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क्या दलितों को मारने का लाइसेंस चाहते हैं एससी-एसटी एक्ट के विरोधी?

अनुसूचित जाति-अनुसूचित जनजाति (अत्याचार-निवारण) संशोधन अधिनियम, 2018 का विरोध करने वाले सवर्ण चाहते हैं कि सैंकड़ों वर्षों से दलितों को अपमानित-उत्पीड़ित करने का उनका अधिकार जस का तस कायम रहे। एससी-एसटी एक्ट के कट्टर विरोधी कुछ नौजवानों और दलित लेखक कंवल भारती के बीच एक उत्तेजक और दिलचस्प संवाद हुआ। प्रस्तुत है हूबहू संवाद :

हालांकि मैं घिर गया था, पर डर बिल्कुल नहीं रहा था। हिन्दू संगठनों के कुछ लड़के थे, जो एक चौराहे पर दलित एक्ट पर बातचीत कर रहे थे। संयोग से उसी वक्त मैं भी वहाँ पहुंच गया, नुक्कड़ की दूकान से मुझे कुछ सामान लेना था। दुकानदार मुझे जानता था। मैं उन लड़कों की बातें सुन रहा था। वे कांग्रेस को गालियाँ दे रहे थे, जिसने दलित एक्ट बनाया था। कह रहे थे, दलित एक्ट तो खत्म करा कर रहेंगे। साले, हिन्दू सरकार में भी हिन्दुओं की नहीं सुनी जाएगी? दूसरा हाँ में हाँ मिलाते हुए कह रहा था कि खत्म तो इसे होना ही है। तीसरा इससे भी भद्दी और गंदी बातें कह रहा था, जो मैं यहाँ लिखना नहीं चाहता। यह सब सुनकर मेरे अंदर कुछ उबलने लगा। मेरे दिमाग में देवकीनन्दन ठाकुर और अन्य हिन्दू संतों का विरोध घूम रहा था। मैंने यह सोचे बगैर कि मैं अकेला हूँ, और कुछ भी हो सकता है, मैं उनके बीच में जाकर खड़ा हो गया। मैंने कहा, क्या मैं आपकी बातचीत में शामिल हो सकता हूं। उनमें से एक-दो ने मुझे घूरा, पर एक लड़के ने कहा, व्हाई नॉट सर, आइए।

मैंने उन्हें अपना परिचय दिए बिना ही पूछ लिया, ‘दलित एक्ट से आपको क्या शिकायत है?

जो लड़का बहुत ज्यादा बोल रहा था, वह सकपका गया। दूसरा बोला, ‘वह हमें पसंद नहीं है।’

‘तुम्हें या तुम्हारे आका को?

मतलब?

मतलब जिसके तुम समर्थक हो, उसको?

किसके समर्थक हैं हम? एक ने थोड़ा मुंह बिगाड़ कर कहा।

‘आरएसएस और भाजपा के।’ मैंने कहा।

पहले वाला बोला, ‘हाँ, तो?

मैंने कहा, ‘अब आपसे बात करने में आसानी होगी। अब अगर आरएसएस और भाजपा जो कहेंगे, आपको वही करना है, तब तो आपसे कोई संवाद हो ही नहीं सकता। पर अगर आप में कुछ अपना विवेक है, तो मैं जरूर आप लोगों से कुछ कहना चाहूँगा।’

एससी एसटी एक्ट के विरोध में 6 सिंतबर 2018 को भारत बंद करते सवर्ण नौजवान (बायें) और दलित लेखक कंवल भारती (बायें)

एक दुबले-पतले से तीसरे लड़के ने जवाब दिया, ‘बोलिए क्या कहना है? हम कोई बेवकूफ थोड़े ही हैं?

‘गुड, बेवकूफ होना भी नहीं चाहिए’, मैंने कहा, ‘यह बताइए कि क्या दलित एक्ट हिन्दुओं के खिलाफ है?

अब वे फंस गए थे। उन्हें जवाब देते नहीं बन रहा था। इस बार भी वह दुबला-पतला लड़का ही बोला, ‘एससी के लोग झूठे इल्जाम लगाकर एक्ट में फंसा देते हैं।’

‘हाँ ऐसा हो भी सकता है। क्या एससी के लोग झूठे इल्जाम लगाकर हिन्दुओं को ही फंसाते हैं?

‘नहीं, दूसरों को भी फंसाते हैं।’

बहुजन विमर्श को विस्तार देतीं फारवर्ड प्रेस की पुस्तकें

मैंने कहा, ‘अच्छा यह बताओ कि दूसरे लोग, जैसे मुसलमान, ईसाई दलित एक्ट का विरोध क्यों नहीं कर रहे हैं? हिन्दू ही क्यों कर रहे हैं?

तुरंत पहले लड़के ने जवाब दिया, ‘हिन्दुओं को एससी के लोग ज्यादा फंसाते हैं।’ अभी आज के ही अखबार में मथुरा के भैरई गाँव की खबर छपी है कि एक दलित महिला ने अपने देवर के साथ मिलकर अपने छह साल के बच्चे की हत्या करके इल्जाम पड़ोस के ब्राह्मण पर लगा दिया, और पुलिस ने उस पर एससी एक्ट लगाकर जेल में डाल दिया।’

19 जुलाई 2016 को ऊना, गुजरात में दलित नौजवानों को पीटते सवर्ण

मैंने कहा, ‘ओह, तो यह बात है। झूठे केस तो दहेज़ उत्पीडन में भी बहुत से सामने आए हैं, तो क्या दहेज़ विरोधी कानून गलत है?’ मैंने आगे कहा, ‘इस बात से इनकार नहीं है कि झूठे केस नहीं होते हैं, होते हैं, और हर अपराध में होते हैं। पर इसका यह मतलब नहीं है कि कानून गलत है। क्या आपको मालूम है, और अगर नहीं मालूम है, तो अपने बुजुर्गों से जाकर पूछ लेना कि गांवों में ब्राह्मण-ठाकुर दलितों को अबे-तबे से बोलते थे कि नहीं? उनका हुक्म न मानने पर उनको मुर्गा बनाकर और हाथ-पैर बांधकर मारते थे कि नहीं? उनकी औरतों के साथ बदसलूकी करते थे कि नहीं? उन्हें झूठे मुकदमों में फंसाकर उनका दमन करते थे कि नहीं? और सवर्णों के द्वारा हजारों दलितों की हत्याओं के वे साक्षी हैं कि नहीं? क्या तब हिन्दुओं के अत्याचारों को रोकने के लिए कोई कानून था? नहीं था, इसलिए वे दलितों पर खूब जुल्म करते थे। तब अखबार भी नहीं लिखते थे और हलके के दारोगा और जज सब उन्हीं के भाई-बंधु थे। और हिन्दू ही नहीं, मुस्लिम जमींदार भी दलितों के साथ वही सलूक करते थे, जो हिन्दू करते थे। आज दलितों की सुरक्षा के लिए बने एससी एसटी एक्ट में सुप्रीम कोर्ट के एक जज ने, हिन्दुओं के हक में गिरफ्तारी का प्रावधान खत्म कर दिया, तो सारे हिन्दू खुश हो गए। पर अब जब दलितों के देशव्यापी विरोध से डर कर सरकार ने उस जज के निर्णय को खारिज कर दिया, तो आरएसएस की जैसे जमीन खिसक गई, और उसने तुम जैसे भाड़े के लोगों को विरोध के लिए सड़कों पर उतार दिया।’

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उनमें से एक ने गुस्से में कहा, ‘व्हाट मीन्स ऑफ़ भाड़े के लोग?

मैंने यह सोचे बगैर कि ये लोग मुझ पर हमलावर हो सकते हैं, मैंने कहा, ‘क्यों, क्या तुम भाड़े के लोग नहीं हो? इस चौराहे पर लगभग सारी दुकानें हिन्दुओं की हैं, आसपास की कॉलोनियां भी हिन्दुओं की ही हैं, ये लोग तुम्हारे विरोध में क्यों शामिल नहीं हैं? तुम्हीं ही क्यों विरोध कर रहे हो? इसका कारण यही है कि तुम्हें आरएसएस की ओर से यह काम सौंपा गया है, और इसके लिए तुम्हें अवश्य ही पैसा मिल रहा है।’

अपने गुरू वशिष्ठ के कहने पर ध्यान में लीन शंबूक का सिर कलम करता राम

मैंने देखा, उनके चेहरों पर हवाइयाँ उड़ रही थीं। मैंने कहा, ‘अच्छा यह बताओ, एससी को आप क्या मानते हो—हिन्दू या गैर हिन्दू?’

उन्होंने माना, ‘हिन्दू हैं?

‘कैसे हिन्दू हैं, उच्च या नीच?’

वही लड़का बोला, ‘नीच हैं.’

‘किस तरह से नीच हैं?

वे सब मौन। कोई जवाब नहीं। मैंने कहा, मैं बताता हूँ कि वे क्यों नीच हैं? वे इसलिए नीच हैं, क्योंकि तुम्हें जन्म से यही संस्कार दिया गया है कि दलित जातियां नीच हैं और यह संस्कार तुम्हारे धर्मशास्त्र देते हैं। वरना यह धारणा कहाँ से आई कि दलित-शूद्र नीच होते हैं और उनके साथ सामाजिक व्यवहार नहीं करना चाहिए?”

वे मौन थे।

मैंने आगे कहा, ‘अगर तुम कामयाब हो गए, दलित एक्ट खत्म हो गया, तो क्या करोगे? दलितों को मारना शुरू कर दोगे? बढ़िया है, जो जहाँ मिले, उसे वहीँ ठोंक देना, सरकार भी तुम्हारी, पुलिस भी तुम्हारी, कुछ नहीं बिगड़ेगा तुम्हारा। दलित एक्ट को खत्म कराकर तुम दलितों को मारने का लाइसेंस ही तो मांग रहे हो।’

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एक लड़के ने कहा, ‘हमारा यह मतलब नहीं है. हम दलितों से थोड़े ही नफरत करते हैं?

‘बिल्कुल नफरत करते हैं’, मैंने कहा, ‘अभी तुम्हारे कथावाचक संत देवकीनन्दन ठाकुर ने कहा है कि अगर सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का निर्णय बहाल नहीं किया, तो वह दो महीने बाद निबटेंगे। यह नफरत नहीं है, तो क्या है? अब वह किससे निबटेंगे, दलितों से या सरकार से? यह स्पष्ट नहीं है। पर वह अपनी ही सरकार से तो नहीं निबटेंगे, तब जाहिर है, वह दलितों के खिलाफ ही अपने भक्तों को भड़कायेंगे और मैंने सुना है कि उन्होंने भड़काया भी है कि दलितों को मन्दिरों में मत घुसने दो, अगर घुसें तो धक्के मारकर बाहर निकाल दो। क्या यह नफरत नहीं है?

उन्होंने लगभग एक स्वर से कहा, ‘हमने तो नहीं सुना, महाराज जी ने ऐसा कहा है।’

मैंने कहा, ‘हो सकता है, आप लोगों ने न सुना हो। पर यह तो पता होगा कि किन्हीं हिंदूवादी नेता दीपक शर्मा ने दलित एक्ट के विरोध में राष्ट्रपति को पत्र लिखकर नागरिकता छोड़ने की अनुमति मांगी है? क्या यह नफरत नहीं है? इस नफरत के साथ यह नेता किस देश की नागरिकता लेगा? और ऐसे घृणित व्यक्ति को कौन देश अपनी नागरिकता दे देगा? उसे यह मालूम नहीं है कि खुद को उच्च और दूसरों को नीच मानने वाले सिरफिरे सिर्फ भारत में ही पैदा होते हैं। दूसरे देशों में ऐसे सिरफिरों के लिए रत्तीभर जगह नहीं है।

मैंने देखा कि वे सिरफिरे दीपक शर्मा में कोई रूचि नहीं ले रहे थे, और शायद वे उसे जानते भी नहीं थे। पर वे सभी मेरी बात से हैरान-परेशान हो रहे थे। इस तरह के आलोचनात्मक विचार से शायद उनका सामना इससे पहले कभी नहीं हुआ था। मैंने अपनी आखिरी बात रखते हुए उनसे कहा कि ‘मैं आपकी इस बात से जरूर सहमत हूँ कि दलित एक्ट के पीछे वोट की राजनीति का दबाव है और क्यों न हो? हिन्दू वोट मुश्किल से 17 परसेंट है। क्या इसके बल पर भाजपा सत्ता में आ सकती है? अगर भाजपा सरकार सुप्रीम कोर्ट के फैसले को नहीं पलटती, तो दलित वोट कांग्रेस को मिल जाता, और इसका परिणाम भाजपा के लिए बहुत घातक होता और ये दांत दिखाने वाले हैं, खाने वाले नहीं। असल में तो भाजपा मनुवादी पार्टी ही है।

वे लड़के समझदार थे, वरना मेरे साथ दुर्व्यवहार भी कर सकते थे। पर मैं शांति से अपनी बात कहकर चला आया था।

(कॉपी संपादन- सिद्धार्थ/एफपी डेस्क)


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लेखक के बारे में

कंवल भारती

कंवल भारती (जन्म: फरवरी, 1953) प्रगतिशील आंबेडकरवादी चिंतक आज के सर्वाधिक चर्चित व सक्रिय लेखकों में से एक हैं। ‘दलित साहित्य की अवधारणा’, ‘स्वामी अछूतानंद हरिहर संचयिता’ आदि उनकी प्रमुख पुस्तकें हैं। उन्हें 1996 में डॉ. आंबेडकर राष्ट्रीय पुरस्कार तथा 2001 में भीमरत्न पुरस्कार प्राप्त हुआ था।

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