लोकेश सोरी करीब तीन महीने बाद अपने घर लौटे हैं। तीन महीने पहले उन्हें छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के डॉ. आंबेडकर मेमोरियल अस्पताल में भर्ती कराया गया था। इससे पहले कांकेर के चिकित्सकों ने उन्हें कैंसर बताया था। वे निराश हो चुके थे। उनकी निराशा की एक बड़ी वजह यह रही कि मनुवादियों ने उनके खिलाफ यह अफवाह फैला दिया था कि चूंकि उन्होंने दुर्गा के उपासकों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया है, इसलिए उन्हें कैंसर जैसा रोग हुआ है। यह भी कहा गया कि जब तक लोकेश दुर्गा की मूर्ति के सामने सिर झुकाकर माफी नहीं मांगेंगे, उन्हें रोग से मुक्ति नहीं मिलेगी।
इस प्रकार लोकेश सोरी दिन पर दिन बढ़ती जा रही बीमारी से तो लड़ ही रहे थे, मनुवादियों के द्वारा फैलाए इस झूठ से भी लड़ रहे थे। उन्हें अपनी मौत से अधिक चिंता इस बात की रही कि यदि उनकी मौत हो गई तब मनुवादियों का फैलाया भ्रम सच साबित हो जाएगा और इस कारण हाल के वर्षों में कांकेर में ब्राह्मणवादियों के खिलाफ जो आंदोलन उन्होंने खड़ा किया, वह खत्म हो जाएगा। उन्होंने हार नहीं मानी।
रायपुर अस्पताल में उन्हें चिकित्सकों से इस बात की जानकारी मिली कि जो कैंसर उन्हें हुआ है, वह मैक्सिलरी कैंसर है। वह लाइलाज नहीं है। वह ठीक हो सकता है। इसके अलावा उन्हें यह भी जानकारी मिली कि इसके लिए आपरेशन की आवश्यकता नहीं है। लोकेश बताते हैं कि “चिकित्सकों के इस आश्वासन ने बड़ा संबल दिया। पहले एक तरफ तो यह चिंता खाये जा रही थी कि आपरेशन में बहुत खर्च होगा और फिर इस बात की गारंटी भी नहीं थी कि आपरेशन के बाद ठीक हो ही जाएगा। पहली बार 23 अक्टूबर 2018 को रायपुर अस्पताल में डाक्टरों ने कीमोथेरैपी की। इसके बाद 33 बार सेंकाई की। शुरू-शुरू में असहनीय पीड़ा होती थी और सप्ताह तक नाक से मवाद निकलता रहता था। खाने के नाम पर केवल तरल पदार्थ दिया जाता था।”

लोकेश बताते हैं कि “शुरू में मैंने भी हार मान ली थी जब कैंसर के कारण बहरा होने लगा और आंखों के सामने भी अंधेरा छाने लगा था। पहले यह लगा कि यह सब कमजोरी के कारण हो रहा है, परंतु ऐसा नहीं था। बीमारी अंदर ही अंदर बढ़ती जा रही थी। इलाज के दौरान सेंकाई दर सेंकाई हालत सुधरती गई। जब चिकित्सकों ने बीस दिनों के लिए घर जाने की अनुमति दी तो लगा जैसे मौत पर विजय प्राप्त कर घर लौट रहा हूं। नहीं तो जिस दिन अपने भाई खमेश सोरी के साथ कांकेर से रायपुर के लिए निकला था , तब यह स्वीकार कर चुका था कि यह मेरी अंतिम यात्रा है और शायद मैं कभी न लौट सकूं।”
कौन हैं लोकेश सोरी?
लोकेश सोरी छत्तीसगढ़ के कांकेर जिले के पखांजूर प्रखंड के निवासी हैं। वे अनुसूचित जाति में शामिल गांडा जाति से आते हैं। पूर्व में पखांजूर प्रखंड के वार्ड संख्या 9 के पार्षद रहे लोकेश भाजपा के अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति प्रकोष्ठ, कांकेर के अध्यक्ष भी थे। लोकेश उस समय चर्चा का विषय बने जब 27 सितंबर 2017 को उन्होंने दुर्गा के उपासकों के खिलाफ मामला दर्ज कराया था। यह मुकदमा था भी ऐतिहासिक। भारत के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ था कि किसी ने दुर्गा द्वारा महिषासुर का वध प्रदर्शित किए जाने के खिलाफ इस तर्क के आधार पर मामला दर्ज कराया था कि महिषासुर उनके आराध्य हैं। इसके लिए उन्होंने पांचवीं अनुसूची के तहत कानूनी प्रावधान का हवाला भी दिया था।
इस मुकदमे ने तब कांकेर से लेकर रायपुर तक पुलिस महकमे की नींद तो उड़ा ही दी थी, मनुवादियों को भी कड़ी चुनौती दी थी। संभवत: इसी का परिणाम रहा कि दो दिनों बाद ही उनके खिलाफ एक मुकदमा दर्ज कराया गया और पुलिस ने मनुवादी धर्म निभाते हुए लोकेश को गिरफ्तार कर लिया। उन पर आरोप लगाया गया कि उन्होंने व्हाट्सअप के जरिए दुर्गा के खिलाफ संदेश प्रसारित किया है जिससे उनकी (मनुवादियों) की भावनाएं आहत हुई हैं।
हालांकि पुलिस न्यायालय में लोकेश के खिलाफ ऐसे सबूत नहीं पेश कर सकी कि वे (मनुवादी) उन्हें जेल में रख पाते। सत्रह दिनों के बाद ही उन्हें जमानत दी गयी और जब वे बाहर निकले तब कांकेर के दलितों और आदिवासियों में गजब का उत्साह देखा गया।
इसके बाद लोकेश पूरे कांकेर में ब्राह्मणवादियों के खिलाफ लड़ाई के नायक बन गए। जहां कहीं भी ब्राह्मणवादियों के खिलाफ कोई आयोजन होता, लोकेश सबसे आगे रहते।
पहले सामने आया सायनस
सब कुछ वैसा ही हो रहा था जैसा कि लोकेश चाहते थे। परंतु, इस बीच नाक में उन्हें समस्या आने लगी। पहले तो चिकित्सकों ने साइनस बताया और वे इलाज कराने लगे। ताबड़तोड़ दवाईयों के बावजूद जब समस्या कम होने के बजाय बढ़ने लगी तब वे कांकेर के बड़े अस्पताल पहुंचे। वहां चिकित्सकों ने बताया कि उन्हें मैक्सिलरी कैंसर है।
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लोकेश बताते हैं कि “जब पहली बार डाक्टरों ने कैंसर होने की बात कही तब लगा जैसे पैरों तले जमीन खिसक गयी। बाद में जब यह बताया गया कि यह कैंसर सामान्य कैंसर नहीं है। इसके इलाज में बहुत पैसा खर्च होता है और ठीक होने की गारंटी भी नहीं है तब लगा जैसे जीवन का अंत नजदीक आ गया है।”
फारवर्ड प्रेस ने भी दी ताकत
लोकेश के अनुसार, “मेरे खिलाफ तब मनुवादियों ने मोर्चा खोल दिया। वे यह प्रचार करते थे कि मेरी बीमारी की वजह दुर्गा का कोप है। यहां तक कि मेरे परिजनों ने भी यह मान लिया था। मैं निराश के गहरे अंधकार में डूबने लगा था। मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि क्या सचमुच ऐसा हो सकता है? इस बीच फारवर्ड प्रेस द्वारा एक खबर ‘कैंसर लोकेश सोरी के शरीर में ही नहीं, द्विजवादियों के मस्तिष्क में भी है’ प्रकाशित की गयी, जिसमें कहा गया कि कैंसर का इससे कोई लेना-देना नहीं है। यहां तक कि गुरू गोलवलकर जिन्हें आरएसएस के लोग अपनी प्रेरणा मानते हैं, वे भी कैंसर के कारण ही मरे थे। गोवा के सीएम मनोहर पार्रिकर को भी कैंसर है। फारवर्ड प्रेस की खबर ने भी मुझे मानसिक ताकत दी। जब लोग मुझे कहते कि यह सब दुर्गा के कोप के कारण है तो उन्हें मैं बताता कि मनुवादी भ्रम फैला रहे हैं ताकि ब्राह्मणवाद के खिलाफ जो लड़ाई शुरू हुई, वह आगे न बढ़ सके।”

जारी रहेगा लोकेश का संघर्ष
लोकेश बताते हैं कि डाक्टरों ने उन्हें बीस दिनों के लिए घर जाने की अनुमति दी है। कहा गया है कि इस बीच यदि कोई समस्या हो तो फौरन अस्पताल आ जाएं। हालांकि अब घर आए एक सप्ताह का समय बीत चुका है, कोई परेशानी सामने नहीं आई है। शरीर में कमजोरी है, इसलिए घर के बाहर निकलना नहीं हो पा रहा है। बीस दिनों की मियाद पूरी होने के बाद रायपुर एक बार फिर चेकअप के लिए जाएंगे और उन्हें विश्वास है कि इस बार डाक्टर लंबे समय के लिए घर जाने की अनुमति देंगे। जैसे ही शरीर में ताकत आएगी, वे घर से बाहर निकलकर खुद को ब्राह्मणवादियों के खिलाफ आंदोलन के लिए समर्पित कर देंगे।
(कॉपी संपादन : सिद्धार्थ)
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