h n

झारखंड : आंदोलनरत चार पारा शिक्षकों की मौत, हड़ताल से स्कूलों में पठन-पाठन ठप्प

आदिवासी बहुल राज्य झारखंड में पिछले एक महीने से करीब 60 हजार पारा शिक्षक अपनी नौकरी को नियमित करने की मांग को लेकर हड़ताल कर रहे हैं। इस क्रम में चार शिक्षकों की मौत हो चुकी है। परंतु सरकार द्वारा कोई पहल नहीं किये जाने से हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं

झारखंड के पारा शिक्षक पिछले एक महीने से हड़ताल कर रहे हैं। वे अपनी नौकरी नियमित करने की मांग कर रहे हैं। उनके आंदोलन के कारण राज्य हजार नव प्राथमिक विद्यालय पूरी तरह बंद हैं और इस कारण करीब 42 लाख बच्चे स्कूल जाने से वंचित हैं। शिक्षकों के हड़ताल की एक वजह यह भी है कि अबतक चार शिक्षकों की मौत हो चुकी है। इनमें जीतन खातून, रामगढ़, बहादुर ठाकुर, हजारीबाग, कंचन कुमार दास, रामगढ़, उज्ज्वल कुमार राय, देवघर शामिल हैं।

वहीं इस संबंध में झारखंड के शिक्षा अधिकारी पल्ला झाड़ते नजर आ रहे हैं। फारवर्ड प्रेस के द्वारा शिक्षा मंत्री नीरा यादव से संपर्क करने का प्रयास किया गया लेकिन जानकारी मिली कि वे मीटिंग में ‘बिजी’ हैं। दूसरी ओर आंदोलनरत शिक्षक मांग कर रहे हैं कि मृतक शिक्षकों के परिजनों को सरकार 25 लाख रुपए मुआवजा और परिवार के एक सदस्य को नौकरी दे।

रांची में प्रदर्शन करते पारा शिक्षक

बताते चलें कि आंदोलनकारी पारा शिक्षकों द्वारा जारी भाजपा के सांसदों विधायकों के आवास पर धरना कार्यक्रम के तहत राज्य की कल्याण मंत्री लुईस मरांडी के दुमका स्थित आवास के सामने धरना पर बैठे पारा शिक्षक कंचन कुमार दास की पिछले 15 दिसंबर की रात को ठंड लगने की वजह से मौत हो गई। वे रामगढ़ प्रखंड के उत्क्रमित मध्य विद्यालय चिनाडंगाल में कार्यरत थे। कंचन कुमार दास की मौत के तीसरे दिन यानी 17 दिसंबर को एक और पारा शिक्षक उज्ज्वल कुमार राय की मौत हो गयी। सारठ थाना क्षेत्र के पारबाद गांव के रहनेवाले उज्ज्वल कुमार राय 15 नवंबर को रांची में पारा शिक्षकों के आंदोलन के दौरान पुलिस के डंडे से गंभीर रूप से घायल हो गये थे। रांची से लौटने के बाद उनका सारठ सीएचसी में प्राथमिक उपचार किया गया था। उस वक्त डाक्टर ने बेहतर इलाज के लिए रेफर कर दिया था। इसके बाद इलाज के लिए उज्ज्वल सीएमसी वेल्लोर भी गये। मगर आर्थिक तंगी के कारण बेहतर इलाज नहीं करा सके तथा 17 दिसंबर को पारबाद गांव में उनका निधन हो गया। उज्ज्वल सारठ प्रखंड के उत्क्रमित मध्य विद्यालय बस्की में बतौर पारा शिक्षक कार्यरत थे।

(कॉपी संपादन : एफपी डेस्क)


फारवर्ड प्रेस वेब पोर्टल के अतिरिक्‍त बहुजन मुद्दों की पुस्‍तकों का प्रकाशक भी है। एफपी बुक्‍स के नाम से जारी होने वाली ये किताबें बहुजन (दलित, ओबीसी, आदिवासी, घुमंतु, पसमांदा समुदाय) तबकों के साहित्‍य, सस्‍क‍ृति व सामाजिक-राजनीति की व्‍यापक समस्‍याओं के साथ-साथ इसके सूक्ष्म पहलुओं को भी गहराई से उजागर करती हैं। एफपी बुक्‍स की सूची जानने अथवा किताबें मंगवाने के लिए संपर्क करें। मोबाइल : +917827427311, ईमेल : info@forwardmagazine.in

फारवर्ड प्रेस की किताबें किंडल पर प्रिंट की तुलना में सस्ते दामों पर उपलब्ध हैं। कृपया इन लिंकों पर देखें 

 

बहुजन साहित्य की प्रस्तावना 

दलित पैंथर्स : एन ऑथरेटिव हिस्ट्री : लेखक : जेवी पवार 

महिषासुर एक जननायक’

महिषासुर : मिथक व परंपराए

जाति के प्रश्न पर कबी

चिंतन के जन सरोका

लेखक के बारे में

विशद कुमार

विशद कुमार साहित्यिक विधाओं सहित चित्रकला और फोटोग्राफी में हस्तक्षेप एवं आवाज, प्रभात खबर, बिहार आब्जर्बर, दैनिक जागरण, हिंदुस्तान, सीनियर इंडिया, इतवार समेत अनेक पत्र-पत्रिकाओं के लिए रिपोर्टिंग की तथा अमर उजाला, दैनिक भास्कर, नवभारत टाईम्स आदि के लिए लेख लिखे। इन दिनों स्वतंत्र पत्रकारिता के माध्यम से सामाजिक-राजनैतिक परिवर्तन के लिए काम कर रहे हैं

संबंधित आलेख

यूपी : दलित जैसे नहीं हैं अति पिछड़े, श्रेणी में शामिल करना न्यायसंगत नहीं
सामाजिक न्याय की दृष्टि से देखा जाय तो भी इन 17 जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने से दलितों के साथ अन्याय होगा।...
बहस-तलब : आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के पूर्वार्द्ध में
मूल बात यह है कि यदि आर्थिक आधार पर आरक्षण दिया जाता है तो ईमानदारी से इस संबंध में भी दलित, आदिवासी और पिछड़ो...
साक्षात्कार : ‘हम विमुक्त, घुमंतू व अर्द्ध घुमंतू जनजातियों को मिले एसटी का दर्जा या दस फीसदी आरक्षण’
“मैंने उन्हें रेनके कमीशन की रिपोर्ट दी और कहा कि देखिए यह रिपोर्ट क्या कहती है। आप उन जातियों के लिए काम कर रहे...
कैसे और क्यों दलित बिठाने लगे हैं गणेश की प्रतिमा?
जाटव समाज में भी कुछ लोग मानसिक रूप से परिपक्व नहीं हैं, कैडराइज नहीं हैं। उनको आरएसएस के वॉलंटियर्स बहुत आसानी से अपनी गिरफ़्त...
महाराष्ट्र में आदिवासी महिलाओं ने कहा– रावण हमारे पुरखा, उनकी प्रतिमाएं जलाना बंद हो
उषाकिरण आत्राम के मुताबिक, रावण जो कि हमारे पुरखा हैं, उन्हें हिंसक बताया जाता है और एक तरह से हमारी संस्कृति को दूषित किया...