लोगों की आस्था के साथ खिलवाड़ कर रही है। सरकार ने सबरीमाला मंदिर में प्रवेश के प्रश्न को संघर्ष का विषय बना दिया है, इसे युद्ध का मैदान बना दिया है। उन्होंने यह भी कहा कि सबरीमाला मंदिर की परंपरा की रक्षा करने के लिए उनका संगठन किसी भी हद तक जायेगा। भाजपा की ओर से इस निर्णय के विरोध की कमान भाजपा के युवा मोर्चा और महिला मोर्चा ने संभाला है। भाजपा ने पंदालम के राजशाही परिवार से इस मुद्दे पर समर्थन के लिए संपर्क किया है। भाजपा का यह भी कहना है कि मंदिर के पुजारी हर उम्र की महिलाओं के प्रवेश के विरोध में हैं।
आरएसएस ने शुरूआत में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का समर्थन किया था, लेकिन अब उसने अपना रूख बदल लिया है और मोहन भागवत के बाद संघ के दूसरे सबसे प्रमुख पदाधिकारी भैयाजी जोशी ने कहा कि भक्तों की भावनाओं का खयाल रखा जाना चाहिए।
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सवर्णों के संगठन नायर सर्विस सोसायटी, कांग्रेस और भाजपा-संघ को इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग का भी समर्थन प्राप्त हुआ है। इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग, मुस्लिम लीग का भारतीय संस्करण है, जिसका केरल के मुस्लिम समाज के बीच अच्छी पैठ है। इस पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव पी. के. कुनहालिकुट्टी ने कहा है कि सरकार को भक्तों के साथ खड़ा होना चाहिए।
केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने कहा कि हर उम्र की महिलाओं की सबरीमाला मंदिर में प्रवेश के लिए सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय को सरकार तत्काल प्रभाव से लागू करेगी।
इस पूरे घटनाक्रम में एक बात साफ तौर उभर कर आती है कि एक दूसरे के धुर राजनीतिक विरोधी कांग्रेस, भाजपा और मुस्लिम लीग धार्मिक अंधविश्वासों और कूपमंड़ूकताओं के मुद्दों पर एक है और धार्मिक जीवन में स्त्री-पुरूष की समानता को स्वीकार करने को तैयार नहीं है। इसके साथ यह तथ्य भी उभर कर सामने आता है कि जनता के एक पिछड़ेपन को समर्थन देकर वोट हासिल करने के मामले में सभी एकमत हैं। इसके साथ सभी समूह किसी भी एक धार्मिक समूह के पिछड़ेपन को दूर करने के किसी भी प्रगतिशील निर्णय का इसलिए विरोध करते हैं क्योंकि उन्हें भय सताता है कि उनके धार्मिक समूह के पिछड़ेपन को दूर करने का भी कोई निर्णय आ सकता है, जैसे कि मुसलमानों के मामले में दरगाहों में महिलाओं के प्रवेश का मामला। हम सभी इस तथ्य से परिचित हैं कि मुस्लिम महिलाएं मस्जिद में जाकर नमाज नहीं पढ़ सकती हैं।

केरल के मामले में यहां यह भी याद रखना जरूरी है कि यह वही नायर समुदाय जो केरल में वर्ण-जाति व्यवस्था का सबसे मुखर समर्थक रहा है। शूद्रों-अतिशूद्रों को अपमानित करने वाली अमानवीय प्रथाओं का एक महत्वपूर्ण गढ़ केरल भी रहा है। लंबे संंघर्षों के बाद यहां शूद्रों-अतिशूद्रों ने अपने लिए समानता का अधिकार हासिल सैद्धांतिक और कानूनी स्तर पर हासिल किया था। इसमें मंदिर में प्रवेश का समान अधिकार भी शामिल है।
बहरहाल, केरल में एक बार फिर सवर्ण पुरुषों के वर्चस्व और धार्मिक विशेषाधिकारों के पक्ष में नायर सवर्ण, कांग्रेस, भाजपा और मुस्लिम लीग एक साथ खड़े हो गए है। यह एकजुटता कोई नयी नहीं है। धार्मिक पिछड़ापन के पक्ष में हिंदू-मुस्लिम एक साथ खड़े होते रहे हैं और इन्हें अन्य धार्मिक समूहों का भी समर्थन प्राप्त होता रहा है।
(कॉपी-संपादन : राजन/एफपी डेस्क)
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