बीते 4 नवंबर 2018 को अखिल भारतीय पिछड़ा और अल्पसंख्यक समुदाय कर्मचारी संघ (बामसेफ) के राष्ट्रीय अध्यक्ष वामन मेश्राम के खिलाफ गुजरात के अहमदाबाद जिले में पुलिस ने एक मुकदमा दर्ज किया है। उनके खिलाफ आरोप लगाया गया है कि अपने संगठन बहुजन क्रांति मोर्चा के बैनर तले जेल भरो अभियान के दौरान उन्होंने सरकारी काम में बाधा पहुंचाई है। वहीं वामन मेश्राम ने अहमदाबाद पुलिस के इस कृत्य की निंदा की है और कहा है कि इस तरह की कार्रवाइयों से उनका हौसला टूटेगा नहीं, बल्कि और मजबूत होगा।
वामन मेश्राम के अलावा अन्य लाेग, जिनके खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया गया है, उनमें उनकी पत्नी मिशा मेश्राम, आदिवासी एकता परिषद के राष्ट्रीय प्रभारी प्रेम कुमार गेड़ाम, बहुजन क्रांति मोर्चा के गुजरात प्रदेश के संयोजक अनिल मोरया, नारम भाई गेरुआ आदि शामिल हैं।
बताते चलें कि वामन मेश्राम ने ‘संविधान बचाओ, लोकतंत्र बचाओ’ अभियान के तहत जेल भरो आंदोलन का आह्वान किया था। इस क्रम में वे गुजरात के अहमदाबाद पहुंचे और चांदखेड़ा थाने में अपने सैकड़ों समर्थकों के साथ गिरफ्तारी दी। लेकिन, पुलिस ने उनके ही खिलाफ एक मुकदमा दर्ज कर दिया।

अहमदाबाद पुलिस की कार्रवाई इसलिए भी कई सवाल खड़े करती है कि जब वामन मेश्राम ने अपने सैकड़ों समर्थकों के साथ गिरफ्तारी दी फिर पुलिस ने वामन मेश्राम सहित केवल 14-15 लोगों की ही गिरफ्तारी दिखाई। इतना ही नहीं, पुलिस ने इन सबों के खिलाफ पुलिस के साथ मारपीट, सरकारी काम में बाधा पहुंचाने, तोड़फोड़ करने आदि की संगीन धाराएं लगाकर एफआईआर दर्ज कर ली।
बहुजन विमर्श को विस्तार देतीं फारवर्ड प्रेस की पुस्तकें
गुजरात पुलिस की इस कार्रवाई के संबंध में प्रतिक्रिया देते हुए वामन मेश्राम ने फारवर्ड प्रेस को बताया, “गुजरात पुलिस के इस गैर-संवैधानिक कदम से वे और उनका बहुजन समाज एक बार फिर से आहत हुआ है। हमारा आंदोलन शांतिपूर्ण तरीके से देश भर में चला और कहीं से भी कोई अप्रिय घटना नहीं घटी। लेकिन, गुजरात में आंदोलन करने वालों के खिलाफ ही मुकदमा दर्ज किया गया। जबकि यह एक शांतिपूर्वक प्रदर्शन था और हम लोग खुद गिरफ्तारी देने गए थे। जनता के पास विरोध, असहमति और उसका इजहार करने का मौलिक अधिकार संविधान के आर्टिकल-19 के तहत दिया गया है। मगर यह सरकार संविधान तक का ख्याल नहीं रख रही है और दमनकारी नीति के तहत जन-विद्रोह को दबाने का काम कर रही है। इसे बिलकुल बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। क्योंकि, अगर हम डरकर चुप बैठ गए, तो साजिशकर्ता अपने उद्देश्य में सफल हो जाएंगे।”
यह भी पढ़ें : बहुजन क्रांति मोर्चा का आह्वान : संविधान और लोकतंत्र बचाने को भरो जेल
बामसेफ के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने कहा, “गुजरात में ऐसा कोई पहला मामला नहीं है। हमारा विरोध व आंदोलन इसी को लेकर तो है। गुजरात पुलिस द्वारा गलत धाराएं लगाकर जिस तरह हमें डराने की कोशिश की गई है, वैसा बिलकुल नहीं होगा। हम लोग इस तरह की पुलिसिया कार्रवाई से डरने वाले नहीं हैं और गैर-संवैधानिक तरीका, जो गुजरात पुलिस के द्वारा अपनाया गया है, उसके खिलाफ हम लोग लीगल ओपिनियन भी ले रहे हैं। शांतिपूर्ण तरीके से खुद गिरफ्तारी देने पहुंचे लोगों के खिलाफ पुलिस आखिर कैसे संगीन धाराएं लगाकर एफआईआर दर्ज कर सकती है?”
उन्होंने कहा कि गुजरात की पुलिस किसके इशारे पर काम कर रही है और क्यों कर रही है, यह हमारा बहुजन समाज समझता है और बता दें कि वह अपने मंसूबे में बिलकुल कामयाब नहीं होने वाली है। हमारा यह आंदोलन तीन चरणों में एक साथ 31 राज्यों के 550 जिलों और 4,000 तहसीलों में चलाने को लेकर हम लोग अभी भी दृढ़ संकल्पित हैं और अागामी 18 नवंबर को पहले चरण की तरह ही शांतिपूर्ण तरीके से दोपहर 1ः00 बजे से 5ः00 बजे तक देश भर में तहसील स्तर पर जेल भरो आंदोलन चलेगा और बहुजन क्रांति मोर्चा के सदस्य तहसील स्तर के थानों में एकत्रित होंगे और गिरफ्तारियां देंगे। वहीं तीसरे चरण में 26 नवंबर को प्रखंड स्तर पर जेल भरो आंदोलन होगा।
उन्होंने यह भी कहा कि इस आंदोलन के तहत सरकार को आगाह किया जाएगा कि वह एससी, एसटी पर होने वाले अत्याचार पर तत्काल रोक लगाए और संविधान के अनुच्छेद-19 का पालन सुनिश्चित करे और भीमा-कोरेगांव हिंसा के मुख्य आरोपियों को बचाने का काम नहीं करे। इसके अलावा जिस तरह प्राइवेटाइजेशन (निजीकरण) को बढ़ावा देकर आरक्षण को खत्म करने की साजिश की जा रही है, उस पर तत्काल रोक लगे।
मोर्चा के राष्ट्रीय प्रभारी कुमार काले ने बताया कि यह आंदोलन पूरी तरह से शांतिपूर्ण होगा और संविधान के दायरे में रहकर जेल भरो आंदोलन होगा। उन्होंने इसके तहत बहुजन समाज के एससी-एसटी, ओबीसी और धर्मपरिवर्तित अल्पसंख्यक समुदायों के युवाआें, महिलाआें, बेरोजगाराें, किसानाें, मजदूराें सहित समाज के बुदि्धजीवियों से अपील की है कि संविधान और लोकतंत्र बचाने के लिए ‘जेल भरो आंदोलन’ में बढ़-चढ़कर हिस्सा लें, ताकि लोकतंत्र पर जो खतरा मंडरा रहा है, उसे जड़ से समाप्त किया जा सके।
(कॉपी संपादन : प्रेम/एफपी डेस्क)
फारवर्ड प्रेस वेब पोर्टल के अतिरिक्त बहुजन मुद्दों की पुस्तकों का प्रकाशक भी है। हमारी किताबें बहुजन (दलित, ओबीसी, आदिवासी, घुमंतु, पसमांदा समुदाय) तबकों के साहित्य, संस्कृति, सामाज व राजनीति की व्यापक समस्याओं के सूक्ष्म पहलुओं को गहराई से उजागर करती हैं। पुस्तक-सूची जानने अथवा किताबें मंगवाने के लिए संपर्क करें। मोबाइल : +917827427311, ईमेल : info@forwardmagazine.in
फारवर्ड प्रेस की किताबें किंडल पर प्रिंट की तुलना में सस्ते दामों पर उपलब्ध हैं। कृपया इन लिंकों पर देखें