महाराष्ट्र में मराठों को आरक्षण दिए जाने संबंधी राज्य सरकार के फैसले के बाद गुजरात में अब एक बार फिर पाटीदारों के आरक्षण का मामला गरमा गया है। पाटीदार नेता हार्दिक पटेल ने इस संबंध में गुजरात पिछड़ा वर्ग आयोग की अध्यक्ष सुज्ञा भट्ट को ज्ञापन सौंपा है और उनसे अनुरोध किया है कि पाटीदार समुदाय का विशेष सर्वेक्षण कराया जाए।
साथ ही उन्होंने यह भी कहा है कि आयोग उस रिपोर्ट को भी सार्वजनिक करे, जिसे उस वक्त तैयार कराया गया था, जब नरेंद्र मोदी मुख्यमंत्री थे और उसी रिपोर्ट के आधार पर उनकी जाति ‘मोध-घांची’ को ओबीसी में शामिल किया गया था। हार्दिक ने कहा है कि इसी तरह का एक सर्वेक्षण पाटीदार समुदाय के लिए भी होना चाहिए। उन्होंने कहा कि 2012 से गुजरात में ओबीसी वर्ग में 146 जातियां शामिल हैं। इन जातियों के लोगों को आरक्षण का लाभ मिलता है। राज्य सरकार हर साल इस सूची में कुछ जातियों को जोड़ती है। उन्होंने भाजपा सरकार पर आरोप लगाया है कि वह वोटों के लिए उन जातियों को ओबीसी में शामिल कर रही है, जो पहले से ही समृद्ध हैं और किसी भी लिहाज से आरक्षण पाने के योग्य नहीं हैं।
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अपने ज्ञापन में हार्दिक ने इस बात का उल्लेख किया है कि पिछले 25 वर्षों से राज्य में भाजपा का शासन है और इन वर्षों में किसानों की स्थिति दिन-पर-दिन खराब होती जा रही है। उन्होंने कहा कि 1960 के बाद पाटीदार समाज के कुछ लोग जो सरकारी नौकरियां पाने में कामयाब हुए, उनकी स्थिति तो अच्छी हो गई। वे समृद्ध हो गए। परंतु जो पाटीदार खेती-किसानी में लगे रहे, वे गरीब रह गए। उनकी जमीनें जा चुकी हैं और वे सामाजिक रूप से भी पिछड़ चुके हैं। उन्हें आरक्षण की आवश्यकता है।

हार्दिक ने अपने ज्ञापन में तथ्यों के साथ बताया है कि 58.71 लाख परिवार, जो कि गुजरात की आबादी का करीब 48 फीसदी हैं, गांव में रहते हैं। इनमें 39.30 लाख परिवार खेती पर आश्रित हैं। इनमें 10.30 लाख परिवार आदिवासी हैं। 1.52 लाख परिवार अनुसूचित जाति और 16.56 लाख परिवार ओबीसी के हैं। वहीं 9.91 लाख परिवार पाटीदार समुदाय के हैं।
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पाटीदार नेता ने आयोग को बताया है कि गुजरात में किसानों की संख्या दिन-ब-दिन घटती जा रही है। 2017 में ही यह रिपोर्ट सामने आई थी कि बीते 10 वर्षों में किसानों की संख्या में 3.55 लाख की कमी आई है। 2001 में हुई जनगणना में यह आंकड़े सामने आए कि कुल आबादी की 27.30 प्रतिशत आबादी खेती करने वालों की थी, जो 2011 में घटकर 22 प्रतिशत रह गई। हार्दिक के अनुसार, इन आंकड़ाें को समझने की आवश्यकता है। सरकार की गलत नीतियों और सिंचाई के संसाधन नहीं होने के कारण खेती लाभदायक नहीं रह गई है। इसके चलते किसान अब किसी तरह मजदूरी करके अपना जीवन-यापन कर रहे हैं। इन किसानों में पाटीदार भी शामिल हैं, उन्हें आरक्षण की आवश्यकता है।
(कॉपी संपादन : प्रेम)
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