छत्तीसगढ़ के सामाजिक व सांस्कृतिक कार्यकर्ता आगामी 11 जुलाई को बिलासपुर में जुटेंगे। मौका होगा सांस्कृतिक अस्मिता की लड़ाई लड़ने वाले लोकेश सोरी की पहली पुण्यतिथि का। इस अवसर पर वे लोकेश सोरी के योगदानों को याद करेंगे तथा एक विशेष परिचर्चा में अपनी बात भी रखेंगे। परिचर्चा का विषय है “छत्तीसगढ़ में मूलनिवासी/बहुजन संघर्ष: दशा और दिशा”। यह आयोजन बहुजन साहित्य संस्थान के तत्वावधान में किया जाएगा। कोरोना के मद्देनजर परिचर्चा में भौतिक दूरी व अन्य एहतियातों का ध्यान रखा जाएगा।
इस आशय की जानकारी बहुजन साहित्य संस्थान के संस्थापक संजीत बर्मन ने दी।उन्होंने बताया कि लोकेश सोरी ने सूबे में मूलनिवासियों के सांस्कृतिक अधिकारों के हनन व उन पर जबरन बाहरी संस्कृति थोपे जाने के खिलाफ सीधी लड़ाई लड़ी। उन्होंने 28 सितंबर, 2017 को कांकेर जिले के पखांजूर थाने में मामला भी दर्ज करवाया था। यह उनका ऐतिहासिक कदम था। वजह यह कि इससे पहले किसी ने भी महिषासुर और रावण वध का हिंसात्मक प्रदर्शन करने वालों के खिलाफ थाने में रपट लिखवाने की पहल नहीं की थी।

पीयूसीएल के छत्तीसगढ़ प्रांत के अध्यक्ष अधिवक्ता डिग्री प्रसाद चौहान ने बताया कि लोकेश सोरी की पहल का तब पूरे छत्तीसगढ़ में स्वागत किया गया था। हालांकि तब पुलिस ने उन्हें ही एक फर्जी मामले में फंसाकर जेल भेज दिया था। जबकि पुलिस की यह जिम्मेदारी थी कि वह लोकेश सोरी द्वारा दर्ज कराए गए मामले की जांच करती और उस पर विधि सम्मत कार्रवाई करती। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इसके बावजूद, लोकेश सोरी ने हार नहीं मानी। करीब 15 दिनों तक जेल में रखने के बाद अदालत ने उन्हें जमानत दे दी। जेल से बाहर निकलने के बाद लोकेश ने सांस्कृतिक प्रतिरोध के संघर्ष को तेज कर दिया। इस बीच उन्हें साइनस की शिकायत हुई जो बाद में मैक्सिलरी कैंसर में तब्दील हो गयी।

डिग्री प्रसाद चौहान ने बताया कि अस्पताल में इलाजरत रहने के बावजूद लोकेश आंदोलन को लेकर सजग थे। वे हमेशा कहते थे कि वे रहें या न रहें, आंदोलन चलते रहना चाहिए। वे द्विजवादी वर्चस्ववादी संस्कृति का खात्मा करने के लिए पूरे छत्तीसगढ़ में युवाओं की टोलियां बनाना चाहते थे। लेकिन इस बीच 11 जुलाई 2019 को रायपुर के डॉ. आंबेडकर मेमोरियल अस्पताल में इलाज के दौरान उनका निधन हो गया।
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चौहान ने बताया कि लोकेश सोरी भले ही कैंसर के कारण का निधन हो गया हो लेकिन उनकी यादें अब भी हमारे साथ हैं। हम उनके सांस्कृतिक आंदोलन को जारी रखने के लिए प्रतिबद्ध हैं।
(संपादन : नवल/अनिल)
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