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जातिवादी नहीं है भीम आर्मी, इसलिए इससे डरते हैं द्विज

भीम आर्मी की एक पहचान दी ‘ग्रेट चमार’ का नारा भी रहा है। इस आधार पर उनके ऊपर जाति विशेष की राजनीति करने का भी आरोप भी लगा है। लेकिन सच यह है कि भीम आर्मी जातिवादी नहीं, बल्कि बहुजनवादी है। इसी कारण द्विज समुदाय उससे इतना खफा है। फारवर्ड प्रेस का विश्लेषण :

क्या है ‘द ग्रेट चमार’ नारे का अर्थ?

यह बात बहुत सारे लोगों को हैरान करती है। भीम आर्मी के पोस्टरों, बैनरों, तख्तियों, समर्थकों की टी-शर्ट और दो पहिया वाहनों  आदि पर ‘दी ग्रेट चमार’  लिखा होता है। इस एक नारे के आधार पर बहुत सारे लोग  भीम आर्मी और चंद्रशेखर पर जाति विशेष यानी चमारों-जाटवों की राजनीति करने का आरोप लगाते हैं। यह आरोप लगाने वालों में एक ओर दलित-बहुजन समाज के लिए कार्य करने वाले लोग हैं तो दूसरी तो द्विज समाज के वे लोग भी हैं, जो किसी भी बहुजन आंदोलन को तोडने के लिए लगतार बौद्धिक जुगत लगाते रहते हैं।

ईमानदार दलित कार्यकर्ताओं का कहना है कि ‘दी ग्रेट चमार’ का  नारा एक समुदाय के रूप में दलित एकता को तोड़ता है और अनुसूचित जाति में एक जाति विशेष को बढ़ावा देता है। यही बात वे बहुजनवादी कार्यकर्ता भी कह रहे हैं, जो  दलित-ओबीसी और अल्पसंख्यकों को एकजुट करने के प्रयासों में जुटे हैं। लेकिन द्विजवादियों का आरोप है कि इस नारे के कारण समाज में विद्वेष फैलता है तथा इससे आरक्षण का लाभ एक ही जाति तक सिमट जाता है। हालांकि किसी भी सम्यक मस्तिष्क वाले व्यक्ति के लिए यह समझना कठिन नहीं है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश के इस संगठन के इस नारे से आरक्षण का कोई लेना-देना नहीं है।

  • ठाकुरों से रहा है भीम आर्मी का सीधा टकराव

  • राजपूतों ने पहले लिखना शुरु किया ‘दी ग्रेट राजपूत’

  • प्रतिक्रिया में भीम आर्मी ने कहा ‘दी ग्रेट चमार’

भीम आर्मी के संस्थापक चंद्रशेखर रावण

हां, यह सच है कि बहुजन, मूल निवासी या दलित शब्द अपने दायरे में व्यापक लोगों को समेटता है, जबकि ‘दी ग्रेट चमार’ प्रथम दृष्टतया एक जाति विशेष को संबोधित करते हुए दिखता है।

क्या जातिवादी हैं चंद्रशेखर?

आइए देखें कि भीम-आर्मी और चंद्रशेखर पर जाति विशेष की राजनीति यानी चमारवाद करने के आरोप में सच्चाई क्या है?

भीम आर्मी का सीधा टकराव पश्चिमी उत्तर प्रदेश उसमें भी खासकर सहारनपुर और उसके आस-आप के जिलों के ठाकुरों से रहा है। यह टकराव कोई नया नहीं था। उत्तर प्रदेश के अन्य क्षेत्रों की तुलना में इस क्षेत्र में चमारों-जाटवों की स्थिति आर्थिक तौर पर बेहतर रही है। यहां को लोग निरंतर सवर्णों विशेष-कर ठाकुरों को चुनौती देते रहे हैं। पहले खूनी संघर्ष भी हुए हैं। भीम आर्मी के उभार के बाद यह संघर्ष और तेज हुआ था। करणी सेना, राजपूत बिग्रेड जैसे संगठनों के बनने और 16  जनवरी 2012 को सेना के तत्कालीन जनरल वीके सिंह द्वारा सेना में विद्रोह करवा कर देश पर कब्जा कर लेने की संभावना बनने के बाद ठाकुरों का अंहकार और बढ़ा। इसी दौरान उनके बीच यह बात भी खूब फैलाई गई कि इस देश के शासक ठाकुर थे, जबकि अंग्रेजों ने 1947 में भारत की सत्ता ब्राह्मणों को सौंप दी।

बहुजन विमर्श को विस्तार देतीं फारवर्ड प्रेस की पुस्तकें

इन चीजों ने ठाकुरों के कम हो रहे अहंकार को बढाया और उन्होंने पहले तो अन्य जातियों द्वारा ‘सिंह’ सरनेम लगाने का विरोध इस दावे के साथ किया कि यह सरनेम सिर्फ ठाकुरों का है। लेकिन जब यह संभव नहीं हो सका तो ‘सिंह’ सरनेम  लिखने वाले अन्य जातियों लोगों से अपने को अलग करने के लिए उन्होंने अपनी गाडियों, टी-शर्ट आदि पर ‘दी ग्रेट राजपूत’ लिखना शुरू कर दिया।  उस इलाके में ठाकुरों के अनेक घरों पर भी  ‘दी ग्रेट राजपूत’ लिखा मिल जाता है। ये वही लोग थे, जो बहुजनों को अपमानित और उत्पीडि़त करते थे, जिसके प्रतिवाद में भीम आर्मी खड़ी हुई थी। यह समझना कठिन नहीं है कि ‘दी ग्रेट चमार’ का नारा ‘दी ग्रेट राजपूत’ के प्रतिरोध और प्रतिवाद या कहें कि प्रतिक्रिया में आया।

जिस तरह उस इलाके में ठाकुर ‘दी ग्रेट राजपूत’ के नाम पर सभी सवर्णों की अगुवाई कर रहे थे, उसी तरह ‘दी ग्रेट चमार’ के नाम पर भीम आर्मी सभी बहुजनों के अपमान और उत्पीड़न के लिए संघर्ष कर रही थी। भले ही नारा ‘दी ग्रेट चमार’ का था, लेकिन इसका दायरा बहुजनों तक था। इन बहुजनों में मुस्लिम भी शामिल थे। ‘दी ग्रेट चमार’ क्यों कहते है? इस संदर्भ में चंद्रशेखर कहते  हैं कि “लोग हमसे पूछते हैं कि आप लोग जब जाति व्यवस्था में विश्वास नहीं करते हैं, तो ‘दी ग्रेट चमार’ क्यों लिखते हैं। जाति पर गर्व क्यों करते हैं? इसका जवाब मैं डॉ. आंबेडकर के हवाले से देते हुए कहता हूं कि यदि जाति व्यवस्था पूरी तरह खत्म न हो पाए, तो अपनी जाति पर इतना गर्व करो कि अपने को श्रेष्ठ जाति का मानने वाले वाले शर्मिंदा महसूस करें।”

  • किसी एक जाति विशेष के लिए नहीं है चमार शब्द

  • अछूत कहे जाने वाले पूरे समाज के लिए किया जाता है इस शब्द का उपयोग

  • एससी-एसटी एक्ट के तहत चमार कहना है दंडनीय

यहीं एक और बात यह समझने की है  कि हिंदी भाषा-भाषी उत्तर भारत में चमार शब्द का सवर्णों द्वारा इस्तेमाल किसी एक जाति विशेष के लिए नहीं किया जाता है, बल्कि यह पूरे अछूत कहे जाने वाले समाज के लिए एक अपमानजनक गाली के रूप में इस्तेमाल किया जाता रहा है। यही कारण है कि सामान्य वर्ग के व्यक्ति द्वारा किसी को चमार कह कर संबोधित किया जाता है तो इसे अपराध ठहराया गया है और उस व्यक्ति को एससी-एसटी (अत्याचार निवारण ) एक्ट के तहत सजा हो सकती है। इस अपमानजनक शब्द से निजात दिलाने के नाम पर गांधी ने चमार की जगह हरिजन कहना शुरू किया था, जिसे दलित समाज ने अपने लिए अपमानजनक मानकर खारिज कर दिया।

इसका मतलब है कि भले ही औपचारिक और कानूनी तौर चमार एक जाति विशेष है, लेकिन यह शब्द सभी अछूतों को लिए सवर्णों द्वारा इस्तेमाल किया जाता रहा है और अभी भी किया जाता है। उत्तर भारत में दलित आंदोलन के उभार के साथ ही अछूत जातियों के विद्रोही तेवर के लोगों ने प्रतिरोध के तौर खुद को सार्वजिनक रूप से चमार कहना शूरू किया था। बाद में यह सवर्णों का प्रतिवाद करने का एक शब्द बन गया। अछूत जातियों के लोग खुद के लिए इस शब्द का इस्तेमाल करके यह जताते रहे है कि तुम हमें चमार कह कर अपमानित करना चाहते हो, मैं खुद को चमार कहकर अपमानित नहीं गौरवान्वित महसूस करता हूं।

सवर्णों द्वारा चमार कह दलितों को अपमानित करने की चली आर रही परंपरा को जवाब चंद्रशेखर ने भी खुद को ‘दी ग्रेट चमार’ कह कर दिया। उन्होंने कहा कि जो नाम देकर तुम हमें अपमानित करना चाहते हो, उस नाम पर गर्व करके हम तुम्हें मुंह-तोड़ जवाब देंगे।

यह भी पढ़ें – चंद्रशेखर रावण से क्यों दूरी बनाए रखना चाहती हैं बसपा सुप्रीमो?

भले ही भीम आर्मी के चीफ चंद्रशेखर ने अपने को ‘दी ग्रेट चमार’ के साथ जोड़ा हो, लेकिन कभी भी उनका संघर्ष किसी एक जाति विशेष हितों तक सीमित नहीं रहा है। हमेशा उन्होंने बहुजनों के हितों के लिए संघर्ष किया। इसका एक बड़ा प्रमाण यह है कि ठाकुरों से उनका पहला सीधा टकराव एक ओबीसी समुदाय के कश्यप लड़के को लेकर हुआ था और इस घटना के बाद ही भीम आर्मी बनी थी। यह मामला चंद्रशेखर के अपने गांव छुटमलपुर के एएचपी इंटर कॉलेज  की थी। इस कॉलेज का प्रबंधन राजपूतों के हाथ में है। यहां परंपरा थी कि बहुजन समाज के लड़के छात्रों के बैठने की सीटों की सफाई करेंगे। यहां यह परंपरा थी कि स्कूल के अंदर जो नल था, उससे पहले राजपूत लड़के ही पानी पी सकते थे। 2015 में ही एक घटना घटी, जिसमे एक कश्यप (पिछड़े वर्ग के) लड़के ने राजपूतों से पहले पानी पीने की गुस्ताखी की। विरोध करने पर उसे राजपूतों ने बुरी तरह से पीटा। इस मामले में भीम आर्मी ने हस्तक्षेप किया। कई बार पंचायत हुई और मामला शासन-प्रशासन तक पहुंचा। अंततः यह समझौता हुआ कि सभी छात्रों के साथ समानता का व्यवहार किया जायेगा। इसके बाद ही इस इलाके में भीम आर्मी की साख बनी थी।

इसके अलावा भीम आर्मी जो 300 भीम पाठशालाएं चलाती है, बहुजन समाज की सभी जातियों के लोग पढ़ते हैं।

दिल्ली में एक कार्यक्रम के दौरान भीम आर्मी के कार्यकर्ता

चंद्रेशखर की अन्याय विरोधी चेतना जाति विशेष तक कौन कहे, बहुजन तक भी सीमित नहीं है। मसलन शब्बीरपुर की घटना के बाद यह अफवाह सोशल मीडिया पर उड़ाई गई कि यदि सवर्ण दलित महिलाओं के साथ अभद्र या अपमानजनक व्यवहार करते हैं, तो भीम आर्मी भी सवर्ण महिलाओं के साथ अभद्र और अपमानजनक व्यवहार करेगी। इस बात का तीखा प्रतिवाद करते हुए चंद्रशेखर ने कहा कि “ चाहे किसी भी समाज की स्त्री-लड़की हो उसके सम्मान की रक्षा करना भीम आर्मी का काम है। मैं उन लोगों के सख्त खिलाफ हूं जो सवर्ण समुदाय की किसी महिला के साथ अभद्रता या अपमानजनक व्यवहार  करने को सोचते है या बात करते हैं।”

बीते 14 सितंबर 2018 को जेल से छूटने के बाद भी चंद्रशेखर ने बहुजन की राजनीति करने का ही संकल्प व्यक्त किया है । संदर्भों और विशिष्ट परि’स्थितियों से काटकर केवल ‘दी ग्रेट चमार’ नारे के आधार पर चंद्रशेखर या भीम आर्मी को चमारवादी या जाति विशेष के हितों के लिए काम करने वाला कहना अपने पूर्व धारणाओं और जड़ सिद्धांतों को जीवंत आंदोलन और संघर्ष पर थोपना है। अभी तक के तथ्य और भीम आर्मी की कार्रवाईयां इस बात की पुष्टि नहीं करती हैं कि भीम आर्मी किसी जाति-विशेष तक सीमित संगठन है।

(कॉपी संपादन : एफपी डेस्क/रंजन)


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डॉ. सिद्धार्थ लेखक, पत्रकार और अनुवादक हैं। “सामाजिक क्रांति की योद्धा सावित्रीबाई फुले : जीवन के विविध आयाम” एवं “बहुजन नवजागरण और प्रतिरोध के विविध स्वर : बहुजन नायक और नायिकाएं” इनकी प्रकाशित पुस्तकें है। इन्होंने बद्रीनारायण की किताब “कांशीराम : लीडर ऑफ दलित्स” का हिंदी अनुवाद 'बहुजन नायक कांशीराम' नाम से किया है, जो राजकमल प्रकाशन द्वारा प्रकाशित है। साथ ही इन्होंने डॉ. आंबेडकर की किताब “जाति का विनाश” (अनुवादक : राजकिशोर) का एनोटेटेड संस्करण तैयार किया है, जो फारवर्ड प्रेस द्वारा प्रकाशित है।

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