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विकास खांडेकर : सतनाम पंथ और पत्नी ने दी संघर्ष की ताकत

विकास खांडेकर पर आरोप था कि उन्होंने फेसबुक पर दुर्गा से संबंधित एक पोस्ट शेयर किया। इस आरोप में उन्हें करीब साढ़े तीन महीने की जेल यात्रा करनी पड़ी और लगभग दो वर्षों तक जिला बदर रहना पड़ा। इस बीच उन्होंने अपनी मां और दादी को खो दिया। प्रेमा नेगी की रिपोर्ट :

फॉलोअप : महिषासुर-दुर्गा विवाद

महिषासुर दिवस का पहला चर्चित आयोजन वर्ष अक्टूबर 2011 में दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में हुआ था। उसके बाद से हिंसा-मुक्त और समतामूलक भारत का संदेश देने वाला यह आंदोलन बढ़ता ही गया है। आज देश के सैकड़ों कस्बों-गांवों में ब्राह्मणवाद की वर्चस्ववादी  संस्कृति से मुक्ति का यह उत्सव मनाया जाने लगा है। लेकिन इन वर्षों में इससे संबंधित कई अन्य घटनाक्रम भी हुए हैं। कई जगहों पर दुर्गा के खिलाफ टिप्पणी करने पर मुकदमे दर्ज हुए। छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश समेत कई राज्यों में महिषासुर और रावेन के अपमान के खिलाफ शिकायतें दर्ज कराई गई। कुछ कस्बों में दुर्गा के कथित अपमान के खिलाफ प्रदर्शन किए गये तो कुछ जगहों पर महिषासुर के सम्मान में भी बड़ी-बड़ी रैलियां निकाली गईं। ‘महिषासुर-दुर्गा विवाद’ से संबंधित इस फॉलोअप सीरीज में हम उन घटनाओं के पुनरावलोकन के साथ-साथ मौजूदा स्थिति की जानकारी दे रहे हैं । आज पढिए, विकास खांडेकर के संघर्ष के बारे में । – संपादक


ब्राह्मणवाद के खिलाफ जारी रहेगा संघर्ष : विकास खांडेकर

– प्रेमा नेगी

वह 4 अक्टूबर, 2016 का दिन था जब छत्तीसगढ़ के मुंगेली जिले के सतनाम पंथ के प्रदेशाध्यक्ष व दलित नेता विकास खांडेकर को सोशल मीडिया फेसबुक पर हिंदू देवी दुर्गा के खिलाफ कथित अपमानजनक सामग्री पोस्ट करने के आरोप में जेल में डाल दिया गया। उन्हें अगले साल 24 जनवरी 2017 को हाईकोर्ट से जमानत तो मिली, मगर कंडीशनल। जिला बदर होने की शर्त पर उन्हें रिहा किया गया। कहा गया कि जब तक माहौल शांत न हो 6 महीने या साल भर तक या इसे भी ज्यादा, आप मुंगेली जिले में नहीं रह सकते, उसके बाद हाईकोर्ट स्थितियों को देखते हुए आपको इजाज़त देगा कि आप वहां जा सकते हैं या फिर कंडीशन खत्म की जाएगी।

उन्हें  लगभग दो वर्ष तक अपने घर-परिवार से दूर बिलासपुर में रहना पड़ा। कोर्ट के निर्देश के बाद वह इसी वर्ष बीते 27 जुलाई 2018 को वापस मुंगेली जिले में अपने पत्नी-बच्चों व परिजनों के पास वापस आए हैं। लेकिन उन्हें हर महीने के दसवें दिन थाने में हाजिरी लगानी होगी।

इन दो सालों में वह अपनी मां और दादी को खो चुके हैं। उनकी मां उनके जेल जाने के बाद से बीमार रहने लगीं। कंडीशनल बेल के बाद जिला बदर हुए विकास को हाईकोर्ट से स्पेशल परमिशन के तहत मां की बीमारी में उनसे मिलने की एक बार इजाजत मिली तो मां ने उनके रहते ही दम तोड़ दिया। मगर उन्हें अफसोस है कि मां की बीमारी में वह उनके लिए कुछ नहीं कर पाए, क्योंकि मां को उनके जेल जाने और जिला बदर होने का सदमा ही सबसे गहरा लगा था।

  • दुर्गा पर पोस्ट को लेकर दर्ज हुआ था विकास खांडेकर पर मुकदमा

  • करीब दो वर्षों के बाद मिली परिजनों के पास जाने की इजाजत

  • पुलिसकर्मी छोटे भाई पर बनाया सबूत लाने का दबाव

  • दो वर्षों में सदमे से मां और दादी का निधन

  • मुख्यमंत्री के सचिव दे रहे थे पुलिस को सीधे निर्देश

विकास खांडेकर कहते हैं, “मुझे उस जुर्म की सजा मिली, जो मैंने किया ही नहीं था। पोस्ट होने के तुरंत बाद मैंने फेसबुक पर एक माफीनामा भी लिखा कि यह गलती से हुआ है, अगर मेरी इस पोस्ट से किसी की भावनाओं को ठेस पहुंची हो तो मैं माफी चाहता हूं। पहले लगा कि माफीनामे के साथ सब शांत हो जाएगा, मगर यह मेरा भ्रम था। विभिन्न धाराओं में मामला दर्ज कर मुझे गिरफ्तार कर लिया गया। मुंगेली में ऐसा माहौल व्याप्त हो गया जैसे मैंने बहुत बड़ा अपराध किया हो। हालांकि उस वक्त हमारे समाज के हजारों लोग मेरे साथ खड़े हो गए, मेरी रिहाई के लिए। मगर उन्हें भी मेरा साथ देने की सजा भुगतनी पड़ी, तो वो बैकफुट पर चले गए। शासन-प्रशासन ने मेरा साथ देने वाले कई लोगों को अपने साथ लालच देकर मिला लिया। शहर में धारा 144 लगा दी गई।”

अगले वर्ष होने वाले विधानसभा चुनाव के मद्देनजर चुनाव की तैयारी में जुटे विकास खांडेकर मुंगेली में जनसंपर्क अभियान के दौरान

कैसा समाज, तंत्र, न्याय व्यवस्था है हमारी, इसे विकास खांडेकर के मामले से भली-भांति समझा जा सकता है। वो बताते हैं, “मेरा छोटा भाई पुलिस विभाग में नौकरी करता है, मगर विभाग ने उनके मामले में उस पर भी दबाव डाला कि वह किसी भी तरह से मेरे खिलाफ सबूत लेकर आए, मेरी पत्नी से किसी भी तरह मेरा फोन हासिल करे। नौकरी बचाने के लिए जहां मेरे भाई ने पुलिस का पूरा साथ दिया, वहीं मैं सलाखों के पीछे था। कुछ नहीं पता था कि क्या होगा। अपनी नौकरी बचाने के लिए शासन-प्रशासन की कठपुतली बन उसने मेरी पत्नी को डराया-धमकाया, टॉर्चर तक किया। मेरी लाइसेंसी बंदूक भी मेरी पत्नी को धमकाकर ले ली और उसे थाने में जमा कर दिया। मुझ पर आर्म्स एक्ट लगा दिया गया था और भाई को धमकाया गया था कि अगर तुम भाई के खिलाफ सबूत नहीं लेकर आए तो सस्पेंड कर देंगे।

सिपाही के पद पर तैनात भाई ने भाई के बजाय नौकरी को तरजीह दी, मुझे भी पहले लगा कि भाई ने गलत किया मेरे साथ, बावजूद इसके उसे आज लूप लाइन यानी थाने में से वायरलेस शाखा में डाल दिया गया है। मेरे चलते उसे भी टॉर्चर किया जा रहा है।”

गौरतलब है कि विकास की गिरफ्तारी से पहले आरएसएस, बजरंग दल, सर्वसमाज, धर्मसेना के नेताओं और तमाम हिंदू संगठनों के कार्यकर्ताओं ने सतनाम पंथ (जिसके अनुयायी विकास खांडेकर हैं) के पवित्र स्थल ‘जैत खंभ’ पर जूते फेंके और दलित बस्तियों में आगजनी तथा तोड़फोड़ की थी। वहीं उनके विरोध में विकास खांडेकर के घर पर भी हमला किया गया और कई गाड़ियां फूंकी गई।

ब्राह्मणवादी संगठनों की इन हरकतों से पूरे क्षेत्र में काफी समय तक भयावह तनाव पसरा रहा। इस दौरान एक ओर, विकास के समर्थन में तो  दलित,आदिवासी व ओबीसी समुदाय से आने वाले हजारों लोगों ने रैलियां निकालीं। तो दूसरी ओर, ब्राह्मणवादी संगठनों ने भी रैलियां निकालीं।

सतनामी पंथ का पवित्र स्थल ‘जैत खंभ’ की तस्वीर जहां दो वर्ष पहले हिंदू संगठन के कार्यकर्ताओं ने फेंके थे जूते

वहीं पुलिस विकास खांडेकर के समर्थन में उठने वाली हर आवाज को दबा देना चाहती थी। उन दिनों दाऊपारा जहां विकास रहते हैं, को पुलिस ने चारों तरफ से करीब एक महीना तक घेरे रखा था। शहर में भी नाकेबंदी कर दी गयी थी। पुलिस सतनामी पंथ से संबंध रखने वालों को शहर में घुसने नहीं देती थी। उनकी पहचान के लिए उसने सतनामी समाज के कुछ लोगों की मदद ली थी। जैसे ही उन्हें किसी सतनामी समाज के व्यक्ति के बारे में पता चलता, उसका चालान काट दिया जाता और जेल भेजने की धमकी दी जाती थी। इतना ही नहीं जब विकास के समर्थन में राजनीतिक दलों के लोग (भाजपा को छोड़कर) जुटे तब पुलिस ने उनपर भी दबाव बनाया कि वे सतनामी समाज के लोगों को शांत करने में प्रशासन की सहायता करें। लेकिन इन सबके बावजूद करीब एक महीने तक पूरे शहर में सतनामी समाज के लोग डटे रहे और विकास की रिहाई की मांग को लेकर आंदोलन करते रहे।

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विकास के मुताबिक धर्मसेना के अध्यक्ष और बीजेपी के मनोनीत पार्षद सौरव वाजपेयी मेरे खिलाफ माहौल बनाने वालों में अगुवा थे, जो लोगों को भड़का रहे थे कि मैं समाज के लिए कितना खतरनाक हूं। थाने के एसडीओ ओम चंदेल जो कि ठाकुर(राजपूत) हैं, उन्हीं के पद-चिन्हों पर चल रहे थे। ओम चंदेल बजाय मेरे खिलाफ भड़की भीड़ को रोकने के उनका नेतृत्व कर बढ़ावा ही दे रहे थे, क्योंकि थाने पहुंची भीड़ को वही मेरे घर तक लाये और घर पर हमला किया गया। वह चाहते तो वहीं भीड़ को रोक सकते थे, मगर उन्होंने जातिगत विद्वेष में ऐसा किया। अगर हमारे समाज के लोग नहीं डटे होते तो उस दिन मेरे घर पर कोई अनहोनी हो गई होती।

  • जब मेरे खिलाफ कार्रवाई हुई तब स्मृति ईरानी पर क्यों नहीं हुई कार्रवाई?

  • जमानत के लिए देने पड़े 2-3 लाख रुपए घूस

  • पुलिस ने कोर्ट को किया गुमराह

विकास कहते हैं, जिस पोस्ट के लिए मुझे जेल की सजा और जिला बदर होना पड़ा, वही पोस्ट मोदी सरकार में मंत्री स्मृति ईरानी संसद में सबके सामने पढ़कर सुनाती हैं तो उन पर कोई कार्रवाई क्यों नहीं की गई। पोस्ट तो सिर्फ एक बहाना था, मुझे दक्षिणपंथी और ब्राह्मणवादी ताकतों ने टारगेट किया था, ताकि अपने संगठन के जरिए हम ब्राह्मणवाद के पोंगापंथ के खिलाफ जो मुहिम चलाए हुए हैं वो थम जाए। गुरु घासीदास के पदचिन्हों पर चल सतनामी पंथ से जुड़े लोग जीवन-मरण किसी क्रिया कर्म में ब्राह्मण को आमंत्रित नहीं करते, क्योंकि सतनाम पंथ में सभी मानवों को एक बताया गया है, तो हमारे समाज में ही हर तरह के लोग हैं। वहीं ब्राह्मणवाद मानव में विभेद करता है, जातिवाद, छुआछूत, भेदभाव को बनाए रखना चाहता है। ओबीसी भी हमसे दूर न हो जाए, इस डर से ब्राह्मण उनसे दलितों को मिलने-जुलने नहीं देते थे।

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विकास थोड़ा भावुक होकर बताते हैं, ‘इन दो सालों में काफी कुछ बदल गया। पत्नी अगर मजबूत इरादों की और नौकरीपेशा नहीं होती तो आज मेरे बच्चे दो वक्त की रोटी के लिए भी दर-दर की ठोकरें खा रहे होते। मेरी जमानत के लिए कई वकीलों ने काफी पैसा ठगा, 2-3 लाख रुपए घूस देना पड़ा। वह पैसा पत्नी ने पर्सनल लोन लेकर भरा, क्योंकि 6 भाई-बहनों का भरा-पूरा परिवार होने के बावजूद  किसी तरह की मदद नहीं मिली। पत्नी नहीं होती तो मैं इन दो सालों में बुरी तरह बिखर गया होता, मगर उसने सबकुछ समेट कर रखा और मुझे भी हमेशा हिम्मत दी।

सत्ता के इशारे पर पुलिस ने कोर्ट को भी गुमराह करने का काम किया है। राजनीतिक आदमी हूं तो पहले एकाध केस दर्ज थे मुझ पर, जिनमें मैं बाइज्जत बरी हो चुका था। जिन केसों में पहले से बरी हो चुका हूं उनके आधार पर पुलिस ने कोर्ट को बताया कि मैं आपराधिक सोच का इंसान हूं, मुझे छोड़ना खतरनाक साबित हो सकता है। उसकी केस के आधार पर मुझे जिला बदर की धारा 110 में लपेटा जा रहा था। लाइसेंसी बंदूक के लिए भी आर्म्स एक्ट के तहत धारा 25, 27 और 30 के तहत केस चल रहा है, इसमें मुझे षड्यंत्रपूर्वक फंसाया गया है।”

अगला विधानसभा चुनाव आंबेडकराइट पार्टी ऑफ इंडिया के बैनर तले लड़ने जा रहे विकास खांडेकर कहते हैं, “मुझ पर हुआ हमला सत्ताशीर्ष से संचालित था। मुख्यमंत्री का सचिव मेरे केस में एक महीने तक वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए पुलिस को हैंडल कर रहा था। मुंगेली से विधायक और रमन सिंह सरकार में खाद्य मंत्री पुन्नूलाल मोहले हालांकि हमारे समाज से ही ताल्लुक रखते हैं, मगर उनका रवैया भी बहुत खराब रहा। पुलिस के साथ मिलकर वे रणनीतियां तय कर रहे थे।”

विकास खांडेकर व उनकी पत्नी वंदना खांडेकर

ये मामला कब तक अनवरत चलेगा, नहीं पता, मगर इन दो सालों को याद कर विकास की पत्नी वंदना खांडेकर भी सहम सी जाती हैं। पेशे से अध्यापक वंदना कहती हैं, “इन दो सालों में अपना-पराया समझ में आ गया। खुद पर पड़ती है तो सिवाय अपने शरीर के और कोई साथ नहीं होता। शुरुआत में संगठन वगैरह साथ खड़े थे, मगर धीरे-धीरे अकेली हो गई। कई बार हिम्मत जवाब दे जाती थी, मगर फिर खुद को समझा कर मजबूती से खड़ी हुई। स्कूल में सहकर्मी भी कानाफूसी करते थे कि इसके पति ने गलत किया है इसीलिए जेल में है, मगर जब मैंने बताया कि पति को एक राजनीतिक षडयंत्र के तहत फंसाया गया है तो उन्हें समझ में आ गया।”

बहरहाल, जेल यात्रा, जिला बदर व यातनाओं के बावजूद विकास खांडेकर अपने विचारों को लेकर अडिग हैं। फारवर्ड प्रेस से बातचीत में उन्होंने कहा, “हम गुरु घासीदास के अनुयायी हैं और उनके सिद्धांत जो कि ब्राह्मणवाद को खारिज करते हैं, का आजीवन अनुपालन करते रहेंगे। ब्राह्मणवाद समाज को खोखला बनाता जा रहा है। इसका विरोध जरुरी है।”

(कॉपी संपादन : एफपी डेस्क/रंजन)


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लेखक के बारे में

प्रेमा नेगी

प्रेमा नेगी 'जनज्वार' की संपादक हैं। उनकी विभिन्न रिर्पोट्स व साहित्यकारों व अकादमिशयनों के उनके द्वारा लिए गये साक्षात्कार चर्चित रहे हैं

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