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‘धर्मनिरपेक्ष’ व ‘समाजवादी’ शब्द सांप्रदायिक और सवर्णवादी एजेंडे के सबसे बड़े बाधक

1975 में आपातकाल के दौरान आरएसएस पर प्रतिबंध लगा था, और तब से वे आपातकाल को अपने राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल करते रहे हैं। लेकिन यह विडंबना है कि जिस आपातकाल की वे आलोचना करते हैं, उसी दौरान ‘धर्मनिरपेक्ष’ और ‘समाजवादी’ शब्द जोड़े गए, जो भारत के समावेशी और कल्याणकारी चरित्र को...

‘धर्मनिरपेक्ष’ व ‘समाजवादी’ शब्द सांप्रदायिक और सवर्णवादी एजेंडे के सबसे बड़े बाधक
1975 में आपातकाल के दौरान आरएसएस पर प्रतिबंध लगा था, और तब से वे आपातकाल को अपने राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल करते...
दलितों, पिछड़ों और आदिवासियों के ऊपर पेशाब : राजनीतिक शक्ति का कमजोर होना है वजह
तमाम पुनरुत्थानवादी प्रवृत्तियां सर चढ़कर बोल रही हैं। शक्ति के विकेंद्रीकरण की ज़गह शक्ति के केंद्रीकरण की प्रवृत्ति बढ़ रही है। ऐसे दौर में...
नीतीश की प्राथमिकता में नहीं और मोदी चाहते नहीं हैं सामाजिक न्याय : अली अनवर
जातिगत जनगणना का सवाल ऐसा सवाल है कि आरएसएस का सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की राजनीति का जो गुब्बारा है, उसमें सुराख हो जाएगा, उसकी हवा...
मनुस्मृति पढ़ाना ही है तो ‘गुलामगिरी’ और ‘जाति का विनाश’ भी पढ़ाइए : लक्ष्मण यादव
अभी यह स्थिति हो गई है कि भाजपा आज भले चुनाव हार जाए, लेकिन आरएसएस ने जिस तरह से विश्वविद्यालयों को अपने कैडर से...
आखिर ‘चंद्रगुप्त’ नाटक के पन्नों में क्यों गायब है आजीवक प्रसंग?
नाटक के मूल संस्करण से हटाए गए तीन दृश्य वे हैं, जिनमें आजीवक नामक पात्र आता है। आजीवक प्राक्वैदिक भारत की श्रमण परंपरा के...
हूल विद्रोह की कहानी, जिसकी मूल भावना को नहीं समझते आज के राजनेता
आज के आदिवासी नेता राजनीतिक लाभ के लिए ‘हूल दिवस’ पर सिदो-कान्हू की मूर्ति को माला पहनाते हैं और दुमका के भोगनाडीह में, जो...
यात्रा संस्मरण : जब मैं अशोक की पुत्री संघमित्रा की कर्मस्थली श्रीलंका पहुंचा (अंतिम भाग)
चीवर धारण करने के बाद गत वर्ष अक्टूबर माह में मोहनदास नैमिशराय भंते विमल धम्मा के रूप में श्रीलंका की यात्रा पर गए थे।...
जब मैं एक उदारवादी सवर्ण के कवितापाठ में शरीक हुआ
मैंने ओमप्रकाश वाल्मीकि और सूरजपाल चौहान को पढ़ रखा था और वे जिस दुनिया में रहते थे मैं उससे वाकिफ था। एक दिन जब...
When I attended a liberal Savarna’s poetry reading
Having read Om Prakash Valmiki and Suraj Pal Chauhan’s works and identified with the worlds they inhabited, and then one day listening to Ashok...
मिट्टी से बुद्धत्व तक : कुम्हरिपा की साधना और प्रेरणा
चौरासी सिद्धों में कुम्हरिपा, लुइपा (मछुआरा) और दारिकपा (धोबी) जैसे अनेक सिद्ध भी हाशिये के समुदायों से थे। ऐसे अनेक सिद्धों ने अपने निम्न...
कुठांव : सवर्ण केंद्रित नारीवाद बनाम बहुजन न्याय का स्त्री विमर्श का सवाल उठाता उपन्यास
अब्दुल बिस्मिल्लाह का उपन्यास ‘कुठांव’ हमें यही बताता है कि बहुजन और पसमांदा महिलाओं का संघर्ष सिर्फ पुरुषों से नहीं है, बल्कि वह उस...
आंबेडकरवाद के अतीत और वर्तमान को समझाती एक किताब
यह किताब आंबेडकरवादी आंदोलन की दो तस्वीरें प्रस्तुत करती है। एक तस्वीर वह जो डॉ. आंबेडकर के जीवनकाल में थी और दूसरी तस्वीर में...
दलित-बहुजन विमर्श के नये आयाम गढ़तीं दिनेश कुशवाह की कविताएं
दिनेश कुशवाह की कविताओं में ऐसी कई भारतीय समाज की दृश्यावलियां उभर कर आती हैं, जो साहित्य और इतिहास के पन्नों में गायब हैं।...
‘चमरटोली से डी.एस.पी. टोला तक’ : दलित संघर्ष और चेतना की दास्तान
यह आत्मकथा सिर्फ रामचंद्र राम के इंस्पेक्टर से डीएसपी बनने तक जीवन संघर्ष की गाथा नहीं बल्कि यह दलित समुदाय के उस प्रत्येक व्यक्ति...
रोज केरकेट्टा का कथा संसार
रोज केरकेट्टा सोशल एक्टिविस्ट रही हैं। झारखंड अलग राज्य के आंदोलन की एक अग्रणी नेता। और इसी सामाजिक सरोकार ने उन्हें निरा कहानीकार बनने...
‘जाति का विनाश’ में संतराम बीए, आंबेडकर और गांधी के बीच वाद-विवाद और संवाद
वर्ण-व्यवस्था रहेगी तो जाति को मिटाया नहीं जा सकता है। संतराम बीए का यह तर्क बिलकुल डॉ. आंबेडकर के तर्क से मेल खाता है।...
इन कारणों से बौद्ध दर्शन से प्रभावित थे पेरियार
बुद्ध के विचारों से प्रेरित होकर पेरियार ने 27 मई, 1953 को ‘बुद्ध उत्सव’ के रूप में मनाने का आह्वान किया, जिसे उनके अनुयायियों...
‘दुनिया-भर के मजदूरों के सुख-दुःख, समस्याएं और चुनौतियां एक हैं’
अपने श्रम का मूल्य जानना भी आपकी जिम्मेदारी है। श्रम और श्रमिक के महत्व, उसकी अपरिहार्यता के बारे में आपको समझना चाहिए। ऐसा लगता...
सावित्रीबाई फुले, जिन्होंने गढ़ा पति की परछाई से आगे बढ़कर अपना स्वतंत्र आकार
सावित्रीबाई फुले ने अपने पति जोतीराव फुले के समाज सुधार के काम में उनका पूरी तरह सहयोग देते हुए एक परछाईं की तरह पूरे...
रैदास: मध्यकालीन सामंती युग के आधुनिक क्रांतिकारी चिंतक
रैदास के आधुनिक क्रांतिकारी चिंतन-लेखन को वैश्विक और देश के फलक पर व्यापक स्वीकृति क्यों नहीं मिली? सच तो यह कि उनकी आधुनिक चिंतन...