बीते 22 जनवरी 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ केंद्र सरकार द्वारा दायर याचिका को खारिज कर दी है। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के इस फैसले पर अपनी मुहर लगा दी है कि विश्वविद्यालयों में शिक्षकों की नियुक्ति के लिए आरक्षण का आधार विभाग होंगे। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ देश भर के दलित, आदिवासी और ओबीसी शिक्षक आक्रोशित हैं। वे अपने आक्रोश का प्रदर्शन अगले सप्ताह उन एससी, एसटी और ओबीसी से आने वाले सांसदों का घेराव कर करेंगे। इस आशय की जानकारी दिल्ली विश्वविद्यालय मेें एकेडमिक काउंसिल के सदस्य प्रो. हंसराज सुमन ने फारवर्ड प्रेस से विशेष बातचीत में दी।
उन्होंने कहा, “ऑल इंडिया एससी-एसटी-ओबीसी कॉलेज एंड यूनिवर्सिटी एसोसिएशन के बैनर तले देश भर के शिक्षक प्रतिनिधि अगले सप्ताह बैठक करेंगे। इसके बाद हमलोग एससी, एसटी और ओबीसी सांसदों का घेराव करेंगे जो पूर्व में सवाल उठाने पर हमें आश्वासन देते थे कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को केंद्र सरकार द्वारा एसएलपी दायर कर चुनौती दी गयी है और इसका फैसला हमारे पक्ष में आएगा। लेकिन इसके विपरीत हुआ है। हम उनसे मांग करेंगे कि वे सरकार पर अध्यादेश लाने का दबाव बनाएं ताकि आरक्षित वर्गों की हकमारी न हो। ”

प्रो. सुमन ने कहा कि केंद्र सरकार ने आरक्षित वर्ग को धोखा दिया है। उसके वकील ने इस मामले में कमजोर पैरवी की। सच्चाई यह है कि आज की तारीख में देश भर के विश्वविद्यालयों में आरक्षित वर्गों के बड़ी संख्या में पद रिक्त पड़े हैं। अकेले केवल दिल्ली विश्वविद्यालय में साढ़े चार हजार से अधिक पद इस रिक्त हैं। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले काे यदि लागू किया गया तो इसका असर उन हजारों तदर्थ शिक्षकों पर भी पड़ेगा जो इस बार स्थायी होने की बाट जोह रहे हैं। यदि 200 प्वायंट के आधार पर रोस्टर बनेगा तब निश्चित तौर पर पचास फीसदी सीटों पर एससी, एसटी और ओबीसी के शिक्षकों को लाभ मिलेगा। परंतु अब यदि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के आधार पर विभागवार आरक्षण का प्रावधान होगा तो आरक्षित वर्ग के लिए कोई पद नहीं होगा।
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उन्होंने कहा, “इस बात को ऐसे समझिए कि एक विभाग में सामान्यत: छह पद होते हैं। इसमें एक प्रोफेसर, दो एसोसिएट प्रोफेसर और तीन असिस्टेंट प्रोफेसर के पद शामिल होते हैं। यदि विभागवार आरक्षण का प्रावधान हुआ तब ओबीसी को एक पद मिलेगा जबकि एससी और एसटी के लिए कोई पद आरक्षित नहीं होगा।”
(कॉपी संपादन : सिद्धार्थ)
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