पांच राज्यों में चुनाव की डुगडुगी बज चुकी है। साथ ही जिन राज्यों में चुनाव होने हैं वहां राजनीतिक समीकरण बनाने की प्रक्रिया भी अंतिम तौर में है। मिजोरम और तेलंगाना को छोड़ दें तो अन्य तीन राज्यों मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में चुनाव युनाईटेड प्रोग्रेसिव एलायंस(यूपीए) बनाम नेशनल डेमोक्रेटिक एलायंस(एनडीए) है। तेलंगाना की बात इस बार अलग है। वजह यह कि यहां तीन खेमे बन चुके हैं। एक खेमा तेलंगाना राष्ट्र समिति(टीआरएस) का, दूसरा खेमा कांग्रेसनीत यूपीए और तीसरा खेमा बहुजन लेफ्ट फ्रंट का है। इस फ्रंट में 28 दल हैं जिनमें से एक सीपीआई(एम) भी शामिल है। इस फ्रंट ने घोषणा की है कि वह साठ प्रतिशत सीटों पर ओबीसी उम्मीदवार उतारेगी। जीत मिलने पर ओबीसी समाज के व्यक्ति को मुख्यमंत्री बनायेगी।
दरअसल तेलंगाना में 7 दिसंबर को चुनाव होने हैं। इसे लेकर चुनावी राजनीति सरगरमी अपने चरम पर है। सत्तासीन टीआरएस एक बड़ा खेमा है। हालांकि अभी तक भाजपा की तरफ से गठबंधन का कोई एलान नहीं किया गया है। हालांकि चंद्रशेखर राव की राजनीति का पूर्व का इतिहास बताता है कि उन्हें न तो कांग्रेस से कोई एलर्जी रही है और न ही भाजपा से। लेकिन इस बार कांग्रेस उन्हें सीधे-सीधे चुनौती दे रही है। उसने महागठबंधन को साकार करते हुए अपने साथ सीपीआई, टीडीपी, और तेलंगाना जन समिति को शामिल किया है।
बहुजन लेफ्ट फ्रंट में शामिल हैं 28 दल
कांग्रेस से बातचीत का दौर जारी
साठ फीसदी सीटों पर ओबीसी उम्मीदवार
जीतने पर ओबीसी मुख्यमंत्री उम्मीदवार की घोषणा
वर्तमान तेलंगाना विधानसभा में कुल 119 सीटें हैं। इनमें टीआरए के 68, कांग्रेस के 21, टीडीपी के 15, बीजेपी के 5 और अन्य दलों (निर्दलीय सहित) के सदस्यों की संख्या 15 हैं।

इस बार के विधानसभा चुनाव में बहुजन लेफ्ट फ्रंट के गठन ने सभी को चौंका दिया है। यह पहला मौका है जब तेलंगाना में बहुजन ताकतें एकजुट होने का प्रयास कर रही हैं। इस फ्रंट के सबसे बड़े घटक दल के रूप में सीपीआई(एम) है। साथ ही यह भी पहला मौका है जब वामपंथ पार्टियों में टूट हुई हैं। अब तक सीपीआई और सीपीआई(एम) एक-दूसरे के साथ मिलकर चुनाव लड़ते रहे हैं।
सीपीआई(एम) के राज्य सचिव टी. वीरभद्रम ने फारवर्ड प्रेस से बातचीत में बताया, “राज्य में ओबीसी की हिस्सेदारी सबसे अधिक है और यही वर्ग सबसे अधिक उपेक्षित रहा है। राजनीतिक स्तर पर इस वर्ग की हिस्सेदारी बहुत कम रही है। इसलिए हम लोगों ने बहुजन लेफ्ट फ्रंट बनाया है। इसमें 28 दल शामिल हैं। उन्होंने बताया कि फ्रंट इस बार 60 प्रतिशत सीटों पर ओबीसी के उम्मीदवारों को अवसर देगा। साथ ही एक साझा घोषणा पत्र भी जारी किया जाएगा जिसमें ओबीसी समाज के व्यक्ति को उम्मीदवार बनाया जाना शामिल है।”
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वीरभद्रम ने कहा, “राज्य में शिक्षा, स्वास्थ्य, जन वितरण प्रणाली आदि बुनियादी संरचनायें बदहाल हैं। हमारे एजेंडे में इन मुद्दों के अलावा जो बात सबसे अहम है वह है सामाजिक न्याय। दलित-बहुजनों को समुचित हिस्सेदारी मिले। इसके लिए ही बहुजन लेफ्ट फ्रंट का गठन किया गया है।”
हालांकि उन्होंने यह भी कहा, “बहुजन लेफ्ट फ्रंट को कांग्रेस से एतराज नहीं है। हम अभी भी कांग्रेस की पहल का इंतजार कर रहे हैं। हमारा एजेंडा बिल्कुल साफ है। हम सामाजिक न्याय को प्रमुखता से उठा रहे हैं। यदि कांग्रेस को हमारा साथ चाहिए तो वह हमारे साथ आए।”
बताते चलें कि सीपीआई(एम) का तेलंगाना में सिर्फ एक विधायक है। वीरभद्रम बताते हैं कि “यदि कांग्रेस के साथ गठबंधन नहीं हो सका तो उनकी पार्टी बहुजन लेफ्ट फ्रंट के घटक दल के रूप में 20 से 23 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। वहीं सीपीआई से अलग होकर चुनाव लड़ने के संबंध में उन्होंने बताया कि वामपंथ का मतलब उपेक्षित और कमजोर वर्ग के साथ उसके हितों के लिए संघर्ष करना है। हम यही कर रहे हैं।”
बहरहाल, बहुजन लेफ्ट फ्रंट में घूमंतू जातियों को प्राथमिकता देने वाली पार्टी समाजवादी फारवर्ड ब्लॉक भी शामिल है। इसके राष्ट्रीय सचिव सुब्बा राव ने फारवर्ड प्रेस को बताया कि उनकी पार्टी इस बार 10 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। इन सीटों पर इस बार घूमंतू जातियों के तो नहीं लेकिन पिछड़ा वर्ग के उम्मीदवार होंगे।
(कॉपी संपादन : सिद्धार्थ)
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