नई दिल्ली : विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) द्वारा जारी कथित मान्यता प्राप्त ‘शोध पत्रिकाओं’ की सूची के कारण अनेक गंभीर शोधार्थियों के लिए भ्रम की स्थिति पैदा हो रही है। हालांकि यूजीसी ने स्पष्ट किया है फारवर्ड प्रेस समेत विभिन्न प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में 2 मई, 2018 से पहले प्रकाशित लेखों को मान्यता दी जाएगी। इसके लिए यूजीसी की साइट पर उपलब्ध पत्रिकाओं के पुराने सीरियल नंबर (2 मई, 2018 के पहले के) का उपयोग किया जा सकेगा।
अकादमिक तबकों व बुद्धिजीवी समुदाय द्वारा यूजीसी की नई सूची का लंबे समय से विरोध किया जा रहा है।
गौरतलब है कि यूजीसी ने फारवर्ड प्रेस के प्रिंट संस्करण (ISSN: 23489286) को अपनी सूची से बाहर कर दिया है, तथा इसके ऑनलाइन संस्करण (ISSN: 2456-7558) को सूची में शामिल ही नहीं किया है । मासिक पत्रिका के रूप में फारवर्ड प्रेस के प्रिंट संस्करण मई, 2009 से जून, 2016 तक प्रकाशित हुआ। उसके बाद से यह ऑनलाइन पत्रिका के रूप में प्रकाशित हो रही है। आवश्यकता इस बात की है कि फारवर्ड प्रेस के ऑनलाइन संस्करण (ISSN: 2456-7558) तथा गुणवत्तापूर्ण सामग्री प्रकाशित करने वाली अन्य पत्रिकाओं को यूजीसी अपनी नई सूची में शामिल करे।

पिछले कुछ समय से विभिन्न विश्वविद्यालयों में अस्टिटेंट प्रोफेसर व एसोसिएट प्रोफेसर के पद पर नियुक्तियां की जा रही हैं। फारवर्ड प्रेस के अनेक प्रतिभाशाली लेखक इन नियुक्तियों के अभ्यर्थी हैं, जिनके दलित-आदिवासी-ओबीसी मुद्दों पर शोध फारवर्ड प्रेस में प्रकाशित हुए हैं। उपरोक्त पदों पर नियुक्ति के आवेदन के साथ उन्हें अपने प्रकाशित शोधों की सूची देनी होती है। यूजीसी के फरमान की वजह से भ्रम की स्थिति पैदा हो गई है।
यूजीसी की अधिसूचना यहां देखें : An update on UGC – List of Journals
क्या है पूरा मामला?
इस संबंध में पूरा मामला इस प्रकार है। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने 2 मई, 2018 को एक अधिसूचना जारी कर 4000 से अधिक पत्र-पत्रिकाओं को अपनी मान्यता सूची से बाहर कर दिया था। उसका तर्क था कि बाहर निकाली गई पत्रिकाओं की गुणवत्ता ठीक नहीं है। जबकि अनेक विषयों में स्थिति इसके ठीक विपरीत थी। वे पत्रिकाएं यूजीसी की सूची में बनी हुईं थीं, जिनकी गुणवत्ता संदिग्ध थी, और मौलिक शोध कार्यों को परिश्रमपूर्वक प्रकाशित करने वाली गुणवत्तापूर्ण पत्रिकाएं तकनीकी कारणों से सूची से बाहर कर दी गई थी। जब इसका विरोध शुरू हुआ तो यूजीसी ने एक विज्ञप्ति जारी कर कहा कि ‘‘किसी पत्रिका को इस सूची से हटाए जाने का अर्थ जरूरी तौर पर यह नहीं कि उसका स्तर कम हो, बल्कि उसे इसलिए भी हटाया गया होगा क्योंकि कुछ जानकारियां नहीं उपलब्ध होंगी। इन जानकारियों में संपादक मंडल का ब्यौरा, इंडेक्सिंग से संबंधित सूचना,पत्रिका शुरू होने का वर्ष, प्रकाशन की आवृत्ति और प्रकाशन की नियमितता आदि शामिल हैं।’’
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यूजीसी ने अपनी नई अधिसूचना में यह स्पष्ट किया कि जिन पत्रिकाओं को सूची से हटाया गया है, उनमें अगर कोई लेख 2 मई, 2018 से पूर्व प्रकाशित या स्वीकृत हुआ है, तो उसके अनुसार नियुक्ति-प्रमोशन आदि के लिए अंक दिए जाएंगे। यूजीसी ने यह भी कहा है कि आने वाले समय में इन पत्रिकाओं को सूची में शामिल किया जाएगा, लेकिन इसके लिए किसी विश्वविद्यालय की अनुशंसा आवश्यक होगी। यूजीसी ने पिछले दिनों विश्वविद्यालयों के लिए एक फार्म भी भी जारी किया था, जिसके तहत उन्हें पत्रिकाओं की मान्यता के लिए अनुशंसा करनी थी।
मान्यता सूची से बाहर | यूजीसी की मान्यता प्राप्त |
---|---|
तदभव | शीतल वाणी |
पहल | पंचशील शोध समीक्षा |
हंस | राष्ट्रसेवक |
फारवर्ड प्रेस | कला संखय शोध पत्रिका |
कथादेश | काशिका |
नया ज्ञानोदय | शब्द शिखर |
नया पथ | शोधश्री |
उदभावना | अखिल-गीत शोध दृष्टि |
मंतव्य | विंध्या भारती |
बहरहाल, यूजीसी ने कहा है कि जिन पत्रिकाओं को सूची से बाहर किया गया है ‘‘अगर वे विश्वविद्यालयों द्वारा फिर से अनुशंसा प्राप्त कर लेती हैं तो उन्हें दोबारा सूची में शामिल करने पर विचार किया जा सकता है।’’ लेकिन सवाल है यह कि यह कब होगा, तथा इस बीच जिन प्रतिभाशाली युवाओं को इसकी कीमत चुकानी पडेगी, उसकी खामियाजा कौन भरेगा?
(कॉपी संपादन : नवल)
[परिवर्द्धित : 8 मई, 2019, रात्रि 12.08 ]
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