बहुजन चिंतक कांचा आयलैया शेफर्ड की मानें, तो देश भर के विश्वविद्यालयों में बाहरी हस्तक्षेप किस हद तक बढ़ गया है, इसका अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि पठन-पाठन तक का काम ‘पिक एंड चूज’ की तर्ज पर हो रहा है। विश्वविद्यालय व विभाग की स्वायत्तता की परवाह किए बगैर हिंदुत्व (हिंदुइज्म) थोपा जा रहा है। हमें सतर्क रहना होगा और इस तरह की किसी भी कोशिश के खिलाफ खड़ा रहना पड़ेगा।
आयलैया बीते 3 नवंबर 2018 को दिल्ली विश्वविद्यालय की आर्ट फैकल्टी में आयोजित संवाद कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे। इस मौके पर उन्होंने अपनी उन तीन किताबों ‘व्हाई आई एम नॉट ए हिंदू’, ‘पोस्ट हिंदू इंडिया’ और ‘गॉड एज पॉलिटिकल फिलॉस्फर : बुद्धा चैलेंजेज टू ब्राह्मिन्स’ का जिक्र करते हुए कहा, “इन किताबों में आखिर क्या गलत है, यह तो बताया जाए? पाठ्यक्रम से केवल यह कहकर हटाए जाने पर विचार किया जा रहा है कि ये किताबें हिंदुत्व के खिलाफ हैं। जबकि सच क्या है? यह नहीं बताया जा रहा है। इन किताबों में जो कुछ लिखा है, पब्लिक डोमेन में है। कुछ भी छिपा नहीं है और न ही कोई हिडेन एजेंडा है; तो फिर आखिर क्यों नहीं लेखक की मौजूदगी में तथ्यों पर चर्चा कराकर वस्तुस्थिति स्पष्ट कर ली जाती है?”

कार्यक्रम को संबोधित करते प्रो. कांचा आयलैया शेफर्ड
उन्होंने कहा, ‘‘जिन किताबों को लेकर सबसे अधिक हाय-तौबा मचायी जा रही है, उनमें से एक मेरी किताब ‘व्हाई आई एम नॉट ए हिंदू’ है। इस किताब के शीर्षक से ही सबसे अधिक आपत्ति है, जबकि ऐसा नहीं होना चाहिए। उसके फैक्ट्स पर गौर किया जाना चाहिए। इस किताब में मैंने फैक्ट्स के जरिये यह बताने की कोशिश की है कि एक शूद्र परिवार के घर में जन्म लेने वाला किस साइकोलॉजी में जीता है और उस आधार पर बताया गया है कि किस तरह इस तरह के परिवार में रहने वाला हिंदू नहीं है। विवाह की पूरी प्रक्रिया, पूजा-पाठ के तरीके व अलग देवी-देवता के तुलनात्मक अध्ययन के आधार पर किताब में निष्कर्ष पर निकाला गया है। लेकिन, उन तर्कों पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। बस, हिंदुत्व के खिलाफ बातें उन्हें नजर आती है और सत्ता के नशे में मदहोश होकर बैन कल्चर के जरिए किताबों को बाहर का रास्ता दिखाने का हरसंभव प्रयास हो रहा है। किताब का नजरिया क्या है, उसका प्रोसपेक्टिव क्या है, इन सब बातों से कुछ भी लेना देना नहीं, बस हिंदुत्व थोपना है, तो थोपना है।”
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हालांकि, आयलैया ने दिल्ली विश्वविद्यालय के राजनीति विज्ञान विभाग के सदस्यों को इस बात के लिए बधाई दी कि उन्होंने अपनी स्वायतत्ता का ख्याल रखते हुए विभागीय बैठक में जिन किताबों को लेकर आपत्तियां उठाई जा रही हैं, उन्हें एकमत से नकार दिया है। उन्होंने कहा, “डिपार्टमेंट को अपने इस डेमोक्रेटिक स्टैंड के लिए धन्यवाद। इससे विश्वविद्यालय में प्लूअरिस्ट आयडिया कंटिन्यू रहेगा और इससे हिंदुत्ववादियों को झटका लगेगा।”
लेखक ने अपने ऊपर हो रहे व्यक्तिगत हमले का जिक्र करते हुए बताया कि किस तरह उन्हें क्रिश्चियन ठहराने की कोशिश हो रही है? उन्होंने कहा, “इसके आधार में हमारे नाम के पीछे शेफर्ड शब्द बताया जा रहा है, जबकि यह चाल भी सफल नहीं होने वाली है। क्योंकि, हमारे पूर्वज भेड़-पालन का काम किया करते थे और शेफर्ड शब्द वहीं से आया है। मेरे ऊपर इस तरह के व्यक्तिगत हमले हो रहे हैं और अगर हम अपने ऊपर हमला करने व करवाने वालों के खिलाफ बोलना शुरू करें, तो इनकी बोलती बंद हो जाएगी। मसलन आज की तारीख में देश की दो प्रमुख शख्सियतों- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की बात करें, तो इन लोगों ने खुद को ओबीसी बता रखा है; जबकि ऐसा नहीं है। इसकी तह में जाएंगे, तब सब कुछ साफ हो जाएगा।”

कार्यक्रम के दौरान उपस्थित छात्र/छात्रायें
आयलैया ने कहा कि आरक्षण के नाम पर ऐसे फर्जी लोग फायदा उठा रहे हैं और जिन्हें वास्तव में इसका लाभ मिलना चाहिए, वे बदहाल हैं। उन्होंने कहा कि नरेंद्र मोदी सरकार के मंत्रिमंडल में कितने मंत्री शूद्र समुदाय से आते हैं, इसकी पड़ताल करेंगे तो दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा। उन्होंने जोर देकर कहा कि जब तक शूद्र समुदाय को सही मायने में हिस्सेदारी नहीं दी जाएगी, तब तक सही तरीके से देश का विकास नहीं हो सकता है। उत्पादन का काम शूद्र समुदाय करे और शासन कोई और। अब यह बिलकुल बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
बहुजन विमर्श को विस्तार देतीं फारवर्ड प्रेस की पुस्तकें
इस मौके पर संवाद कार्यक्रम का आयोजन करने वाले संगठन ‘फाइट फॉर सोशल जस्टिस इन डीयू’ के डाॅ. लक्ष्मण यादव व डाॅ. सुरेंद्र सिंह ने कांचा आयलैया को भरोसा दिलाया कि दलितों, पिछड़ों के अधिकारों के लिए शुरू की गई लड़ाई निरंतर तब तक चलेगी, जब तक समाज में समानता की बयार नहीं आ जाती है। साथ ही यह भी कहा कि कोर्स से किताबें बाहर करने का प्रयास लिटमस टेस्ट की तरह है, ताकि हिंदुत्व के एजेंडे को शिक्षण संस्थानों में बहाल करने वालों को पता चल सके कि विरोध किस हद तक जा सकता है। हम सबों को इसका अहसास हो चुका था और यही वजह है कि उन लोगों ने स्टैंडिंग कमेटी की उस बैठक के बाद से ही विरोध शुरू कर दिया था, जिसमें कांचा आयलैया की तीन किताबों को पाठ्यक्रम से हटाने का प्रस्ताव पास किया गया था। गत 24 अक्टूबर को स्टैंडिंग कमेटी की बैठक हुई थी और उसके अगले दिन 25 अक्टूबर से प्रस्ताव का विरोध शुरू हो चुका था। 30 अक्टूबर, 31 अक्टूबर व आज 3 नवंबर को तो विरोध सड़क पर ले आए और इसके बावजूद अगर विवादास्पद फैसले वापस नहीं लिए जाते हैं, तो फिर अगली रणनीति के तहत आगे की लड़ाई लड़ी जाएगी।
डाॅ. लक्ष्मण यादव के मुताबिक, “बैन कल्चर के खिलाफ मुहिम में विश्वविद्यालय के ज्यादातर शिक्षकों का साथ मिल रहा है। इनमें दिल्ली विश्वविद्यालय शिक्षक संघ (डूटा) की पूर्व अध्यक्ष प्रो. नंदिता नारायण व वर्तमान अध्यक्ष प्रो. राजीव रे भी शामिल हैं। डूटा के ही प्रो. रतनलाल ने कहा कि इस तरह के किसी भी प्रयास को शिक्षक सफल नहीं होने देंगे और इस गफलत में वे न रहें कि शिक्षक बंटे हुए हैं। विश्वविद्यालय की स्वायतत्ता का सवाल है और इससे बिलकुल समझौता नहीं किया जाएगा।’’
(कॉपी संपादन : प्रेम/एफपी डेस्क)
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AAJ KI SARKAR APNA MUH UPAR KER KE JOR JOR SE THUK RAHI HAI AUR APNE AAP KO SHABSHI DE RAHI HAI KI MAIN BAHUT JOR SE THUK RAHA HU… YE HMARE LIYE SAMMELIT EKKTA AUR BAHUJAN KRANTI KI JARURAT HAI AAJ HUM JIS DAUR SE GUJAR RAHE HAI UNKI STIK BYAKHYA KANCH ELAYA JI NE KIYA HAI….. JARURI HAI KI YE BAAT JAN JAN TAK PAHUCHE….. JAI BHIM
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