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आकाश आनंद को भाजपा के खिलाफ बोलने की सजा मिली या मायावती की ‘सरप्राइज सियासत’?

गत 28 अप्रैल को सीतापुर की एक चुनावी सभा में उन्होंने भाजपा पर ज़रा टेढ़ी-सी टिप्पणी कर दी। हालांकि मौजूदा दौर में राजनीति जिस ग़र्त में जा चुकी है और ख़ुद प्रधानमंत्री समेत देश के बड़े नेता जिस तरह की भाषा का इस्तेमाल कर रहे हैं, उसके मद्देनज़र आकाश आनंद इतना टेढ़ा भी नहीं...

आकाश आनंद को भाजपा के खिलाफ बोलने की सजा मिली या मायावती की ‘सरप्राइज सियासत’?
गत 28 अप्रैल को सीतापुर की एक चुनावी सभा में उन्होंने भाजपा पर ज़रा टेढ़ी-सी टिप्पणी कर दी। हालांकि मौजूदा दौर में राजनीति जिस...
आठ सालों में अत्यचारों से पीड़ित दलितों एवं आदिवासियों के साथ एक हजार 140 करोड़ की हकमारी
सीवीएमसी के अध्ययन में यह भी सामने आया कि कम से कम 44 हजार पीड़ित 1 हजार 140 करोड़ रुपए की त्वरित सहायता राशि...
बिहार में भूमिहीनता सामाजिक न्याय के एजेंडे में क्यों नहीं?
बिहार में भूमि सुधार का मुद्दा गौण हो गया है। नीतीश कुमार ने बंद्योपध्याय कमीशन का गठन किया था लेकिन उसकी रिपोर्ट को ठंडे...
मोदी राज में ऐसे बदला है लोकतंत्र
2014 से देश की प्रमुख लोकतांत्रिक संस्थाएं औपचारिक रूप से अपनी जगह पर बनी हुई तो हैं, लेकिन लोकतंत्र को कायम रखने वाले मानदंड...
उत्तर प्रदेश : बांसगांव में मायावती ने फिर दिया श्रवण निराला को ऐन मौके पर धोखा
निराला बताते हैं कि इस चुनाव में बांसगांव से टिकट देने के लिए मायावती ने उन्हें आश्वस्त किया था। लेकिन मायावती ने एक 76...
कड़वा सच : ब्राह्मण वर्ग की सांस्कृतिक गुलामी में डूबता जा रहा बहुजन समाज
सरल शब्दों में कहें तो सत्ताधारी ब्राह्मण वर्ग कहता है कि हमें कोट-पैंट छोड़कर धोती-कुर्ता पहनना चाहिए। वह कहता है कि हमें अंग्रेजी छोड़कर...
दलित नजरिए से भगत सिंह की शहादत के मायने
निस्संदेह विचार के स्तर पर भगत सिंह और उनके साथी उस दौर के सबसे प्रखर समाजवादी चिंतक कहे जा सकते हैं। लेकिन उन्होंने एक...
‘अमर सिंह चमकीला’ फिल्म का दलित-बहुजन पक्ष
यह फिल्म बिहार के लोकप्रिय लोक-कलाकार रहे भिखारी ठाकुर की याद दिलाती है, जिनकी भले ही हत्या नहीं की गई, लेकिन उनके द्वारा इजाद...
‘आत्मपॅम्फ्लेट’ : दलित-बहुजन विमर्श की एक अलहदा फिल्म
मराठी फिल्म ‘आत्मपॅम्फलेट’ उन चुनिंदा फिल्मों में से एक है, जो बच्चों के नजरिए से भारतीय समाज पर एक दिलचस्प टिप्पणी करती है। यह...
‘मैं धंधेवाली की बेटी हूं, धंधेवाली नहीं’
‘कोई महिला नहीं चाहती कि उसकी आने वाली पीढ़ी इस पेशे में रहे। सेक्स वर्कर्स भी नहीं चाहतीं। लेकिन जो समाज में बैठे ट्रैफिकर...
हिंदी दलित कथा-साहित्य के तीन दशक : एक पक्ष यह भी
वर्तमान दलित कहानी का एक अश्वेत पक्ष भी है और वह यह कि उसमें राजनीतिक लेखन नहीं हो रहा है। राष्ट्रवाद की राजनीति ने...
‘साझे का संसार’ : बहुजन समझ का संसार
ईश्वर से प्रश्न करना कोई नई बात नहीं है, लेकिन कबीर के ईश्वर पर सवाल खड़ा करना, बुद्ध से उनके संघ-संबंधी प्रश्न पूछना और...
दलित स्त्री विमर्श पर दस्तक देती प्रियंका सोनकर की किताब 
विमर्श और संघर्ष दो अलग-अलग चीजें हैं। पहले कौन, विमर्श या संघर्ष? यह पहले अंडा या मुर्गी वाला जटिल प्रश्न नहीं है। किसी भी...
व्याख्यान  : समतावाद है दलित साहित्य का सामाजिक-सांस्कृतिक आधार 
जो भी दलित साहित्य का विद्यार्थी या अध्येता है, वह इस निष्कर्ष पर पहुंचे बगैर नहीं रहेगा कि ये तीनों चीजें श्रम, स्वप्न और...
‘चपिया’ : मगही में स्त्री-विमर्श का बहुजन आख्यान (पहला भाग)
कवि गोपाल प्रसाद मतिया के हवाले से कहते हैं कि इंद्र और तमाम हिंदू देवी-देवता सामंतों के तलवार हैं, जिनसे ऊंची जातियों के लोग...
व्यक्ति-स्वातंत्र्य के भारतीय संवाहक डॉ. आंबेडकर
ईश्वर के प्रति इतनी श्रद्धा उड़ेलने के बाद भी यहां परिवर्तन नहीं होता, बल्कि सनातनता पर ज्यादा बल देने की परंपरा पुष्ट होती जाती...
सरल शब्दों में समझें आधुनिक भारत के निर्माण में डॉ. आंबेडकर का योगदान
डॉ. आंबेडकर ने भारत का संविधान लिखकर देश के विकास, अखंडता और एकता को बनाए रखने में विशेष योगदान दिया और सभी नागरिकों को...
संविधान-निर्माण में डॉ. आंबेडकर की भूमिका
भारतीय संविधान के आलोचक, ख़ास तौर से आरएसएस के बुद्धिजीवी डॉ. आंबेडकर को संविधान का लेखक नहीं मानते। इसके दो कारण हो सकते हैं।...
पढ़ें, शहादत के पहले जगदेव प्रसाद ने अपने पत्रों में जो लिखा
जगदेव प्रसाद की नजर में दलित पैंथर की वैचारिक समझ में आंबेडकर और मार्क्स दोनों थे। यह भी नया प्रयोग था। दलित पैंथर ने...
राष्ट्रीय स्तर पर शोषितों का संघ ऐसे बनाना चाहते थे जगदेव प्रसाद
‘ऊंची जाति के साम्राज्यवादियों से मुक्ति दिलाने के लिए मद्रास में डीएमके, बिहार में शोषित दल और उत्तर प्रदेश में राष्ट्रीय शोषित संघ बना...