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सुमित्रा महाजन के बयान का डॉ. उदित राज ने किया विरोध, क्रीमीलेयर को लेकर घेरेंगे सुप्रीम कोर्ट

भाजपा सांसद डॉ. उदित राज ने एक बार फिर अपनी ही पार्टी के खिलाफ बगावती रूख अख्तियार कर लिया है। उन्होंने लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन के बयान की आलोचना की तथा पदोन्नति में आरक्षण संबंधी फैसले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा एससी-एसटी पर क्रीमी लेयर लागू करने के फैसले का विरोध किया। फारवर्ड प्रेस की खबर :

बीते 2 अक्टूबर को भाजपा सांसद डॉ. उदित राज ने बगावती रूख अख्तियार कर लिया। उन्होंने लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन के उस बयान की निंदा की जिसमें उन्होंने आरक्षण को केवल दस वर्ष के लिए आवश्यक बताया था। डॉ. उदित राज नई दिल्ली के कंस्टीच्यूशन क्लब सभागार में राष्ट्रीय अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, पिछड़ा वर्ग विद्यार्थी और युवा मोर्चा के दूसरे राष्ट्रीय अधिवेशन का संबोधित कर रहे थे। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट द्वारा पदोन्नति में आरक्षण के संबंध में दिये गये फैसले में एससी-एसटी पर क्रीमी लेयर लागू किये का विरोध किया और 3 दिसंबर 2018 को सुप्रीम कोर्ट का घेराव करने का आह्वान किया।

डॉ. उदित राज ने साफ कहा कि उन्हें इस बात की परवाह नहीं है कि वे भाजपा के सांसद हैं। उनके लिए दलितों और पिछड़ों का हक और अधिकार महत्वपूर्ण है। आरक्षण के मसले पर लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन के वक्तव्य पर उन्होंने कहा कि दस साल के आरक्षण का सन्दर्भ देखा जाना चाहिए। दस साल की सीमा सिर्फ निर्वाचन में था, नौकरियों के लिए कोई समय सीमा नहीं है। समाज में आरक्षण बना हुआ है क्योंकि समाज को इसकी जरुरत हैं। इसकी जरुरत है क्योंकि समाज में असमानता है, भेद-भाव है। अगर यह न रहे तो आरक्षण की जरुरत ही क्या है।

अधिवेशन को संबोधित करते डॉ. उदित राज

वहीं सुप्रीम कोर्ट के जजमेंट के बारे में उन्होंने कहा कि वे विदेश में थे, इसलिए उन्होंने अभी तक जजमेंट नहीं पढ़ा है। लेकिन अगर उसमें यह लिखा है कि प्रमोशन में या आरक्षण में क्रीमी लेयर लगाया जाएगा तो वे इसके खिलाफ देशव्यापी आंदोलन चलाएंगे। अदालतों के रवैये पर उन्होंने कहा कि पिछले 15-20 वर्षों में बहुत से हितकारी कानून बने हैं लेकिन उसे अदालत के चोर दरवाजे से छीन लिया जाता है या कटौती कर दी जाती है या फिर उसे असरहीन करार दे दिया जाता है। इसका विरोध जरुरी है।

डॉ. उदित राज ने जोर देते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा पुनः एससी-एसटी एक्ट बहाल करने की बात हो या, 5 मार्च 2018 के यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन के सर्कुलर को वापस लेने की बात हो या इलाहबाद हाई कोर्ट के आदेश के बाद यूनिवर्सिटी में आरक्षण में कटौती की बात हो या फिर चंद्रशेखर रावण की रिहाई का मुद्दा हो, यह सब नहीं होता अगर लोग सड़कों पर न उतरे होते।




उन्होंने कहा कि अधिकतर दलित व पिछड़े वर्ग के नेता जो आपको बोलते हैं कि वे आपके लिए लड़ रहे हैं, वे अपने पार्टी  अध्यक्ष के सामने कुछ नहीं बोलते हैं। अपना मुँह तक नहीं खोलते हैं। उन्होंने कहा कि मैं जब सांसद नहीं था तब भी निजी क्षेत्र में आरक्षण की बात करता था आज भी करता हूँ। मैंने संसद में प्राइवेट बिल लाया। लेकिन कौन हमारे साथ आया? मैंने संसद में चंद्रशेखर रावण का मुद्दा उठाया लेकिन कौन मेरे साथ आया? उलटे मायावती उसे सहारनपुर के घटना का दोषी बता रही थीं। आज भी बताती हैं।

अधिवेशन में मौजूद गणमान्य

अधिवेशन को राष्ट्रीय अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, पिछड़ा वर्ग विद्यार्थी और युवा मोर्चा के पदाधिकारियों के साथ-साथ अन्य आमंत्रित सदस्यों ने भी सम्बोधित किया। इसमें दिल्ली हाईकोर्ट की अधिवक्ता सीमा कुशवाहा भी शामिल थीं, जिन्होंने राजनीति में महिलाओं की कम भागीदारी पर रोष जताया।

(कॉपी संपादन : एफपी डेस्क)


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लेखक के बारे में

अनिल कुमार

अनिल कुमार ने जेएनयू, नई दिल्ली से ‘पहचान की राजनीति’ में पीएचडी की उपाधि हासिल की है।

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