“मैं अपने पिता की जिन बातों का प्रशंसक हूँ वह है अपने विश्वास और आदर्श के प्रति उनकी प्रतिबद्धता। अपने अधिकारों के लिए खडा होना और उनकी मदद करना जिनको उनके अधिकारों से वंचित कर दिया गया है। उन्होंने हमेशा ऐसा किया है और वे ऐसा करते रहेंगे। पिछली बार भी वे नहीं रुके और इस बार भी वे नहीं रुकेंगे। उनकी हिम्मत को कोई तोड़ नहीं सकता और अपने विश्वास के प्रति वे हमेशा सच्चे बने रहेंगे।”
अपने पिता के बारे में यह कहना है सागर अब्राहम गोंसाल्वेस का। सागर के पिता और देश के नामचीन मानवाधिकार कार्यकर्ता वेरनॉन गोंसाल्वेस को 28 अगस्त को अन्य चार सामाजिक और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के साथ पुणे पुलिस ने भीमा-कोरेगांव मामले में गिरफ्तार किया। वैसे, गोंसाल्वेस के लिए यह पहला मौक़ा नहीं है जब उन्हें गिरफ्तार किया गया है। इससे पहले 2007 में भी उनको गिरफ्तार किया गया था जब उस समय महाराष्ट्र में कांग्रेस की सरकार थी।
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गोल्ड मेडलिस्ट रहे हैं गोंसाल्विस
रूपारेल कॉलेज के पूर्व लेक्चरर 61 वर्षीय वेरनॉन कैथोलिक हैं और उनका बचपन बायकुला के चौल में गुजरा है। वेरनॉन को इस साल जनवरी में महाराष्ट्र के भीमा-कोरेगांव में भड़की दलित विरोधी हिंसा के सिलसिले में “शहरी माओवादी” होने के आरोप में गिरफ्तार किया गया है। मुंबई विश्वविद्यालय के गोल्ड मेडलिस्ट रह चुके वेरनॉन मुंबई के कई प्रतिष्ठित कॉलेजों में अर्थशास्त्र पढ़ा चुके हैं जिनमें शामिल हैं एचआर कॉलेज ऑफ़ कॉमर्स एंड इकोनॉमिक्स, अकबर पीरभोई कॉलेज व अन्य। बाद में उन्होंने विदर्भ के मजदूरों के लिए काम करने के पक्ष में अध्यापन का रास्ता त्याग दिया। नक्सलियों के साथ वेरनॉन के संबंध के बारे में पुलिस का आरोप है कि वह नक्सलियों की महाराष्ट्र राज्य समिति के पूर्व सचिव और केंद्रीय कमेटी के पूर्व सदस्य रह चुके हैं।
पहले भी हो चुकी है गिरफ्तारी
वेरनॉन का सत्ता के साथ टकराव का इतिहास रहा है। वह सरकार के जन-विरोधी और दमनात्मक क़दमों के विरोधी रहे हैं। वे हमेशा ही ऐसे लोगों के पक्ष में खड़े दिखते हैं जो राजसत्ता की दमनात्मक नीति के शिकार होते हैं, जिनको उनके अधिकार से वंचित रखा जाता है। सत्ता को जनसरोकारों का आदर नहीं करने की स्थिति में उसके खिलाफ खड़े होने वाले वेरनॉन को मुंबई पुलिस ने 19 अगस्त 2007 को गिरफ्तार किया था। उनकी गिरफ्तारी को उचित ठहराते हुए महाराष्ट्र की एटीएस ने कहा था कि उसके पास वेरनॉन के खिलाफ पुख्ता सबूत हैं। उनके साथ साथ पुलिस ने श्रीधर श्रीनिवासन को भी नक्सली होने के आरोप में गिरफ्तार किया था। पुलिस ने आरोप लगाया था कि वेरनॉन से 9 डेटोनेटर, 20 जिलेटिन की छड़ें, एक वाकी-टॉकी, एक कम्प्यूटर और नक्सली साहित्य बरामद हुए हैं। वेरनॉन गोंसाल्वेस को गैरकानूनी गतिविधि निवारण अधिनियम (यूएपीए) और आर्म्स एक्ट के तहत उन पर 20 मुक़दमे ठोक दिए गए। यह मामला 6 साल तक चला और फिर 2013 में वेरनॉन गोंसाल्वेस को 17 मामलों में बरी कर दिया गया।
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2014 में नागपुर की एक अदालत ने आर्म्स एक्ट और यूएपीए के तहत दोषी पाया। उन्हें हथियार रखने का दोषी पाया गया और तीन साल की जेल की सजा उन्हें सुनाई गई। यूएपीए के तहत कोर्ट ने उनको दोषी मानते हुए पांच साल की जेल की सजा सुनाई। पुलिस के अनुसार, महाराष्ट्र में किसी कथित नक्सली को यूएपीए के तहत सजा देने का यह पहला मामला था।
वेरनॉन गोंसाल्वेस के साथ जिन चार अन्य सामाजिक कार्यकर्ताओं को पुणे पुलिस ने गिरफ्तार किया है वे हैं गौतम नवलखा, सुधा भारद्वाज, वरवर राव, और अरुण परेरा। बाद में सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद इन सभी को 6 सितंबर तक उनके घर में ही नजरबन्द रखा गया है।
(कॉपी संपादन : एफपी डेस्क)
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