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सवर्णों को आरक्षण दलित-बहुजनों का आरक्षण खत्म करने की साजिश : सावित्रीबाई फुले

बहराइच सांसद सावित्रीबाई फुले का कहना है कि बिना किसी आधार के सवर्णों को आरक्षण देना दलित-बहुजनों के आरक्षण को खत्म करने की साजिश है। यह साजिश सफल नहीं हो, इसके लिए इसका पुरजोर तरीके से विरोध करने के लिए आगे आना होगा

भाजपा से नाराज होकर त्यागपत्र दे चुकीं बहराइच की सांसद सावित्रीबाई फुले ने केंद्र सरकार द्वारा सवर्णों को दिए गए 10 प्रतिशत आरक्षण पर सवाल खड़ा करते हुए कहा है कि यह बिल्कुल लॉलीपॉप के जैसा है और इस बात को सवर्ण भी समझते हैं। इसलिए जिस उद्देश्य से यह शिगूफा छोड़ा गया है, उसमें भाजपा बिल्कुल सफल नहीं होगी। उनका कहना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सवर्णों को भी अछूत बनाना चाहते हैं।

 


फारवर्ड प्रेस से विशेष बातचीत में फुले ने कहा कि बिना किसी आधार के सवर्णों को देना दलित-बहुजनों के आरक्षण को खत्म करने की साजिश है। यह साजिश सफल नहीं हो, इसके लिए इसका पुरजोर तरीके से विरोध करने के लिए आगे आना होगा। संसद द्वारा पारित विधेयक संविधान की मूल अवधारणा के खिलाफ है, क्योंकि आर्थिक कारण आरक्षण का मौलिक आधार नहीं हो सकता और ना ही आरक्षण की अधिकतम सीमा को 50 फीसदी से अधिक बढ़ाया जा सकता है।

उन्होंने कहा कि भाजपा ने संविधान में संशोधन कर उपरोक्त सभी बातों को नकारा है, जिसका सीधा सा मतलब है कि यह बाबा साहेब डा आंबेडकर के संविधान को खत्म करने की साजिश है। सवर्ण जातियों को आरक्षण देना संविधान की मूल भावना के खिलाफ है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक प्रमुख मोहन भागवत भी आरक्षण की समीक्षा की बात कर चुके हैं और भाजपा बिल्कुल संघ की नीति पर ही काम कर रही है।

बहराइच सांसद सावित्रीबाई फुले

आरएसएस पर वार करते हुए फुले ने कहा कि आर्थिक आधार पर आरक्षण का दांव संघ की पुरानी सोच रही है। कई मौकों पर इस बारे में संघ ने मजबूती से वकालत की है। मोदी सरकार ने इसी पुरानी मांग को सावधानी पूर्वक लागू करने की बड़ी पहल की। सरकार की कोशिश है कि इससे यह कतई संदेश नहीं जाए कि वह बाकी के आरक्षणों में छेड़छाड़ करेगी लेकिन इसमें वह सफल नहीं हो पाएगी क्योंकि अदालत में इस तरह की कोशिश तर्को के आधार पर बिल्कुल टिक नहीं पाएगी।

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उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने 1992 में इंदिरा साहनी जजमेंट जिसे मंडल जजमेंट कहा जाता है, उसमें व्यवस्था दे रखी है। जजमेंट के मुताबिक सरकार 50 फीसदी से ज्यादा रिजर्वेशन नहीं दे सकती। सुप्रीम कोर्ट के 9 जजों की बेंच ने ऐतिहासिक फैसले में कहा था कि रिजर्वेशन की सीमा 50 फीसदी की सीमा पार नहीं कर सकती। अगर सरकार 50 फीसदी की सीमा को पार करती है तो उसका निर्णय जूडिशल स्क्रूटनी के दायरे में होगा और जो मौजूदा संवैधानिक व्यवस्था है, उसमें टिक पाना मुश्किल है।

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सांसद सावित्री बाई फुले ने कहा कि कितनी अजीब बात है, बिना सर्वे, बिना जातिगत जनगणना कराए आरक्षण का फैसला ले लिया गया जबकि इससे पहले तक यही सरकार कहते रही है कि जातिगत जनगणना कराने के बाद ही आरक्षण की घोषणा की जा सकती है। यह अदालत के समक्ष बिल्कुल नहीं टिकेगी।

उन्होंने कहा कि बीजेपी सरकार पहले जातिगत जनगणना कराए फिर आरक्षण में फेरबदल की बात करे। बिना होमवर्क किए शिगूफा छोड़ने से बिल्कुल काम नहीं चलेगा। हम सभी सरकार से  प्राइवेट सेक्टर में भी दलित और पिछड़ी जातियों के लिए आरक्षण की मांग पुरजोर तरीके से रखने वाले हैं क्योंकि सवर्णों के लिए जो आरक्षण की व्यवस्था सरकार की तरफ से की गई है, उसमें प्राईवेट सेक्टर के शैक्षणिक संस्थानों में भी आरक्षण की व्यवस्था की गई है।
(कॉपी संपादन : एफपी डेस्क)


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लेखक के बारे में

कुमार समीर

कुमार समीर वरिष्ठ पत्रकार हैं। उन्होंने राष्ट्रीय सहारा समेत विभिन्न समाचार पत्रों में काम किया है तथा हिंदी दैनिक 'नेशनल दुनिया' के दिल्ली संस्करण के स्थानीय संपादक रहे हैं

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