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कैंसर लोकेश सोरी के शरीर में ही नहीं, द्विजवादियों के मस्तिष्क में भी है!

महिषासुर के अपमान के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाने वाले सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ता लोकेश सोरी कैंसर से जूझ रहे हैं। आरएसएस के लोग प्रचाारित कर रहे हैं कि उनकी बीमारी दुर्गा के कोप का प्रभाव है। सरसंघचालक  रहे गोलवलकर भी कैंसर से मरे थे, तो क्या यह माना जाए कि उन्हें महिषासुर का कोप लगा था? फारवर्ड प्रेस की रिपोर्ट :

छत्तीसगढ़ के कांकेर जिले में एक साल पहले, 28 सितंबर 2017 को एक  ऐतिहासिक घटना घटित हुई थी। इस दिन वहां देश में पहली बार दुर्गा द्वारा आदिवासी-बहुजन नायक महिषासुर का मर्दन दिखाने वाले दुर्गा पूजा आयोजकों के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज  कराई गई थी। यह शिकायत कांकेर जिले के पखांजूर निवासी दलित नेता लोकेश सोरी ने दर्ज करवाई थी। लोकश भारतीय जनता पार्टी से जुडे हैं तथा क्षेत्र में उनके समर्थकों की संख्या अच्छी-खासी है। इस कारण पुलिस पर दुर्गा पूजा आयोजकों के खिलाफ कार्रवाई करने का दबाव बनने लगा था। लेकिन, 28 सितंबर की शाम ढलने से पूर्व यह सूचना वहां से बाहर निकली और देर रात तक रायपुर में मुख्यमंत्री कार्यालय से लेकर नागपुर के आरएसएस मुख्यालय तक के टेलीफोन के तार झनझनाते रहे। छत्तीसगढ़ से लेकर दिल्ली तक गद्दी पर काबिज इस  संगठन के लोग सक्रिय हुए और जैसी कि उम्मीद थी, जन-दबाव के बावजूद कांकेर पुलिस को लोकेश सोरी द्वारा दर्ज करवाई गई शिकायत को एफआईआर में तब्दील होने से रोक दिया गया।

उलटे लोकेश सोरी पर ही एक एफआईआर दर्ज की गई। शिकायतकर्ताओं का कहना था कि उन्होंने एक व्हाट्स एप ग्रुप में एक संदेश भेजा है, जिससे हिंदू देवी दुर्गा का अपमान होता है और  द्विज हिंदुओं की भावनाएं आहत होती हैं। पुलिस ने इस एफआईआर पर त्वरित कार्रवाई की। लोकेश सोरी को 29 सितंबर, 2017 को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया। करीब डेढ़ महीने बाद न्यायालय से उन्हें जमानत मिली। लेकिन जब वे जेल से बाहर आए, तो उनका मामूली-सा साइनस कैंसर के नासूर में तब्दील हो चुका था।

इन दिनों  वे मैक्सिलरी कैंसर से जुझ रहे हैं और छत्तीसगढ़ जिले के रायपुर स्थित डॉ. भीमराव आंबेडकर स्मृति चिकित्सालय में उनका इलाज चल रहा है।

उनकी बीमारी को लेकर मनु  द्विजवादियों का पढ़ा-लिखा तबका दुष्प्रचार कर रहा है कि “उसने (लोकेश सोरी ने) दुर्गा का अपमान किया था, जिसकी उसे सजा मिल रही है। जब तक वह दुर्गा के आगे नाक रगड़कर माफी नहीं मांगेगा, उसका रोग जस का तस बना रहेगा और वह ऐसे ही मर जाएगा।”

जबकि लोकेश इसे महज अफवाह मानते हैं और चिकित्सक भी यही मानते हैं कि यह बीमारी किसी को भी हो सकती है। इसका दुर्गा की आलोचना से कोई लेना-देना नहीं है।

रायपुर के डॉ. भीमराव स्मृति अस्पताल में इलाजरत लोकेश सोरी

बताते चलें कि अदालत से जमानत मिलने पर करीब डेढ़ महीने बाद नवंबर में रिहा हुए लोकेश को साइनस की तकलीफ बढ़ी और जब जांच हुई, तो कैंसर के शुरुआती लक्षण दिखे। रायपुर के सरकारी अस्पताल में लोकेश की सर्जरी हुई और कहा गया कि उसके बाद कीमोथैरेपी करानी है। मगर समय से कीमोथैरेपी नहीं ली गई। अब ज​ब उनको नाक से सांस लेने में दिक्कत हो रही है, कानों से ठीक-ठीक सुनाई नहीं दे रहा है और मुंह में भी तकलीफ हो रही है, साथ ही लगातार मुंह-नाक से खून निकलने लगा है; तब उनके छोटे भाई खमेश सोरी उन्हें 12 अक्टूबर 2018 को रायपुर अस्पताल लेकर पहुंचे। वहां डॉक्टरों ने शुरुआती चेकअप के बाद बताया कि कैंसर के अलावा उनको दिल से संबंधित तकलीफ भी है।

लोकेश सोरी कहते हैं, “मेरी बीमारी को लेकर मनुवादी व्यवस्था के पोषक ब्राह्मणवादी समाज का पढ़ा-लिखा तबका एक सुर में अफवाह फैला रहा है कि चूंकि मैंने उनकी देवी दुर्गा को लेकर टिप्पणी और दुर्गा पूजा में महिषासुर वध दिखाने वाले आयोजकों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाई थी, जिसका दंड मुझे बीमारी के बतौर मिला है। साथ ही उनकी (मनुवादियों की) पिछड़ों-दलितों को यह एक चेतावनी भी है कि अपनी मूल्य-मान्यताओं, आदर्शों-महापुरुषों को छोड़ो और जो हमने यानी मनुवाद ने गढ़ा है, आंख-कान बंद करके उसी का पालन करते रहो। आदिवासी समाज के लेागों के मन में भी डर पैदा कर रहे हैं कि आज तक किसी ने दुर्गा पूजा करने वालों के खिलाफ एफआईआर करने का दुस्साहस नहीं किया, लोकेश सोरी ने किया तो उसका दंड उसे दुर्गा ने हाथ के हाथ दे दिया है।  मुझ पर दुर्गा का महाप्रकोप है, इस बात का पंडे-पुजारियों द्वारा कुत्सित प्रचार किया जा रहा है। कुतर्क गढ़ा जा रहा है कि अगर महिषासुर और रावण आदिवासियों-पिछड़ों के आराध्य हैं, तो अब तक यह समाज क्यों सोया था। मगर हम जब अपने मूल्यों के प्रति चेतेंगे तभी तो जुबान खोलेंगे। मेरी बीमारी को लेकर किए जा रहे दुष्प्रचार का असर यह है कि आदिवासियों का एक वर्ग भी स्वीकारने लगा है कि मैंने शायद कुछ गलत किया है। वे भयभीत हो रहे हैं कि मुझ पर दुर्गा का ही प्रकोप है। हालांकि, मेरा साथ देने वालों का भी एक बड़ा तबका है, जिनसे इस बीमारी में भी मुझे हिम्मत मिल रही है।”

बहुजन विमर्श को विस्तार देतीं फारवर्ड प्रेस की पुस्तकें

लोकेश आगे कहते हैं, “ब्राह्मणवादी व्यवस्था के पोषक लोग हमें अपने आदर्शों और आराध्यों- महिषासुर, रावण इत्यादि के दिवस इसलिए आयोजित नहीं करने देना चाहते। हम अपने बुजुर्गों को महिषासुर को  सम्मान देते और उन्हें बतौर आराध्य पूजते देखते आ रहे हैं। जब हमारे घरों में नवान्न (नया अनाज) आता है, तो सबसे पहले महिषासुर, जिन्हें हमारे इलाके में भैंसासुर भी कहा जाता है; की प्रतिमा बनाकर उस पर चढ़ाया जाता है, तब घर में उसका उपयोग किया जाता है।  जब ब्राह्मणवादियों द्वारा उनका सरेआम अपमान करते देखा्, तो लगा कि अब हमारे आराध्यों-देवताओं का अपमान बंद होना चाहिए। अपने जल-जंगल-जमीन की तरह मूल्य-मान्यताओं का संरक्षण भी हमारा फर्ज है, जिसका निरादर कतई नहीं होना चाहिए।”

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भाजपा के दलित प्रकोष्ठ के नेता रहे और बाद में पार्षद चुने गए लोकेश सोरी अब भाजपा छोड़ चुके हैं। उनके मुताबिक, ‘’जब मैं भाजपा से जुड़ा था, तब मुझे यह जानकारी नहीं थी कि यह पार्टी बहुजनों का इस कदर निरादर करती है। हमारे आदर्शों, सांस्कृतिक परंपराओं आदि के लिए यहां (भाजपा में) कोई जगह नहीं है। पिछले साल जब मैंने महिषासुर का अपमान करने वालों के खिलाफ एफआईआर करवाने की पहल की, तो यह शिद्दत से महसूस करने के साथ भोगा भी। जब मैं अपने समाज के लोगों के साथ हमारी धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के खिलाफ थाने पहुंचा, तो उलटा मुझे डांट दिया गया, मेरे साथ ऐसा व्यवहार किया गया जैसे कोई मजाक हो रही हो और उसके बाद तो मुझ पर ही आईपीसी की धारा-44 के तहत एफआईआर दर्ज करके गिरफ्तार कर लिया गया और बाद में धारा-295 जोड़ दी गई। दूसरी तरफ मेरे द्वारा दर्ज करवाई गई महिषासुर के अपमान की एफआईआर पर न किसी ने तनिक भी विचार किया और न ही शासन-प्रशासन में मेरी बात कोई सुनने वाला है। उन्हीं लोगों का राज है, तो आखिर कौन कार्रवाई करेगा‍? जो एसआई इस मामले में थोड़ा दखल दे रहे थे उनका भी ट्रांसफर इसलिए कर दिया गया कि वे​ भी पिछड़े वर्ग के थे। बाकी पहले के दारोगा का क्या रुख रहा, यह मैं पहले भी बता ही चुका हूं। महिषासुर को अपमानित करने वालों पर धारा-155 लगाकर उन्हें कोर्ट में हाजिर होने को कहकर पुलिस द्वारा खुली छूट दे दी गई।’’  

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गौरतलब है कि लोकेश सोरी पर दुर्गा के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी मामले में एफआईआर दर्ज करवाने वाले उन्हीं की पूर्व पार्टी भाजपा से जुड़े नेता शामिल थे और अब भी बीमारी के खिलाफ दुष्प्रचार का मोर्चा इन्हीं लोगों ने संभाल रखा है।

लोकेश सोरी की मां और पत्नी  भी इस घटनाक्रम से बेहद तनाव में हैं। विभिन्न प्रकार से अंधविश्वासों में पले-बढ़े होने के कारण वे मानती हैं  कि “बीमारी का कारण जेल की प्रताड़ना के अतिरिक्त ब्राह्मणवादियों द्वारा इन पर करवाया गया काला जादू भी है।’’ दूसरी ओर, डॉक्टरों ने उनके भाई खमेश सोरी को शुरुआती जांचों के बाद बताया है कि कैंसर के अलावा इनके दिल पर भी असर पड़ा है और शायद इसका कारण डर रहा होगा।

अस्पताल में इलाजरत लोकेश सोरी पत्नी, बच्चे और अपने भाई खमेश सोरी के साथ

शिक्षा विभाग में चपरासी पिता के बेटे और आदिवासियों-पिछड़ों के लिए संघर्षरत लोकेश सोरी कहते हैं, “ब्राह्मणवाद के पोषकों ने जिस तरह का माहौल मेरे खिलाफ बनाकर षड्यंत्र रचा, उससे मेरी गिरफ्तारी के बाद मुझे लगातार अपनी जान का खतरा बना रहा है। लगता था मेरा मर्डर न कर दिया जाए, क्योंकि धर्म के नाम पर कुछ भी करवाना भारत में बहुत आसान है। डर के साये में जीता रहा हूं मैं। बीमारी के बाद अब परिवार पर हमले और उसकी सुरक्षा का डर सताता रहता है। मेरे तीन बच्चे हैं, जिनमें से छोटा बेटा तो अभी यूकेजी में पढ़ता है।”

 

लोकेश सोरी के छोटे भाई खमेश सोरी जो कि खेती-बाड़ी करते हैं, कहते हैं, “दो-तीन दिन घर में मुंह-नाक से खून निकलने के बाद मैं उन्हें रायपुर अस्पताल में भर्ती करवाने लाया और यहां उनका उपचार शुरू हो गया है। मैं इंटीरियर इलाके में रहता हूं, जहां भैया को हमारा समाज बहुत सम्मान से देखता है। कहा जाता है कि लोकेश सोरी हमारे आराध्यों और मूल्यों-मान्यताओं, संस्कृति से हमें परिचित कराने की पहल करते रहे हैं। उन्होंने आदिवासियों-पिछड़ों को रास्ता दिखाने का जो साहस किया है, वह आज तक किसी ने नहीं किया। यह मनुवादियों की चाल है, ताकि हम डरकर उन्हीं का अनुसरण करते हुए अपने आदर्शों के अपमान में भागीदार बनें।”

क्या कहते हैं चिकित्सक?

दिल्ली के एम्स में चिकित्सक रहे और आदिवासी संगठन जय आदिवासी युवा शक्ति के राष्ट्रीय संरक्षक डॉ. हीरालाल अलावा कहते हैं, “कैंसर किसी को भी हो सकता है। लेकिन, इसकी वैज्ञानिक वजहें होती हैं। इसलिए यह कहना तो सरासर बेबुनियाद बात है कि किसी को गाली देने से या आलोचना करने से किसी व्यक्ति को कैंसर हो जाता है। दुर्गा पूजा के आयोजकों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराने के कारण किसी को कैंसर नहीं हो सकता है। जैसा कि मैंने पहले कहा कि इसकी कई वजहें हो सकती हैं। कई बार कैंसर उन्हें भी हो जाता है, जो किसी तरह का नशा नहीं करते हैं। यह कहना कि दुर्गा के प्रकोप के कारण कैंसर हुआ महज अफवाह है, ताकि लोग डर जाएं।’’

डाॅ. हीरालाल आलावा, चिकित्सक

गोरखपुर के एक सरकारी अस्पताल में कार्यरत चिकित्सक डाॅ. वीरेंद्र चौधरी भी मानते हैं कि कैंसर कोई लाइलाज बीमारी नहीं है। लोकेश सोरी को हुई बीमारी के बारे में उन्होंने कहा, “यह साइनस की वजह से हुआ कैंसर है। इसे यूं समझें कि सिर में हड्डियों के बीच खाली जगह होती है। इसे ही साइनस कहा जाता है। जब साइनस में अतिरिक्त कोशिकाएं बननी शुरू हो जाती हैं, तो परेशानी होने लगती है। मसलन लोकेश के मामले में मैक्सिलरी साइनस के लक्षण हैं। इसमें नाक में रुकावट होने लगती है।

वे कहते हैं, “मरीज का इलाज सर्जरी से किया जा सकता है। यदि प्रारंभिक अवस्था में हो, तो यह आसान होता है। कभी-कभी तो रेडियो सर्जरी से भी काम चल जाता है। हालांकि, यदि यह कैंसर एडवांस स्टेज में हो, तब भी इलाज संभव है। मैं लोकेश सोरी जी को सलाह देना चाहता हूं कि वे कैंसर के इलाज के लिए प्रसिद्ध किसी बड़े अस्पताल में जाएंऔर किसी विशेषज्ञ की निगरानी में अपना इलाज कराएं। साथ ही वे इस बात की बिलकुल परवाह न करें कि उन्हें किसी की आलोचना करने के कारण यह बीमारी हुई है। उनके परिजनों को भी यह बात समझनी चाहिए।”

कैसे और क्यों फैलाई जाती हैं अफवाहें?

फारवर्ड प्रेस के प्रबंध संपादक प्रमोद रंजन कहते हैं , “इन अफवाहों के पीछे राजधानियों में स्थित राजनीतिक कार्यालयों से लेकर गांव-गांव और मंदिरों तक से सावधानी पूर्वक बुना गया एक पूरा तंत्र काम कर रहा होता है। इनकी कोशिश  होती है कि ऐसे मामलों में सामाजिक और मनोवैज्ञानिक दबाव का वातावरण बनाया जाए, ताकि उनकी व्यवस्था से विद्रोह करने वाला आदमी घुटने टेक दे। कई मामलों में डॉक्टरों को भी इस षड्यंत्र में शामिल कर लिया जाता है, ताकि मनोवैज्ञानिक दबाव बनाया और बढ़ाया जा सके”। वे कहते हैं, “आप किसी भी मंदिर के सामने खडे हो जाएं और एक सर्वेक्षण करें। कैंसर जैसी अनेक गंभीर बीमारियों से पीड़ित लोगों और उनके परिजनों की वहां लाइन लगी होती है। ये वे लोग होते हैं, जो आजीवन पूजा-पाठ करते रहते हैं; तो उन्हें कैंसर जैसी बीमारी क्यों हो जाती है? राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वितीय सरसंघचालक माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर स्वयं कैंसर से मरे थे। वे  दुर्गा भक्त थे और जाहिर है कि संघ की देवी-भक्ति में आदिवासी-बहुजन नायकों का इस प्रकार का अपमान शामिल रहता है। तो यह क्यों न माना जाए कि वे महिषासुर के कोप के कारण कैंसर से पीड़ित हुए और बहुजनों की आहत भावनाओं की आह के कारण अंत में बहुत बुरी मौत मरे। दरअसल, इस प्रकार की अफवाहें फैलाने वालों के मस्तिष्क अमानवीयता के कैंसर से पीडित हैं और वे चाहते हैं कि पूरे समाज के मस्तिष्क में कैंसर हो जाए, ताकि अंधिवश्वास और मूर्तिपूजा के जरिए चल रहा इनका राज-पाट बरकरार रहे।”

(कॉपी संपादन : एफपी डेस्क/प्रेम बरेलवी)


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लेखक के बारे में

प्रेमा नेगी

प्रेमा नेगी 'जनज्वार' की संपादक हैं। उनकी विभिन्न रिर्पोट्स व साहित्यकारों व अकादमिशयनों के उनके द्वारा लिए गये साक्षात्कार चर्चित रहे हैं

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