बीते शनिवार (23 फरवरी, 2019) नगालैंड के बुद्धिजीवियों और छात्रों ने दिल्ली में एक प्रदर्शन मार्च निकाला। मार्च का उद्देश्य पिछले बीस वर्षों से जारी नगा गुटों और केंद्र सरकार के बीच चल रहे गतिरोध को लेकर ध्यान आकृष्ट कराना था। मार्च में शामिल लोगों ने केंद्र सरकार से शांति वार्ता के जरिए नगा समस्या का समाधान लोकसभा चुनाव के पहले करने की मांग की।
प्रदर्शनकारियों का कहना था कि इस शांति वार्ता को तुरंत किसी तार्किक निष्कर्ष पर पहुंचाया जाना चाहिए। साथ ही इसका सम्मानजनक राजनीतिक समाधान निकाला जाये जो पूर्वोत्तर के नगा लोगों को स्वीकार्य हो।
मार्च में लोगों ने अपने हाथों में तख्तियां ले रखी थी, जिनमें ‘लोकसभा चुनाव से पहले हो समाधान’ और ‘नगाओं के राजनीतिक अधिकारों का करो सम्मान’ आदि नारे लिखे थे।
इस मौके पर एक जनसभा का आयोजन किया गया। अपने संबोधन में एनपीएमएचआर के महासचिव नेइंगुलो क्रोमे ने कहा, “इस समस्या का समाधान केवल केंद्र सरकार द्वारा हमारे अधिकारों को मान्यता देने से ही होगा। यह प्रदर्शन लोकसभा चुनाव को लेकर नहीं, बल्कि सही मायने में हमारे जायज अधिकारों को लेकर है।”
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उन्होंने कहा कि “नगा समस्या का समाधान देश के पूर्वोत्तर में शांति लेकर आएगा। इससे नगा लोगों और पूर्वोत्तर में शांति, प्रगति और सम्मान लौटेगा। इससे अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर देश का सम्मान बढ़ेगा। उन्होंने कहा कि 2003 में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने नगा इतिहास को मान्यता देने हेतु महत्वपूर्ण पहल की थी। तब यह भी कहा गया था कि नगा समस्या का समाधान ‘ऐतिहासिक तथ्यों और राजनीतिक वैधानिकता’ के आधार पर किया जाएगा।”
इस प्रदर्शन में विभिन्न नगा संगठनों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। इनमें नगा होहों (नगा महिला संघ), नगा मानवाधिकार जनांदोलन संगठन (एनपीएमएचआर), एनएचएम, एफएनआर, एनटीसी आदि शमिल रहे। इसके अलावा दक्षिण एशिया मानवाधिकार मंच (एसएएफएचआर), जन आंदोलनों के राष्ट्रीय समन्वयक (एनएपीएम), पाकिस्तान-इंडिया जन मंच शांति आदि ने इस प्रदर्शन को समर्थन दिया था।
एक नजर में नगा शांति वार्ता और समझौता
- केंद्र सरकार ने 1997 में दो नगा गुटों (एनएससीएन – आइसाक मुईवाह) के साथ शांति वार्ता शुरू की थी। इस वार्ता की पहली दो दौर की बातचीत देश से बाहर थाईलैंड और नीदरलैंड में हुई थी।
- 2002 से इन दो गुटों के साथ बातचीत देश में शुरू की गई। तब से लेकर 2015 के इंडो – नगा फ्रेमवर्क एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर होने तक बातचीत के 80 चक्र पूरे हुए।
- 2003 में 6 और नगा गुट ‘नगा राष्ट्रीय राजनीतिक समूह (एनएनपीजी)’ के बैनर तले केंद्र के साथ शांति वार्ता में शामिल हो गए। 2003 में केंद्र सरकार ने नगाओं की जनजातीय व क्षेत्रीय एकता, ऐतिहासिक विरासत और संस्कृति को मान्यता दी थी और नगा समस्या का समाधान इसी मान्यता और मार्गदर्शन के अनुसार करने को सहमत हुई।
- 2005 से नगा गुटों ने क्षेत्रीय संप्रभुता की मांग को छोड़ कर पूर्वोत्तर में नगा निवास क्षेत्रों का विलय और ज्यादा स्वायतता की मांग तक सीमित हो गए। नगा गुटों के नेताओं ने भारतीय संविधान की प्रधानता को स्वीकार किया जिसके अंतर्गत केंद्र सरकार व नगा वार्ताकारों के बीच शांति वार्ताओं को देश से बाहर नहीं किया जाएगा। हालांकि पूर्वोत्तर में नगाओं की सबसे महत्वपूर्ण मांग ग्रेटर नगालिंगम को लेकर अनिश्चितता के बादल छाए हुए है। इस वृहत्तर नगालिंगम के लिए पड़ोसी तीन राज्यों अरुणाचल, असम और मणिपुर ने अपने- अपने राज्य के नगा आबादी के क्षेत्रों को देने से मना कर दिया।
- 2015 में केंद्र सरकार के मुख्य वार्ताकार और प्रधानमंत्री के विशेष दूत आर. एन. रवि के नेतृत्व में एनएससीएन – आईएम गुट और 6 अन्य नगा गुटों के साथ समस्या समाधान के सहमति फ्रेमवर्क के लिए कई दौर की वार्ता शुरू हुई। जो जुलाई 2015 में नगा समस्या के समाधान के लिए इंडो नगा फ्रेमवर्क एग्रीमेंट पर केंद्र के वार्ताकारों और नगा गुटों के प्रतिनिधियों ने हस्ताक्षर किए। लेकिन इस सहमति पत्र के विवरण को सार्वजनिक नहीं किया गया। अन्य राज्यों के नगा बहुल क्षेत्रों या जिलों का एकीकृत नगा राज्य (ग्रेटर नगालिंगम) में विलय के सवाल की वजह से केंद्र सरकार ने नगा समझौता 2015 के विवरण को सार्वजनिक नहीं किया। अन्य राज्यों के नगा बहुल क्षेत्रों का एकीकृत नगालिंगम में विलय का सवाल 2003 से नगा समस्या का मुख्य विवादित पहलू बना हुआ है।
(कॉपी संपादन : एफपी डेस्क)
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